भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली उच्च स्तरीय नियुक्ति समिति ने गुरुवार को वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आलोक वर्मा को केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई-CBI) के निदेशक के पद से हटाकर अग्निशमन, नागरिक सुरक्षा और गृह रक्षा का महानिदेशक बना दिया.
आलोक वर्मा 31 जनवरी को इसी ओहदे से रिटायर होंगे. समिति ने ये फैसला कल के बाद आज हुई बैठक में लिया जिसमें विपक्षी दल कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई के नुमाइंदे के तौर पर जस्टिस ए के सीकरी भी सदस्य की हैसियत से मौजूद थे.
भ्रष्टाचार और काम में गड़बड़ी के दाग के साथ सीबीआई के निदेशक के ओहदे से हटाए जाने वाले पहले अधिकारी के तौर आलोक वर्मा को जाना जायेगा.
वर्मा से सम्बन्धित आदेश कैबिनेट और प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति सम्बन्धी कमेटी के सचिव पीके त्रिपाठी की तरफ से जारी जिस पत्र में है उसी में कहा गया है कि अब सीबीआई के नए निदेशक की नियुक्ति या अगले आदेश तक एम. नागेश्वर राव एजेंसी के मुखिया का काम देखेंगे. 23 अक्टूबर 2018 की आधी रात को अचानक, 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी आलोक वर्मा को हटाने के सरकार के आदेश के साथ ही एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम मुखिया बनाया गया था लेकिन मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने सरकार के फैसले को पलट दिया था. बुधवार को काम सम्भालते ही वर्मा ने नागेश्वर के हटाये गये कई अधिकारियों के तबादले रद कर डाले थे.
दिलचस्प है कि आलोक वर्मा को हटाए जाने का निर्णय सर्वसम्मति से नहीं बल्कि 2-1 से हुआ. प्रधानमंत्री और जस्टिस सीकरी निदेशक आलोक वर्मा को हटाए जाने के पक्ष में थे जबकि कांग्रेस नेता खडगे खिलाफ. आलोक वर्मा पर केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट में गम्भीर आरोप लगाये गये हैं. आलोक वर्मा पर 8 आरोप बताये जाते हैं, जिन्हें समिति के समक्ष रखा गया था. इसीलिये चयन समिति ने उन्हें पद से हटाने का बहुमत से फैसला लिया.