भारत सरकार ने 28 सितंबर को आखिर देश के दूसरे चीफ ऑफ़ स्टाफ के तौर पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (lt gen anil chauhan) का नाम घोषित कर दिया. इसी के साथ, दिसंबर 2021 में हवाई दुर्घटना में सीडीएस जनरल बिपिन रावत के देहांत के बाद से, खाली पड़े इस ओहदे पर तैनाती न किए जाने को लेकर चल रहे आलोचनाओं के सिलसिले पर भी विराम लग गया. लेकिन इस तैनाती के भी कुछ एक पहलू चर्चा और विवाद के कारण बने हुए हैं .
सीडीएस के पद पर लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान की नियुक्ति भारतीय सेना और रक्षा व्यवस्था के इतिहास में ऐसा पहली बार हुई एक ऐसी घटना है जब चार स्टार वाले जनरल के स्थान पर तीन स्टार वाले अधिकारी की तैनाती की गई है. सेना की पूर्वी कमान के बतौर कमांडर के तौर पर 16 महीने पहले जब लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान रिटायर हुए थे तब भी वे वर्तमान तीनों सेनाओं के प्रमुखों से जूनियर थे. हालांकि सीडीएस चीफ्स ऑफ़ स्टाफ कमेटी का स्थायी चेयरमैन भी होता है, इसलिए वरिष्ठता वाला पहलू नज़रन्दाज़ भी किया जा सकता है. सीडीएस की व्यवस्था और इससे सम्बन्धित नियम बनाए गए. उसके हिसाब से नौसेना या वायु सेना के किसी रिटायर्ड वरिष्ठ अफसर को ये ओहदा सौंपा जाना चाहिए. हालांकि तीनों सेनाओं में थल सेना ही सबसे बड़ी है और सीडीएस के पद पर जनरल बिपिन रावत का कार्यकाल पूरा भी नहीं हुआ था इसलिए बचे हुए कार्यकाल को देखते हुए थल सेना के अफसर को सीडीएस बनाने का तर्क चर्चा में है.
सीडीएस पद पर नियुक्ति से पहले लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रमुख अनिल डोभाल के साथ सैन्य सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे. इसलिए सवाल उठ रहा है कि जब उनको ही सीडीएस बनाया जाना था तो 9 महीने तक इस ओहदे को खाली क्यों रखा गया? क्या इससे अर्थ ये नहीं निकाला जा सकता कि रक्षा व्यवस्था के लिए सीडीएस से ज्यादा अहमियत श्री डोभाल के सलाहकार की है.
खडकवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (national defence academy) और देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (indian military academy) के छात्र रहे अनिल चौहान ने भी उसी गोरखा राइफल्स रेजीमेंट में 1981 में कमीशन हासिल किया था जिसमें उनके पूर्ववर्ती सीडीएस यानि जनरल बिपिन रावत थे. श्री रावत की तरह लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान भी उत्तराखंड के रहने वाले हैं. पौड़ी गढ़वाल ज़िले के रहने वाले अनिल चौहान एक गढ़वाली राजपूत परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वे दो किताबों 2010 में प्रकाशित ‘आफ्टर मैथ ऑफ़ अ न्यूक्लिअर अटैक’ (Aftermath of A Nuclear Attack) और हिस्ट्री ऑफ़ 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर (History of 11 Gorkha Rifles Regimental Centre ) के लेखक भी हैं. भारतीय सेना में 40 साल की सेवा के दौरान अहम ओहदों पर रहे लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को चीन सीमा और उससे जुड़े मामलो का विशेषज्ञ माना जाता है.
सेना की पूर्वी कमांड सम्भाल रहे लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे को जब सेना का उप प्रमुख बनाया गया तब लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को उनके स्थान पर पूर्वी कमान का कमांडर बनाया गया था.
सीडीएस जनरल रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और सेना के अन्य अधिकारी 8 दिसंबर 2021 को सेना के हेलीकॉप्टर के क्रैश होने से हुए हादसे में मारे गए थे. उस समय सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे थे जिन्हें बाद में सीडीएस के कुछेक काम की ज़िम्मेदारी दे दी गई थी. तब ऐसा माना जा रहा था कि जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ही सीडीएस बनाए जायेंगे. अप्रैल में उनकी रिटायरमेंट हो गई. इससे अगले ही महीने सीडीएस के पद पर नियुक्ति को लेकर पात्रता सम्बंधी नियम बदल दिए गए जिनके मुताबिक़ 3 स्टार वाला जनरल भी सीडीएस के ओहदे का दावेदार हो सकता है. इस संशोधन ने ये भी स्पष्ट कर डाला था कि नरवणे को तो सीडीएस नहीं बनाया जा सकेगा. साथ ही तीन सितारे वाले रिटायर्ड अधिकारियों में से भी किसी को इस ओहदे के लायक मान लिया गया था.