एक ऐसा स्पोर्ट्समैन जिसकी रग-रग में एथलेटिक्स का ऐसा नशा दौड़ रहा है कि अपनी जिंदगी तक दांव पर लगाने को तैयार है. खेल को ही जिसने जीवन का मकसद बनाया और फिर इसी मकसद ने उसे न सिर्फ सरकारी नौकरी और शोहरत दिलाई बल्कि वह हिम्मत का ऐसा पहरुआ बन गया जिससे दूसरों को हिम्मत, जज्बा और मोटीवेशन मिलता है. इस जांबाज का नाम है नीरज शर्मा. उम्र 54 साल है. उत्तर प्रदेश पुलिस में उप निरीक्षक (सब इंस्पेक्टर-SI) हैं. कानपुर में तैनात हैं. नीरज ने उम्र के इस पड़ाव पर, जब हार्ट सर्जरी हुई हो, तीन-तीन स्पर्धाओं में गोल्ड मेडल जीतकर वाकई ऐसा काम किया है कि कोई भी उन्हें बार-बार सैल्यूट करना चाहेगा.
15 अगस्त 2018 को राष्ट्रपति के उत्कृष्ट सेवा मेडल से सम्मानित नीरज दिसंबर में जिन परिस्थितियों में अलीगढ में मास्टर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करते हुए ओवरआल चैम्पियन बने, उसकी कहानी बाद में बताएंगे पहले यह जानना जरूरी है कि उन्होंने हार्ट सर्जरी के कुछ ही दिन बाद कितनी दिलेर सफलता हासिल की. नीरज ने डिस्कस थ्रो, जेवलिन थ्रो और शाट पुट में सोना जीता जबकि हाई हर्डल में सिल्वर पदक जीता.
जब दिल में हुई हरकत…क्या और कैसे किया…नीरज की जुबानी
“बात नवम्बर की है. एक दिन प्रैक्टिस करने गया था. सीने में भारीपन महसूस हुआ. घर वापस आ गया. प्रैक्टिस रोकी लेकिन जिम गया. रनिंग शुरू की ट्रेडमिल पर. फिर एक दिन सीने में दर्द हुआ. डाक्टर के पास गया. उसने तत्काल कुछ राहत दिलाई. रेडियोलाजिस्ट हार्ट स्पेशलिस्ट डा. एलके बुधवार के पास गया. बताया कि ब्लाकेज हैं. रीजेंसी हास्पिटल गया. एंजियोग्राफी में दो ब्लाकेज थे एक 80% और दूसरा 90%. मेरा एक मंत्र है ‘अगर हम जीवित हैं तो इसका मतलब है कि हम मरे नहीं हैं’. मैंने खुद से कहा एंजियोग्राफी गई भाड़ में. चाहे मर जाऊं खेलना नहीं छोडूंगा. इसी समय स्पेन में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में जाना था. यूपी से 4 लोगों का सलेक्शन हुआ. मैं उनमें से एक था. लेकिन नहीं जा पाया क्योंकि एंजियोप्लास्टी अब जरूरी हो गई थी. मैंने सोचा कि खेल ही मेरा जीवन है. अब मैं अगर खेल से हटा तो यूं ही मर जाऊंगा. खेल से ही मेरी पहचान है. सांसें ही मेरी खेल से चल रही हैं. अगर मरूं तो ग्राउंड पर ही मरूं.”
“23 नवम्बर को मेरी एंजियोप्लास्टी हुई. डाक्टर ने 15 दिन आराम करने को कहा. लेकिन डिस्चार्ज होने के अगले दिन ही मैं पीताम्बरा देवी के दर्शन करने दतिया (मप्र) चला गया. लौटकर आया तो फिर लग गया अपने काम में यानि रनिंग, जिम और प्रैक्टिस. क्योंकि अलीगढ में चैम्पियनशिप होनी थी और उसे मैं मिस नहीं करना चाहता था. इस सवाल पर कि खतरा था, नीरज ने कहा, मैं खेलते हुए ही मरना चाहता हूँ.”
मजे की बात यह कि नीरज बिना परिवार को बताए ही दोस्त पीटर के साथ एंजियोप्लास्टी कराने चले गये थे. उनके दो बेटे हैं. बड़ा बेटा शशांक शर्मा आईटीबीपी की 33 वीं बटालियन में सब इंस्पेक्टर है और गुवाहाटी में तैनात है जबकि मयंक दिल्ली में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा है. एंजियोप्लास्टी के बाद नीरज अपनी पुरानी दिनचर्या में लौटे तो पत्नी अनीता को उनकी सेहत की चिंता हुई और उन्होंने नीरज का किट बैग छुपा दिया लेकिन नीरज कहाँ मनाने वाले थे. नया सामान खरीदा और बाइक की डिक्की में रख लिया. जब समय मिलता है नीरज कहीं भी जुट जाते हैं प्रैक्टिस करने में.
ये हौसला आया कहाँ से? : नीरज संजय सिंह को अपना गुरु मानते हैं. संजय सिंह आर्डिनेंस फैक्टरी से डायरेक्टर पद से रिटायर हो गये हैं. 62 साल उम्र है लेकिन गजब का जज्बा है. इस उम्र में भी वह खेल के प्रति उतने ही समर्पित हैं जितने युवावस्था में थे. नीरज की मुलाकात संजय जी से 2013 में कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर तब हुई थी जब वह और नीरज नेशनल गेम्स में भाग लेने जा रहे थे. पुलिस विभाग में भी नीरज के कई मोटीवेटर हैं. डिप्टी एसपी जटाशंकर सिंह, देवेश पांडे (एएसपी) के अलावा वर्तमान में उत्तर प्रदेश सेंट्रल स्टोर में एसपी सर्वानंद सिंह को नीरज अपनी सफलता का क्रेडिट देते हैं.
शुरुआती जीवन : वर्तमान में यूपी पुलिस सेंट्रल स्टोर, कानपुर में तैनात नीरज की कहानी दिलचस्प भी है और रोमांचित करने वाली भी. मूलत: एटा जिले के रहने वाले नीरज के पास बचपन में पहनने के लिये जूते तक नहीं होते थे. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. लेकिन मास्टर पिता (स्व.) सूरजपाल शर्मा और सेना में कैप्टन चाचा महावीर प्रसाद शर्मा (9 Guards) की हौसला आफजाई ने नीरज की जिंदगी को नई दिशा दे दी.
नीरज के एक चाचा महेश चंद्र शर्मा पुलिस में इंस्पेक्टर रहे. 1979 में एटा के जवाहरलाल नेहरू डिग्री कालेज से ग्रेजुएट नीरज को जेवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो और 110 मी. हाई हर्डल (बाधा दौड़) में जब आगरा यूनिवर्सिटी चैम्पियन बनने का गौरव हासिल हुआ तो उनके फौजी चाचा को लगा कि हमारा भतीजा देश के लिए भी कुछ कर सकता है. सो, 1981 में वह नीरज को मिलिट्री में भर्ती कराने के लिए ले गये. खेल कोटे (वालीबाल) से कांस्टेबल पद पर उनका चयन भी हो गया. यह “खिलाडी नीरज” की पहली सफलता थी लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. एक पारिवारिक ट्रेजडी के कारण वह फौज में नहीं जा पाए. लेकिन वर्दी पहननी है…ये नीरज ने तय कर लिया था.
खेल ने दिलाया मुकाम : दो साल बाद नीरज की तमन्ना उनके खिलाडी जज्बे ने पूरी कर दी. खेल कोटे से वह यूपी पुलिस में चुन लिए गये कांस्टेबल पद पर. अब उनके लिए नया मंच सजा था. उनका चयन उत्तर प्रदेश पुलिस वालीबाल टीम में हो गया. उस टीम के कप्तान अर्जुन अवार्ड विजेता डिप्टी एसपी (DySP) रणवीर सिंह थे. नीरज का शुरुआती रुझान ज्यादातर वालीबाल पर था. लेकिन उनके बाएं घुटने में दिक्कत के कारण वालीबाल छोडनी पडी और एथलेटिक्स में मशक्कत करनी शुरु की. यहाँ भी नीरज ने झंडे गाड़ दिए. डिस्कस थ्रो और जेवलिन थ्रो तो उनका प्रिय था ही लेकिन हाई हर्डल (110 मी. बाधा दौड़) के वह मास्टर थे. उन्होंने तमाम प्रदेश स्तरीय और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सफलता हासिल की.
एक नजर… नीरज के शानदार खेल करियर पर…
1986 में दिल्ली में हुई पुलिस नार्थ जोन वालीबाल में स्वर्ण पदक
दिल्ली छाबला कैम्पस में यूपी पुलिस वालीबाल टीम को सिल्वर मेडल
2014 में तमिलनाडु में 35वीं नेशनल मास्टर्स एथलेटिक्स में 110 मी. बाधा दौड़ (हाई हर्डल) में स्वर्ण पदक
2014 में ही मलेशियन इंटरनेशनल ओपन मास्टर्स एथलेटिक्स में बाधा दौड़ में रजत पदक
2015 में गोवा में 36वीं नेशनल मास्टर्स एथलेटिक्स की बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक
2015 में लखनऊ में 25वीं उप्र मास्टर्स एथलेटिक्स में बाधा दौड़, ऊंची कूद और लम्बी कूद में गोल्ड मेडल हासिल किया
2016 में सिंगापुर में हुई 19वीं एशिया मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक
2017 में कानपुर में 27वीं मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक
2018 में बेंगलुरु में हुई नेशनल मास्टर्स एथलेटिक्स में डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक