दुनिया के सबसे बड़े खेल मुकाबले ओलम्पिक 2021 (टोक्यो) में एथलेटिक्स में अकेले दम पर, ओलम्पिक खेलों में भारत का पहला गोल्ड मेडल हासिल कर अपने देश का नाम रोशन करने वाले नीरज चोपड़ा का ताल्लुक भारतीय सेना से है. भाला फेंक मुकाबले में जीत हासिल करके टोक्यो से लौटे नीरज चोपड़ा थल सेना की राजपूताना राइफल्स में सूबेदार मेजर हैं जोकि एक गैर कमीशन अधिकारी (junior commissioned officer – jco) का रैंक है.
हरियाणा के रहने वाले नीरज चोपड़ा पानीपत के खन्द्रा गाँव के एक साधारण से संयुक्त किसान परिवार के सबसे बड़े बेटे हैं और 2016 में नायब सूबेदार के तौर पर सेना में भर्ती हुए. इसके बाद नीरज के परिवार के आर्थिक हालात में सुधार और नीरज के भाला फेंक खेल (javelin throw) में निखार आया. 23 साल के (जन्म 24 दिसम्बर 1997) नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलम्पिक के दौरान 7 अगस्त को भाला फेंकने के फाइनल मुकाबले में 87.58 मीटर तक भाला फेंक कर गोल्ड मेडल जीता. एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज देश के पहले एथलीट हैं जबकि ओलम्पिक खेलों में गोल्ड मेडल हासिल करने वाले भारत के दूसरे खिलाड़ी हैं. इससे पहले शूटर अभिनव बिंद्रा ओलम्पिक के दौरान निशानेबाज़ी के एकल मुकाबले में गोल्ड मेडल लेकर आये थे. यही नहीं नीरज चोपड़ा ने ओलम्पिक मुकाबले में गोल्ड मेडल लाने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय का कीर्तिमान भी स्थापित कर दिया है.
नीरज चोपड़ा थल सेना की जिस राजपूताना राइफल्स में हैं वह भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजीमेंट है. 1775 में तत्कालीन ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इस सैन्य दल का गठन किया था. दोनों विश्व युद्ध में हिस्सा ले चुकी राजपूताना राइफल्स का आदर्श वाक्य है ‘वीर भोग्य वसुंधरा’ यानि पृथ्वी पर राज उसी का होगा जो वीर होगा. इस रेजिमेंट का युद्धघोष है ‘राजा रामचंद्र की जय’. नीरज चोपड़ा अपने पिता को अपना आदर्श मानते हैं.
बचपन में मोटापे के शिकार रहे नीरज चोपड़ा अब कई लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं. असल जीवन के हीरो बने नीरज चोपड़ा तस्वीरों में किसी खूबसूरत फ़िल्मी हीरो से कम नहीं लगते और ट्वीटर जैसे सोशल मीडिया पर उनके फालोअर्स की तादाद लाखों में पहुँच गई है. वैसे एक वक्त वो था जब 12 साल की उम्र में नीरज का वजन 90 किलो हो गया था और गाँव में लोग उनको सरपंच से मिलता जुलता कहकर छेड़ा करते थे. परिवार वाले उनके मोटापे को कम करने के लिए ही खेलकूद में शामिल होने के लिए ले जाया करते थे. दौड़ लगाने के लिए स्टेडियम जाने के दौरान ही कुछ खिलाड़ियों को जेवलिन थ्रो करते देख नीरज की भी इस खेल के प्रति दिलचस्पी पैदा हुई.
26 से 87.58 मीटर का सफर
10 साल पहले 13 साल की उम्र में नीरज ने शिवाजी स्टेडियम में जब पहली बार भाला फेंका तो वह 26 मीटर दूर तक गया. उनके हाथ में भाला थमाने वाले जयवीर सिंह और जितेंद्र जागलान अचरज में पड़े गए क्योंकि एक साल तक अभ्यास करने वाले एथलीट भी इतनी दूर तक भाला नहीं फेंक पाते थे.
200 रुपये का बांस का भाला टूटने पर डांट पड़ी
नीरज कभी 7000 रुपये के भाले (जेवलिन) के लिए तरसते थे. एक बार अभ्यास करते हुए उनका 200 रुपये वाला बांस का भाला टूट गया. सीनियर खिलाड़ी ने नाराजगी जताई और कहा कि खेल विभाग से और भाले नहीं मिलेंगे. हम अभ्यास कैसे करेंगे. उन्होंने पलटकर जवाब तो नहीं दिया, लेकिन ठान जरूर लिया था कि ऐसा कर दिखाऊंगा कि अभ्यास के लिए महंगी जेवलिन की कमी नहीं रहेगी. अब उनके पास अभ्यास के लिए डेढ़ से दो लाख रुपये कीमत के दर्जनों भाले हैं.