उत्तराखंड में रक्षक वर्ल्ड फाउंडेशन और ‘भागता भारत’ की वर्कशॉप , मेज़बान ‘सौंधी मिट्टी ‘ ने किया आकर्षित

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नैनीताल के नथुवाखान स्थित सौंधी मिट्टी परिसर में पर्यावरण संरक्षण वर्कशॉप की गई .
पर्यावरण संरक्षण के प्रति दिलचस्पी जगाने के अभियान के तहत दिल्ली एनसीआर , महाराष्ट्र और उत्तराखंड से आए युवाओं के लिए नैनीताल ज़िले के नथुवाखान में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया. रक्षक वर्ल्ड फाउंडेशन (rakshak world foundation ) और  खेलों के  प्रति बच्चों व युवाओं में रुझान पैदा कर  उन्हें आगे बढ़ाने में सहयोग करने वाली संस्था ‘ भागता भारत ‘ (bhagta bharat)   इस बहुउद्देशीय कार्यक्रम के आयोजक थे.  इस कार्यक्रम  की एक खासियत आयोजन स्थल यानि  ‘ सौंधी मिट्टी ध्यान केंद्र ‘ का परिसर भी  रहा जो पर्यावरणीय संतुलन बनाते हुए भी आधुनिक जीवन शैली के साथ जीने की मिसाल पेश करता है .
सौंधी मिट्टी ध्यान केंद्र में पर्यावरण संरक्षण विषय पर युवाओं ने चित्रकारी की .
देहरा गांव स्थित भागता भारत केंद्र में कैम्पिंग कर रहे इन युवाओं ने शुक्रवार का पूरा दिन सौंधी मिट्टी (saundhi mitti) में गुज़ारा. इस दौरान उन्हें यहां  पर्यावरण संरक्षण की अहमियत से जुड़ी जानकारी देते हुए  बताया गया कि किस तरह वह साधारण दिनचर्या का पालन करते हुए भी प्रकृति को होने वाले नुकसान में कमी ला सकते हैं . बस उन्हें अपनी कुछ आदतों में छोटा मोटा परिवर्तन करना है. मसलन पानी का गैर ज़रूरी इस्तेमाल न करें , जीतना पीना हो उतना ही पानी ग्लास में भरें , जितना संभव हो वाहन का  उपयोग कम करें , प्लास्टिक और खासतौर से एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिए जाने  वाला प्लास्टिक का सामान  खरीदने से बचें , बॉल पॉइंट पेन या जैल पेन के स्थान पर पेंसिल या फाउंटेन पेन का इस्तेमाल करें.
 वर्कशॉप को संबोधित करते हुए रक्षक वर्ल्ड फाउंडेशन के अध्यक्ष संजय वोहरा ने आधुनिक जीवन शैली में अपनाई जा रही  आदतों और अति उपभोक्तावाद के कारण बढ़ रहे कचरे के खतरों  की जानकारी दी .  उन्होंने बताया कि  इसमें ज्यादा खतरनाक गैर जैविक कचरा है जो ज़मीन , हवा और जल सबको प्रदूषित कर रहा है. ऐसे कचरे का पहाड़ों  बिखराव होना तो भयावह स्पथिति पैदा कर रहा है जहां इसे जमा करके सुरक्षित तरीके से निपटाने के साधन ही नहीं है . गहरे खड्ड , खाई या जल स्रोतों में पहुंचे स्नैक्स – चॉकलेट के  खाली पैकेट , प्लास्टिक की बोतलें , पॉलिथीन , जूस के टेट्रा पैक,  आदि को निकाल पाना  संभव भी नहीं है. ऐसा कचरा यहां की मृदा की उपजाऊ शक्ति के लिए तो खतरा है ही जल स्त्रोतों में पहुंच यह जलीय जीवों के लिए भोम प्राणघातक होता है. नदियों पोखरों में माइक्रोप्लास्टिक वहां पलने वाले जीवों  में जाता है और  उनके ज़रिए (ऐसे मछली आदि खाने वालों के ) इंसानों के जिस्म में प्रवेश कर जानलेवा बीमारियां भी पैदा करता है .
चित्र बनाने में मगन युवा
इस वर्कशॉप में  गैर जैविक कचरे को समेटने और उसका फिर से इस्तेमाल करने के लिए उसे प्लास्टिक की बोतलों में भरकर ईको ब्रिक्स बनाने के सरल तरीके का प्रदर्शन किया गया . पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति प्रेम की थीम पर युवाओं ने चित्र भी बनाए . फाउंडेशन के लव फॉर फाउंटेन पेन ( love for fountain pen ) अभियान के तहत युवाओं ने ,  पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान देने की शपथ लेते हुए , प्रपत्र भी भरा .
गीत संगीत का कार्यक्रम
सौंधी मिट्टी : 
इस अवसर पर  सबसे पहले सौंधी मिट्टी ध्यान केंद्र परिसर में धार्मिक – सांस्कृतिक गीत संगीत कार्यक्रम हुआ जिसमें  युवाओं ने जोश खरोश से हिस्सा लिया . क्षेत्र में मड हाउस ( mud house ) के नाम से लोकप्रिय सौंधी मिट्टी के  भवन निर्माण को युवाओं ने करीब से देखा. शहर के जीवन की चकाचौंध और प्रदूषित वातावरण को त्याग  शांति व शुद्धता के साथ जीवन बिताने उत्तराखंड आए जीत सचदेवा के परिवार ने इसका निर्माण किया. जीत सचदेवा ने बिना सीमेंट सरिये वाली छत बनाने के अलावा इस भवन में ज़्यादातर सामग्री यहीं से जुटाई और वो है यहां की मिट्टी . कार्यक्रम में आए युवाओं ने मिट्टी से बनाए इस भवन के बनने की चुनौतीपूर्ण कहानी से लेकर इसकी बारीकियों  के बारे भी तमाम सवाल किए .  यह भवन पर्यावरण संरक्षण की सोच का शानदार उदाहरण है जिसे बनाने का प्रशिक्षण जीत सचदेवा ने नैनीताल के पंगोट स्थित ‘गीली मिट्टी’ नाम की संस्था से लिया .