गायब होते ग्लेशियरों पर यूनेस्को की रिपोर्ट : पीने के लिए बूंद बूंद को तरसेंगे , बाढ़ से तबाही ज्यादा आएगी

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प्रतीकात्मक ( फाइल फोटो )

इस  रिपोर्ट को पढ़ना , समझना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इससे जुड़ा मुद्दा सिर्फ हम सबकी ज़िन्दगी और मौत का सवाल नहीं , हमारी आने वाली नस्लों के वजूद  से भी जुडा है . सम्पूर्ण पृथ्वी ग्रह में भूमि , जल और  आकाश में मौजूद हरेक जीव के लिए पैदा हो रहे खतरे से आगाह कराती यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्रब शैक्षिक , वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानि यूनेस्को ( UNESCO)ने हाल ही में जारी की है . रिपोर्ट चेताती भी है – इस धरती पर इंसान ने अपने रहन सहन के लिए  प्राकृतिक संसाधनों का बेजा इस्तेमाल या उसे नुक्सान पहुँचाने का सिलसिला यूं ही जारी रखा  तो कुछ ही दशकों में वह पीने के लिए बूंद बूँद पानी से लेकर सांस के लिए ज़रूरी साफ़  हवा को भी तरसेगा.

यूनेस्को की इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में ग्लेशियर पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से गायब हो रहे हैं.  हिमनद द्रव्यमान ( glacial mass loss) का सबसे ज्यादा  नुकसान बीते  तीन साल की अवधि ( 2022 से 2024)   में देखा गया है. यूं  पिछले पचास साल यानि  1975 से  अब तक जिस तरह से ग्लेशियर गायब हुए हैं उससे   9,000 गीगाटन बर्फ खत्म हो चुकी है. यानि इतनी बर्फ कि  एक मीट्रिक टन के आगे कई शून्य लगाने के बाद की गई गणना से भी सही सही अंदाजा नहीं लगा सकेगा . मोटे तौर पर समझने के लिए यह कहा जा सकता है कि गायब हुई बर्फ 25 मीटर ऊँचे एक ऐसे टुकड़े के बराबर थी जिसका क्षेत्रफल  लगभग जर्मनी देश के बराबर हो . यह बात स्विट्जरलैंड स्थित विश्व ग्लेशियर निगरानी सेवा के निदेशक माइकल ज़ेम्प ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में रिपोर्ट की घोषणा करते हुए शुक्रवार को  प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कही.

जीवाश्म ईंधन के जलने से हुए जलवायु परिवर्तन के कारण  वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है.  आर्कटिक से लेकर अल्प्स तक, दक्षिण अमेरिका से लेकर तिब्बती पठार तक   बर्फ को हुए नुकसान की  अहम वजह यही कही जा रही है . इससे दुनिया भर में आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याएँ बढ़ सकती हैं क्योंकि समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और  प्रमुख जल स्रोत कम हो रहे हैं.

यह रिपोर्ट पेरिस में यूनेस्को के उस शिखर सम्मेलन के समय में  सामने आई  है, जो ग्लेशियरों के लिए पहला विश्व दिवस मना रहा है और जिसमें दुनिया भर के ग्लेशियरों की रक्षा के लिए वैश्विक कार्रवाई का आग्रह किया गया है.

माइकल  ज़ेम्प ने कहा कि पिछले छह साल में से पाँच साल में सबसे ज़्यादा नुकसान दर्ज किया गया है, जिसमें अकेले 2024 में ग्लेशियरों का द्रव्यमान 450 गीगाटन कम हो जाएगा. पर्वतीय ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने से त्वरित हुआ  नुकसान   समुद्र के जलस्तर में वृद्धि का  सबसे बड़े दोषियों में से  एक बन गया है . इससे ,  लाखों लोगों के लिए  विनाशकारी बाढ़ का खतरा है और जलमार्गों को नुकसान पहुँच रहा है, जिस पर अरबों लोग जलविद्युत ऊर्जा और कृषि के लिए निर्भर हैं।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization – WMO) में जल और क्रायोस्फीयर के निदेशक स्टीफन उहलेनब्रुक ने कहा कि दुनिया भर में लगभग 275,000 ग्लेशियर बचे हुए हैं, जो अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरों के साथ मिलकर दुनिया के मीठे पानी का लगभग 70% हिस्सा बनाते हैं. उहलेनब्रुक ने कहा, “हमें अपने वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, हमें बेहतर अवलोकन प्रणालियों, बेहतर पूर्वानुमानों और ग्रह और लोगों के लिए बेहतर प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से आगे बढ़ने की ज़रूरत है.”
लगभग 1.1 बिलियन लोग पहाड़ी समुदायों में रहते हैं, जो प्राकृतिक खतरों और अविश्वसनीय जल स्रोतों के बढ़ते जोखिम के कारण ग्लेशियर के नुकसान के सबसे तात्कालिक प्रभावों को झेलते हैं.  दूर दराज़ के स्थानों  और कठिनाई वाले  इलाको में  वो समाधान भी मुश्किल  होते है जो यूं तो  आसान या  सस्ते माने जाते है .
बढ़ते तापमान से उन क्षेत्रों में सूखे की स्थिति और खराब होने की उम्मीद है जो मीठे पानी के लिए बर्फ के ढेर पर निर्भर हैं, जबकि हिमस्खलन, भूस्खलन, अचानक बाढ़ और ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ (GLOF) जैसे खतरों की गंभीरता और आवृत्ति दोनों में वृद्धि होगी.

पीछे हटते ग्लेशियर के नीचे रहने  पेरू के एक किसान ने इस मुद्दे को अदालत में ले जाकर जर्मनी में ऊर्जा उत्पादन में  दिग्गज  आरडब्ल्यू ई -RWE) पर ग्लेशियल झील के बाढ़ बचाव के एक हिस्से के लिए मुकदमा दायर किया है, जो इसके ऐतिहासिक वैश्विक उत्सर्जन के अनुपात में है.

आर्कटिक मॉनिटरिंग एंड असेसमेंट प्रोग्राम के सचिवालय, ग्लेशियोलॉजिस्ट हेइडी सेवेस्ट्रे ने बुधवार को पेरिस में यूनेस्को मुख्यालय के बाहर समाचार एजेंसी  रॉयटर्स को बताया, “हम क्षेत्र में जो बदलाव देख रहे हैं, वे सचमुच दिल दहला देने वाले हैं.” सेवेस्ट्रे ने कहा, “कुछ क्षेत्रों में चीजें वास्तव में हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी से हो रही हैं.” उन्होंने पूर्वी अफ्रीका में युगांडा और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में स्थित रवेन्ज़ोरी पर्वतों की अपनी हाल की यात्रा का ज़िक्र  किया, जहाँ ग्लेशियरों के 2030 तक गायब हो जाने का अंदाज़ा है . स्ट्रे ने इस क्षेत्र के स्वदेशी बाकों ज़ो समुदायों के साथ काम किया है, जो मानते हैं कि कितासाम्बा नामक देवता ग्लेशियरों में रहते हैं।

“क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि ग्लेशियरों के प्रति उनका कितना गहरा आध्यात्मिक संबंध, कितना गहरा लगाव है और उनके लिए इसका क्या मतलब हो सकता है कि उनके ग्लेशियर गायब हो रहे हैं?” सेवेस्ट्रे ने कहा।

नई यूनेस्को रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वी अफ्रीका में ग्लेशियरों के पिघलने से पानी को लेकर स्थानीय संघर्षों में वृद्धि हुई है, और जबकि वैश्विक स्तर पर इसका प्रभाव न्यूनतम है, दुनिया भ में ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव बढ़ रहा है।

2000 और 2023 के बीच, पिघलते हुए पर्वतीय ग्लेशियरों के कारण वैश्विक समुद्र स्तर में 18 मिलीमीटर की वृद्धि हुई है, जो प्रति वर्ष लगभग 1 मिमी है.  वर्ल्ड ग्लेशियर मॉनिटरिंग सर्विस के अनुसार, हर मिलीमीटर 300,000 लोगों को सालाना बाढ़ के खतरे में डाल सकता है.

सेवेस्ट्रे ने कहा, “अरबों लोग ग्लेशियरों से जुड़े हुए हैं, चाहे उन्हें पता हो या नहीं, और उन्हें बचाने के लिए अरबों लोगों की ज़रूरत होगी. “