विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर रक्षक वर्ल्ड फाउंडेशन ने उत्तराखंड के दूर दराज़ के एक छोटे से गांव टाना में पर्यावरण संरक्षण संबंधी अपनी मुहिम ‘ लव फॉर फाउंटेन पेन ‘ के तहत विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया . स्कूल के बच्चों और अध्यापिकाओं के अलावा यहां के आंगनवाड़ी केंद्र के बच्चे व स्टाफ भी आयोजन का हिस्सा बने.
विश्व पृथ्वी दिवस सप्ताह के दौरान 24 अप्रैल 2024 को इस कार्यक्रम का आयोजन जिस टाना गांव के प्राइमरी स्कूल में किया गया वह नैनीताल ज़िले के रामगढ़ ब्लॉक में है. इस कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने पर्यावरण से जुड़े विषय पर चित्र बनाए . सभी बच्चों को रक्षक वर्ल्ड फाउंडेशन की तरफ से तोहफे में ऐसी पुस्तकें दीं गई जिनके ज़रिये वह रुचिपूर्ण तरीके से जानकारी हासिल कर सके. उन्हें ज्ञानवर्धन व हस्तलेखन में मदद मिले.
इस अवसर पर एक लघु कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसे संबोधित करते हुए फाउंडेशन के अध्यक्ष संजय वोहरा ने वनों और जीव जंतुओं के संरक्षण के महत्त्व और उससे हमारे जीवन पर पड़ने वाले असर के बारे में बताया. इस चर्चा के दौरान उन उपायों पर भी बातचीत की गई जिनके ज़रिए हरेक व्यक्ति पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकता है. मसलन रोज़मर्रा के जीवन में प्लास्टिक के इस्तेमाल को ख़त्म या कम करके.
इसके अलावा ‘ग्लोबल वार्मिंग ‘ (global warming) से पैदा हो रहे खतरे के बारे में भी कार्यशाला में चर्चा हुई. पूरी दुनिया में बढ़ रहे तापमान से प्रकृति को पहुंचने वाले नुक्सान के प्रति आगाह किया गया. यह बढ़ता तापमान ग्लेशियर्स की बर्फ को लगातार तेज़ी से पिघला रहा है तो वहीं समुद्र का जलस्तर बढ़ा रहा है . साथ ही हवा से लेकर समुद्र तक में गर्मी बढ़ने से जीव जन्तुओं पर बुरा असर हो रहा है.इस कार कई स्थानों से जीवों का पलायन हो रहा है तो उनकी कई प्रजातियां ही विलुप्त हो रही हैं . इस कारण मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है. प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर खेती और प्रकृति पर आधारित जीवन जीने वालों के लिए यह नई नई चुनौतियां पैदा कर रहा है. पहले से ही कठिन परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहे पर्वतीय और आदिवासी इलाकों के बाशिंदों के लिए तो इन हालात से जीने का संकट पैदा कर रहा है.
संजय वोहरा ने कहा कि ‘ग्लोबल वार्मिग ‘ घटाने का एकमात्र मूलमंत्र है ‘ उपभोक्तावाद ‘ की पोषित की जा रही संस्कृति से पल्ला छुड़ाया जाए . आज जो कुछ भी सामान बनता है उस में मशीन इस्तेमाल होती है और बिजली या ईंधन का इस्तेमाल करके मशीन को चलाया जाता है. इन तमाम गतिविधियों से वातावरण में गर्मी पैदा होती है. इसलिए हम उन्हीं वस्तुओं की खरीददारी करें जिनकी ज़रूरत है और ऐसी वस्तु खरीदें जिनका ज्यादा लम्बे समय तक इस्तेमाल किया जा सके और बाद में उनकों किसी अन्य रूप में पुन उपयोग में लाया जा सके.
फाउंडेशन की तरफ से अध्यापिकाओं को भारत की पहली स्वदेशी स्याही ‘सुलेखा’ और उसी ब्रैंड के पेन वितरित किए गए . पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले बॉल प्वाइंट पेन (ballpoint pen) व जेंल पेन को हतोत्साहित के एक उपाय के तहत फाउंडेशन की तरफ से फाउंटेन पेन वितरित किए जाते हैं ताकि इनमें स्याही भरकर बार बार उपयोग किया जा सके .
एक सैनिक परिवार से संबंधित स्कूल की प्रधानाचार्य रेजीना रिक्खी ( rejina rikhey ) ने रक्षक वर्ल्ड फाउंडेशन ( rakshak world foundation ) की मुहिम की सराहना की. उन्होंने व वहां उपस्थित कर्मियों ने ‘ पर्यावरण संरक्षण ‘ की शपथ ली. ‘ लव फॉर फाउंटेन पेन ‘ मुहिम के तहत निशुल्क दिए जाने वाले पेन व स्याही से लिखकर लोग ऐसे संकल्प लेने की घोषणा करते है जिससे व पर्यावरण को होने वाली क्षति को कम करने में योगदान दे सकें. पृथ्वी दिवस को समर्पित इस कार्यक्रम के आयोजन में स्थानीय संयोजक के रूप में टाना स्कूल परिसर स्थित आंगनवाड़ी केंद्र की प्रभारी अंकिता आर्य ने भूमिका निभाई. उन नन्हें बच्चों ने भी उत्साह से हिस्सा लिया जिनकी अभी औपचारिक शिक्षा की शुरुआत भी नहीं हुई है. सीमित संसाधनों के साथ चलाए जा रहे इस स्कूल में ऐसा पहला आयोजन हुआ. इस अवसर पर भोजन माता चम्पादेवी ने सादा व स्वादिष्ट खाना पकाकर सबको खिलाया.
पृथ्वी दिवस हरेक साल 22 अप्रैल को दुनिया भर में मनाया जाता है जिसका मकसद पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना है . इसकी शुरुआत अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के तौर पर की थी. मौजूदा दौर में पृथ्वी दिवस 192 से ज्यादा देशों में हर साल मनाया जाता है.