इस IPS अफसर असलम खान को जानना जरूरी है, ये करती हैं श्रीकृष्ण की भक्ति

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आईपीएस अफसर असलम खान
2007 बैच की आईपीएस अफसर असलम खान गले में तुलसी की माला धारण करती हैं.
  • जन्माष्टमी विशेष

जयपुर निवासी एक कॉलेज छात्रा एक दिन गोविंद देव जी के मंदिर गई. लेकिन उस समय मंदिर के कपाट बंद मिले. इसलिए वह गोविंद देव जी के दर्शन नहीं कर पाई. छह साल बाद वह लड़की दोबारा मंदिर गई तो गोविंद देव जी के दर्शन से वह इतनी मंत्रमुग्ध हो गई कि तीन घंटे मंदिर में कब बीत गए उसे पता ही नहीं चला. ऐसी लागी लगन हो गई मगन… इसका उस पर इतना गहरा असर हुआ कि वह कृष्ण की भक्त बन गई भक्ति में लीन हो उसने बाकायदा कृष्ण के महामंत्र का जाप, माला फेरना और ध्यान लगाना शुरू कर दिया. आप सोचेंगे कि इसमें कौन सी खास या नई बात है. लेकिन इस लड़की में कई खासियत हैं जिसमें एक खासियत है उसका नाम जो कि लड़कों का होता है इसके नाम से ही पता चलता है कि कृष्ण की यह भक्त कुछ ख़ास ही है. इस लड़की का नाम है असलम खान हैं. असलम के पिता को पुत्र के जन्म की उम्मीद थी इसलिए उन्होंने उसका नाम असलम पहले ही सोच लिया था. लेकिन पुत्री हुई, तो उन्होंने उसका नाम ही असलम रख दिया और उसकी परवरिश बेटों से भी ज्यादा बेहतर तरीके से की. इसका परिणाम भी बहुत बेहतर निकला और असलम खान साल 2007 में आईपीएस अफसर बन गई. असलम खान इस समय दिल्ली के उत्तर पश्चिमी जिला में पुलिस उपायुक्त के पद पर आसीन हैं. असलम का अर्थ महफूज़ होता है. लोगों को महफूज़ रखने की जिम्मेदारी वह निभा रही हैं. खुद कृष्ण की शरण में महफूज़ है.

आईपीएस अफसर असलम खान
आईपीएस अफसर असलम खान.

बात साल 2014 की है असलम खान का एक बैचमेट जयपुर आया था. असलम उसे लेकर गोविंद देव जी मंदिर गईं. असलम खान के बैचमेट को ट्रेन पकड़नी थी इसलिए वह तो गोविंद देव जी के दर्शन करने के बाद चला गया. लेकिन असलम खान मंत्रमुग्ध सी होकर तीन घंटे तक मंदिर में ही बैठी रहीं. इसके बाद से असलम खान ने गोविंद देव जी को अपना इष्ट मान लिया और कृष्ण की अनन्य भक्त हो गईं. गले में तुलसी माला, महामंत्र का जाप, माला फेरना और ध्यान दिनचर्या में शामिल कर लिया. लेकिन जिला पुलिस उपायुक्त बनने के बाद अब इसके लिए समय नहीं मिलता. असलम के दफ्तर में मेज पर गोविंद देव जी की तस्वीर रहती है.

तुलसी माला

पुलिस मुख्यालय में एक समारोह में मैंने पहली बार असलम खान को देखा तो उनके गले में तुलसी माला ने ही मेरा ध्यान खींचा. मैंने सोचा कि शायद फैशन के लिए तुलसी माला पहन ली होगी. कुछ समय पहले हुई मुलाकात में असलम खान के कृष्ण भक्त होने का पता चला. असलम के पति पंकज कुमार सिंह (IPS 2008 बैच) भी दिल्ली में ही पूर्वी जिले के डीसीपी हैं.

असलम का कहना है कि भगवान में इतना अटूट विश्वास है कि मैं किसी भी ग़लत चीज़ का विरोध करने के लिए किसी से नहीं डरती. भगवान ही है…बाक़ी सब मिथ्या है…मैं तो बस उसके विश्वास पर ही टिकी हुई हूं. असलम खान ने शादी के बाद अपने नाम के साथ कोई बदलाव नहीं किया जैसा कि अमूमन लड़कियां करती हैं. ज्यादातर लड़कियां शादी के बाद या तो अपने पति का सरनेम जोड़ लेती हैं या अपने सरनेम के साथ पति का सरनेम भी जोड़ लेती हैं.

आईपीएस अफसर असलम खान
आईपीएस अफसर असलम खान.

इंसानियत का जज्बा

उत्तर पश्चिमी जिला में इस साल जनवरी में ट्रक ड्राइवर मान सिंह की लुटेरों ने हत्या कर दी. जम्मू कश्मीर के फ्लोरा गांव में रहने वाले मान सिंह के बेसहारा हो गए परिवार को असलम खान ने सहारा दिया. असलम अपने वेतन में से पांच हज़ार रुपए हर महीने उस परिवार को देती हैं. असलम के कारण ही अब अन्य लोग भी उस परिवार की मदद कर रहे हैं.

बागी/स्वाभिमानी

आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान पुलिस अकादमी में एक समारोह था जिसके लिए महिला अफसरों को साड़ी पहन कर गुलदस्ता देकर मुख्य अतिथि का स्वागत करना था लेकिन असलम ने कहा कि महिला कोई सजावट की वस्तु नहीं है और उसने ऐसा करने से इंकार कर दिया था.

धर्म आचरण में होना चाहिए

यह तो बात हुई असलम की आस्था और विश्वास की. लेकिन धर्म का असली मर्म और मकसद है कि धर्म हरेक के आचरण यानी कर्म में होना चाहिए. श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि व्यक्ति को कर्म अपने धर्म के लिए करना चाहिए. धर्म के लिए रिश्तों के मोह या भावना की नहीं बल्कि कर्तव्य के ज्ञान की आवश्यकता होती है. प्राणी कर्म इस प्रकार करें जैसे कोई यज्ञ किया जाता है. अपने सारे कर्म लोक कल्याण के लिए या भगवान के निमित्त करना चाहिए. कर्म को यज्ञ समझ कर करने वाला तो कर्म बंधन से मुक्त रहेगा.

धर्म का दिखावा बढ़ा

समाज में इस समय सभी धर्मों का प्रचार प्रसार तो बहुत ज्यादा हो रहा है. बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजन भी होते हैं. जिनमें लाखों लोग शामिल होते हैं. लेकिन इसके बावजूद समाज में धर्म का असर नहीं दिख रहा है. इसकी मुख्य वजह है कि ज्यादातर लोग धर्म की चर्चा/दिखावा तो खूब करते हैं लेकिन धर्म उनके आचरण में कहीं नजर नहीं आता हैं. व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म से जुड़ा हो अगर वह अपने उस धर्म के मर्म को ही अच्छी तरह समझ लें तो वह कभी भी कोई ग़लत कार्य नहीं करेगा. धर्म ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करना सिखाता है.

* ये लेख पत्रकार इंद्र वशिष्ठ की फेसबुक वाल से लिया गया है