मुंबई के ताज होटल में घुसे आतंकवादियों में से एक आतंकवादी वहां बंधक बनाये गये किसी शख्स पर चिल्ला रहा था, ‘ बता….क्या तू वज़ीर (मंत्री) है…? ‘ इस सवाल के जवाब में उस शख्स ने कहा, ‘ …नहीं, मैं तो स्कूल टीचर हूँ.’
इन दोनों के बीच हो रही बातचीत एक तीसरा शख्स दूसरी फोन लाइन से सुन रहा था और उसने आतंकवादी को आदेशात्मक लहजे में कहा, ‘इसे मार डाल, ये झूठ बोल रहा है. एक स्कूल मास्टर 20 हज़ार रुपये में किराये का कमरा नहीं ले सकता…! ‘.
उर्दू और पंजाबी मिश्रित भाषा में चल रही ये बातचीत इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी दिव्य प्रकाश सिन्हा अपने सुरक्षित कंट्रोल रूम में एक स्पीकर पर भी सुन रहे थे. वह 26 नवम्बर 2008 की रात का वक्त था. मुम्बई में आतंकवादी हमले की सूचना मिलते ही 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी दिव्य प्रकाश सिन्हा दफ्तर पहुंच गये थे. इंटेलिजेंस ब्यूरो के आपरेशंस के प्रभारी सिन्हा को एक अधिकारी पहले ही बता चुका था कि ये फिदायीन हमला है. इसका आइडिया उस अधिकारी को आतंकवादी के फोन पर चल रही बातचीत से लग गया था जिसका नम्बर आईबी के सिस्टम में फीड था और सर्विलेंस पर लगा हुआ था. तब श्री सिन्हा ने पूछा कि क्या वो पाकिस्तानी नम्बर की मानीटरिंग कर रहे थे तो अधिकारी ने कहा,’ नहीं सर, ये इंडियन नम्बर है जो अभी एक्टिव हुआ है’.
खुफिया एजेंसियां कई तरह के फोन पर और उन पर होने वाली बातचीत पर नज़र रखती हैं. जो भी पुलिस अधिकारी फोन पर निगरानी रखने के लिए कहता है उनका नाम वगैरा भी उस फोन नम्बर के साथ रिकार्ड में दर्ज रहता है. किस अधिकारी ने इसकी मानिटर करने की सिफारिश की थी? ये पूछने पर जब सिन्हा को जवाब मिला कि ज्वाइंट डायरेक्टर (आपरेशंस) ने, तो पहले पहल सिन्हा को लगा कि ये उनसे पहले वाले अधिकारी ने निर्देश दिए होंगे’. लेकिन फिर उस अधिकारी ने कहा, ‘नहीं सर इसमें तो आपका ही नाम है.’ इसके बाद दिव्य प्रकाश सिन्हा को याद आ गई वो घटना. ये तब की बात थी जब दिव्य प्रकाश सिन्हा ज्वाइंट डायरेक्टर (आपरेशंस) थे.
26/11 मुंबई हमले की 10 वीं बरसी पर इस रोचक घटना और तथ्यों का खुलासा दिव्य प्रकाश सिन्हा ने भारत से छपने वाले अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के रिपोर्टर राजेश आहूजा से बातचीत में किया. इस रिपोर्ट में सिन्हा के हवाले से बताया गया कि जम्मू कश्मीर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एसएम सहाय ने लश्करे तैयबा के बारे में खुफिया जानकारियाँ हासिल करने के लिए एक आपरेशन प्लान किया था जिसके तहत कुछ ऐसे सिम कार्ड उसके आतंकियों तक पहुँचाने जाने थे. इसके तहत ऐसे 30 प्री पेड सिम कार्ड का पैकेट, जिनकी भारतीय एजेंसियां मानिटरिंग कर रही हों, आतंकियों के एजेंट के ज़रिये भेजा गया. इस उम्मीद के साथ कि अगर आतंकी इनका इस्तेमाल करेंगे तो उनकी बातचीत से उनकी योजनाओं का पता चल सकेगा.
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी दिव्य प्रकाश सिन्हा ने बताया कि इस प्लान का पता चलने पर उन्होंने तीन सिम कार्ड ऐसे भेजे ताकि उनकी मानिटरिंग आईबी करे. दिव्य प्रकाश सिन्हा के मुताबिक़ भारत के अलग अलग क्षेत्र के उन तीन सिम कार्ड्स में से एक का नम्बर था वही था जो मुंबई में एक्टिव हुआ और ताज होटल में मौजूद लश्करे तैयबा के आतंकवादी के पास था.
जब ये प्लान बना था तब अरुण चौधरी (1977 बैच के आईपीएस जो 2014 में रिटायर हुए) श्रीनगर में आईबी के प्रमुख थे और उन्होंने ही इसकी जानकारी दिव्य प्रकाश सिन्हा से साझा की थी.
श्री सिन्हा ने बताया कि होटल में मौजूद आतंकवादी के नम्बर पर जिसका सम्पर्क हो रहा था उसकी डिटेल्स भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से ली गई तो पता चला कि उससे सम्पर्क करने के लिए अमेरिकन वरचुअल नम्बर का इस्तेमाल हो रहा है. पता चला कि उस नम्बर से 3-4 काल्स की गई थीं. सिन्हा ने बताया कि ये वरचुअल वायस ओवर इन्टरनेट प्रोटोकोल (Voice over Internet Protocol – VoIP) लश्करे तैयबा के कराची स्थित कंट्रोल रूम में था. आई बी ने इस पर होने वाली बातचीत सुननी शुरू की तो पता चला कि दो दो के गुट में आतंकवादियों की पांच टीमें हैं और इनमें से दो टीम होटल ताज में हैं.
जब आतंकवादियों के फोन की बैटरी खत्म हो गई तो उन्होंने वह फोन फेंक दिया और होटल से पीड़िटन के फोन का इस्तेमाल करने लगे. सिन्हा कहते हैं,’ हम VoIP से की जाने वाली सभी काल्स सुन रहे थे’. सिन्हा बताते हैं कि उन्होंने करीब करीब दो दिन पूरे इन काल्स को सुनने और मुंबई पुलिस व गृह मंत्रालय के बीच समन्वय (coordination) करने में बिताए. 27 नवम्बर की सुबह वह और उनके वरिष्ठ अधिकारियों के साथ इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख एमके नारायणन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पूरा ब्योरा देते हुए बताया कि किस तरह पाकिस्तान से ये हमला नियंत्रित किया जा रहा है.
दिव्य प्रकाश सिन्हा 2015 में भारत के सुरक्षा सचिव के ओहदे से रिटायर हुए और केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों में से एक हैं.
(ये लेख हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट से लिए गये तथ्यों के आधार पर लिखा गया है)