राजनीतिक दबाव की वजह से उत्तर प्रदेश पुलिस से इस्तीफा देने वाले शैलेन्द्र सिंह को आखिर 16 साल बाद राहत तब मिली जब अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज एक आपराधिक मुकदमा वापस लेने की अनुमति के आदेश जारी किये. शैलेन्द्र सिंह यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसटीएफ़) में उपाधीक्षक (डीएसपी) थे. उन्होंने आपराधिक इतिहास वाले यूपी में मऊ के विधायक मुख्तार अंसारी के खिलाफ आतंकवाद रोकथाम कानून ‘पोटा’ के तहत केस दर्ज करने की सिफारिश की थी. इसी प्रकरण में एक घटना के सिलसिले में उनके खिलाफ जिला मजिस्ट्रेट दफ्तर के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की शिकायत पर केस दर्ज किया गया था.
भारत में नेताओं, पुलिस अधिकारियों और अपराध जगत के गठजोड़ का ये पुराना मामला अब एक बार फिर सामने आया है जिसके तार अलग अलग पार्टियों के नेताओं से जुड़े हैं. पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह का मानना है कि ये केस उनके खिलाफ दबाव बनाने के लिए बनवाया गया था. अब सरकार की याचिका पर वाराणसी के चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत ने शैलेन्द्र सिंह के खिलाफ दर्ज केस को वापस लेने की अनुमति दे दी है.
मशीनगन (LMG) केस :
ये साल 2004 के उस दौर की बात है जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. उन दिनों उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के छावनी क्षेत्र (लखनऊ कैंट) में, गैंगस्टर से नेता बने बाहुबली माने जाने वाले मुख्तार अंसारी और भारतीय जनता पार्टी से ताल्लुक रखने वाले कृष्णानन्द राय के गिरोहों के बीच गोलीबारी हुई थी. सरकारी तंत्र ने तब सक्रियता दिखाते हुये एसटीएफ़ को सचेत किया था कि इन दोनों गिरोहों की गतिविधियों पर पैनी नज़र रखी जाए. पुलिस ने दोनों गिरोहों के लोगों और उनके संपर्कों के फोन कॉल्स पर निगाह रखनी शुरू कर दी थी. इन्ही काल्स में ये बात सामने आई कि मुख्तार अंसारी का गैंग भारतीय सेना के एक भगोड़े सैनिक से उसकी लाइट मशीनगन (जो वह चुराकर भागा था) खरीदने का सौदा कर रहा है.
उस समय डिप्टी एसपी शैलेन्द्र सिंह उत्तर पुलिस की वाराणसी स्थित एसटीएफ यूनिट के प्रभारी थे. इंटरसेप्ट की गई काल्स के आधार पर शैलेन्द्र सिंह का कहना था कि जिस भगोड़े सैनिक बाबूलाल यादव से एक करोड़ रूपये में एलएमजी खरीदने का सौदा मुख्तार अंसारी कर रहा था वो बाबूलाल असल में मुख्तार अंसारी के गनर मुन्नार यादव का भतीजा था. इस कॉल के पकड़े जाने के बाद डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने 25 जनवरी 2004 को अपनी टीम के साथ वाराणसी के चौबेपुर में छापा मारा और बाबूलाल यादव को गिरफ्तार कर लिया. वहीं बाबूलाल के कब्ज़े से एलएमजी और उसके 200 कारतूस भी मिले. शैलेन्द्र सिंह ने इस सिलसिले में दो केस दायर किये. पहला शस्त्र अधिनियम में और दूसरा पोटा की धाराओं के तहत.
पुलिस की शुरुआती छानबीन में ही ये बात सामने आ गई थी कि जिस मोबाइल नम्बर से एलएमजी खरीदने के सौदे में बातचीत चल रही थी वो फोन जेल में मुख्तार अंसारी के बंद साथी तनवीर उर्फ़ तनु का था लेकिन फोन का इस्तेमाल मुख्तार अंसारी कर रहा था.
बवाल कैसे मचा :
पुलिस एक्शन होने पर इस मामले को लेकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारे और पुलिस तंत्र में बवाल मच गया. पुलिस महानिदेशक कार्यालय के ज़रिये वरिष्ठ अधिकारियों से दबाव बनवाया गया कि इस केस को दबाया जाये या मुख्तार अंसारी का नाम इसमें से निकलवाया जाये. यहाँ तक कि डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से डांट भी खानी पड़ी जबकि शैलेंद्र के मुताबिक यह केस इन्ही वरिष्ठ अफसरों की इजाजत से खुला था यानि अफसरों की हरी झंडी मिल चुकी थी.
राज्यपाल को इस्तीफ़ा भेजा :
उसी शाम मुख्तार अंसारी ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके एसटीएफ़ की इंटरसेप्ट की गई वायस काल से अपना ताल्लुक होने की बात को गलत बताया. मामले को लेकर बवाल इतना बढा कि अगले महीने ही शैलेन्द्र सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा. उन्होंने अपना इस्तीफ़ा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री को फैक्स के ज़रिये भेज दिया था जिसमें उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि उन पर वरिष्ठ अधिकारियों की तरफ से दबाव डाला गया है. तब ये मामला राष्ट्रीय समाचारों में भी सुर्खियाँ बन गया. ये मामला विधान सभा में भी खूब उछला. विपक्षी दल के नेताओं ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया और बवाल इतना हुआ कि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को औरैया में अपना दौरा बीच में ही छोड़ लखनऊ लौटना पड़ा.
पुलिस के एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि शैलेन्द्र सिंह के इस्तीफे की घटना उस एसटीएफ़ के अधिकारियों का मनोबल तोड़ने जैसी थी जिसका गठन 1998 में कल्याण सिंह की सरकार के राज में किया गया था ताकि संगठित अपराधों और खतरनाक गिरोंहों पर लगाम लगाई जा सके. छह साल के दौरान इस एसटीएफ़ ने अपराधियों के खिलाफ अभियान में दूसरे राज्यों तक में जाकर कार्रवाई की थी क्यूंकि इसे उन दिनों राजनीतिक समर्थन भी मिलने लगा था.
पुलिस की तफ्तीश के आधार पर बताई गई कहानी के मुताबिक़ अगर ये मशीनगन तब पकड़ी न जाती तो शायद कृष्णानंद राय की हत्या 2004 में ही हो जाती. बीजेपी विधायक कृष्णानन्द को भी सुरक्षा मिली हुई थी और वे बुलेट प्रूफ कार में सफ़र करते थे. मशीनगन की गोली ही उस बुलेट प्रूफ कार को भेद सकती थी. वैसे राय की हत्या 2005 में की गई थी जिसके लिए मुख्तार अंसारी के गिरोह को ही ज़िम्मेदार माना गया.
डीएसपी शैलेन्द्र पर केस :
नवम्बर 2004 छात्रों के मामले को लेकर शैलेन्द्र सिंह वाराणसी में डीएम के दफ्तर में धरने पर बैठ गये थे. उन्हें बिना इजाज़त लोगों को इकट्टा करने ज़िला मजिस्ट्रेट के दफ्तर में रेस्ट रूम में हंगामा करने की एफआईआर कैंट थाने में दर्ज कराई गई. इसमें शिकायतकर्ता डीएम ऑफिस में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी लाल जी था. इस मामले में उन्हें गिरफ्तार करके जेल भी भेज दिया गया. इस केस से सम्बन्धित उनके खिलाफ विभिन्न धाराएं सरकार ने हटाते हुए अदालत को अवगत कराया. जेल से छूटने के बाद शैलेन्द्र सिंह राजनीति से अपराधीकरण का सफाया करने के मकसद से खुद सक्रिय राजनीति में कूद गये.
राजनीति में शैलेन्द्र सिंह :
पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने 2004 में लोकसभा चुनाव में चंदौली निर्वाचन क्षेत्र से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर अपना भाग्य आजमाया लेकिन नाकाम रहे. 2009 में उन्होंने कांग्रेस टिकट पर चंदौली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा लेकिन ये भी हार गये. 20 12 में कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने सैयदराजा विधान सभा क्षेत्र से पर्चा भरा लेकिन इस बार भी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वे विधान सभा का चुनाव भी हार गये. सात साल कांग्रेस के आरटीआई सेल के मुखिया के तौर पर सेवा करने के बाद 15 अप्रैल 2014 को डीएसपी शैलेन्द्र सिंह बीजेपी में शामिल हो गये. उसी साल प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और शैलेन्द्र सिंह यहाँ बनाये गए चुनावी ‘वार रूम’ के प्रभारी थे.
खेती करते हैं :
आजकल शैलेन्द्र सिंह लखनऊ के देहात वाले क्षेत्र में जैविक खेती कर रहे हैं. वाराणसी की अदालत के आदेश से उन्हें राहत मिली और इस आदेश की कॉपी उन्होंने अपने सोशल मीडिया खाते में पोस्ट की है. साथ ही इसके लिए उत्तर प्रदेश की वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का आभार प्रकट किया है. इस केस ने उनके जीवन को खासा प्रभावित किया था. यहाँ तक कि उन्हें पासपोर्ट और शस्त्र लाइसेंस से भी महरूम रहना पड़ा.
सभी फोटो पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह के फेसबुक पेज से