भारतीय पुलिस के वजूद में आने से लेकर इसकी पहचान बनी रही थ्री नॉट थ्री रायफल को अब उत्तर प्रदेश में पुलिस पूरे सम्मान के साथ अलविदा करेगी. बदलते जमाने के हिसाब से पुरानी हो चुकी इस बंदूक को विदाई देने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की मुरादाबाद लाइंस में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर भव्य कार्यक्रम होगा. 161 साल से भारत में खाकी वर्दी की तरह थ्री नॉट थ्री भी पुलिस का अभिन्न अंग बनी रही है.
ब्रिटिश राज से आजादी के बाद से ही ये पुलिस की करीबी दोस्त रही. हालांकि यहाँ की पुलिस में इसका अवतरण 1857 में हो चुका था. थ्री नॉट थ्री रायफल की विदाई यूं ही नहीं होगी. इसके लिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर भव्य विदाई समारोह पूरे उत्तर प्रदेश में आयोजित किए जाएंगे. इन कार्यकमों में पुलिस के बड़े अफसरों की मौजूदगी में थ्री नॉट थ्री रायफल की सलामी के बाद औपचारिक रूप से इसे पुलिस बल से विदा किया जाएगा. इन कार्यक्रमों में अधिकारी बतायेंगे कि बरसों से खाकीधारी प्रहरियों के लिए शान रही थ्री नॉट थ्री रायफल की खूबियां क्या हैं और इसकी अब तक कितनी अहम भूमिका रही है.
कार्यक्रम को शानदार बनाने के लिए मुरादाबाद पुलिस लाइंस में तैयारियां शुरू कर दी गई हैं. यहाँ जमा थ्री नॉट थ्री रायफलों की साफ सफाई करने के साथ ही चमकाने का काम शुरू कर दिया गया है, यह एक ऐसा पहला मौका होगा जब पुलिस के किसी हथियार की इतने शानो शौकत से महकमे से विदाई के आयोजन करने के निर्देश शासन स्तर से जारी किए गए हैं. अपर पुलिस महानिदेशक (लॉजिस्टिक) विजय कुमार मौर्य ने इस सिलसिले में उत्तर प्रदेश के सभी एसएसपी को चिट्ठी भेजकर निर्देश दिए.
थ्री नॉट थ्री की खास ख़ास बातें :
- 1857 में पहली बार मिली थी 303 बोर की मसकट रायफल.
- 70 के दशक में बदलाव किया गया और बनाई गई बोल्ट एक्शन गन.
- मारक क्षमता 1600 गज से भी ज्यादा.
- शरीर को गोली रगड़ भी काफी नुकसान पहुंचाती है.
इसे विदा करने के कारण :
- पुरानी होने की वजह से रायफल के पार्ट घिसने लगे और मरम्मत में दिक्कत आने लगी क्यूंकि बाजार में इसके पार्ट्स नहीं मिलते.
- खराब रायफल को मरम्मत के लिए सीतापुर भेजना पड़ता है.
- बोल्ट एक्शन रायफल की वजह से एक बार फायर करने के बाद रुकना पड़ता है.
- चलाने के लिए दोनों हाथों का इस्तेमाल करना पड़ता है.
- थ्री नॉट थ्री रायफल फायर के समय पीछे जोर का झटका मारती है.
थ्री नॉट थ्री की यात्रा :
भारत में पुलिस के साथ 161 साल का सफर पूरा कर चुकी थ्री नॉट थ्री रायफल अंग्रेजी हुकूमत में 1857 में जवानों को मिली थी. उस वक्त इसकी नाल में बारूद भरकर रॉड से ठोंका जाता था. इसके बाद फायर किया जाता था और इसको मसकट बोलते थे. मज़े की बात है कि 1962 में भारत ने इसी रायफल के बूते पर से चीन से युद्ध लड़ा था. 70 के दशक में इसमें बदलाव किया गया और इसको सेमी ऑटोमेटिक बनाया गया. बदलाव से इसमें मैग्जीन लगाकर छह फायर होने लगे. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीहड़ में दस्यु ऑपरेशन में इसने कई डकैतों को मार गिराया. ये डकैतों की भी पहली पसंद होती थी और इसे पाने के लिए वो पुलिस पर भी हमला करते थे.