छत्तीसगढ़ सरकार ने कवर्धा में पदस्थ तीन बार राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानित पुलिस इंस्पेक्टर अजीत ओगरे को एक बार फिर आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) बना दिया है. ओगरे 14 साल की नौकरी में 53 बार नक्सलियों से मुठभेड़ कर चुके हैं. उन्हें तीन बार गोलियां भी लगीं. इसके बावजूद वह खुद नक्सल इलाकों में अपनी पोस्टिंग करवाते हैं. ओगरे तीन बार राष्ट्रपति वीरता पदक से भी सम्मानित हो चुके हैं.
ओगरे को कई बार मैदानी इलाकों में पोस्टिंग का ऑफर मिला, लेकिन वह नक्सल मोर्चे पर डटे रहना चाहते हैं. इसी साल कवर्धा को नक्सल प्रभावित जिला घोषित किया गया तो वह कवर्धा में नक्सल ऑपरेशन की कमान संभालने चले गए.
ओगरे पहले रायपुर में रहते थे और हिंदुस्तान लीवर लि. कंपनी का ट्रक चलाया करते थे. 2004 में उनका चयन पुलिस सब इंस्पेक्टर के तौर पर हुआ और पोस्टिंग मिली बस्तर के जंगलों में. इसके बाद नक्सलवाद का सफाया उनका लक्ष्य बन गया. उनकी सेवा और बहादुरी को देखते हुए सरकार ने तीन साल पहले उनका प्रमोशन सब इंस्पेक्टर से इंस्पेक्टर के पद पर कर दिया था. अब फिर तीन साल के बाद सरकार ने उन्हें आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देकर डीएसपी बना दिया है.
ये जानना जरूरी है ओगरे के बारे में
- तीन बार राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानित हो चुके हैं ओगरे
- तीन बार गोलियां लगीं फिर भी डटे रहे नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर
- छत्तीसगढ़ पुलिस के इंस्पेक्टर अजित ओगरे अब तक 53 नक्सलियों का एनकाउंटर कर चुके हैं, सबसे ख़ास बात तो ये कि उनके चलाए गए ऑपरेशन में अब तक एक भी जवान शहीद नहीं हुआ है.
- उनका खौफ नक्सलियों के बीच इस कदर है कि उनका नाम नक्सलियों ने अपनी हिटलिस्ट के टॉप-5 में शामिल किया है. कई सरेंडर नक्सलियों ने तो पुलिस अफसरों को यह भी बताया है कि ओगरे को मारने के लिए नक्सलियों ने स्पेशल टीम भी बनाई है.
- वह 2004 में छत्तीसगढ़ पुलिस में सब-इंस्पेक्टर चुने गए. एक साल की ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग बस्तर हुई.
- जगदलपुर कोतवाली में एक साल की ट्रेनिंग के बाद उन्हें 2006 में पहला थाना मिला धनोरा.
- छत्तीसगढ़ पुलिस ज्वाइन करने के पहले उन्होंने एक साल तक ट्रक भी चलाया. ओगरे का कहना है कि उन्होंने पहली शादी तो अपनी एके-47 से की है, जो हमेशा उनके साथ रहती है. सोते समय भी वह बिस्तर पर बंदूक लेकर सोते हैं.