बीते शुक्रवार यानि 29 दिसंबर को दोपहर बाद अचानक आईपीएस उमेश मिश्रा ने पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ( वीआरएस – vrs ) के लिए आवेदन किया जिसे राज्य सरकार ने फ़ौरन मंज़ूर किया और श्री मिश्रा को रिलीव भी कर दिया. शाम होते होते 6 बजे तक आईपीएस यूआर साहू को कार्यवाहक पुलिस प्रमुख तैनात करने का आदेश जारी भी कर दिया.
वैसे आईपीएस उमेश मिश्रा का कार्यकाल 2024 में नवंबर तक का था. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक बरसों पहले बनाए गए नियमों के मुताबिक़ राज्य सरकार पुलिस प्रमुख को इस तरह कार्यकाल पूरा हुए बगैर बिना किसी ठोस कारण के नहीं हटा सकती. उनका इस पद से इस्तीफ़ा सीधे सीधे सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है .
दरअसल हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में हार के कारण राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी है जिसके मुख्यमंत्री भजन लाल हैं . नई सरकार अपनी पसंद का पुलिस मुखिया बनाना चाह रही थी. यूं भी श्री मिश्रा को अशोक गहलोत का करीबी समझा जाता है. यह आम चर्चा रही है कि जुलाई 2020 में जब गहलोत सरकार पर राजनीतिक संकट आया था तब आईपीएस उमेश मिश्रा ने उनकी मदद की थी . श्री मिश्रा तब इंटेलिजेंस के अतिरिक्त महानिदेशक ( एडीजी ) थे. उन्होंने तब मुख्यमंत्री गहलोत को सरकार गिरने की आशंका के हालात के बारे में काफी जानकारियां दीं थीं. यही नहीं उन्होंने श्री गहलोत की सरकार बचाने में भी मदद की. ज़ाहिर है कि इससे प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल बीजेपी को वह सियासी लाभ नहीं मिल सका जिसकी वह उम्मीद कर रही थी .
इस घटनाक्रम के बाद तत्कालीन सीएम गहलोत ने कुछ आईपीएस अफसरों की वरिष्ठता को दरकिनार करके उमेश मिश्रा को पुलिस महकमे का मुखिया (डीजीपी – dgp ) बनवा दिया था. श्री मिश्रा 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी जबकि उनसे वरिष्ठ आईपीएस यूआर साहू 1988 बैच के हैं . इसके अलावा 1989 बैच के आईपीएस अफसर भूपेंद्र कुमार दक भी उमेश मिश्रा के बैच के हैं और उम्र में बड़े होने की वजह से वह श्री मिश्रा से वरिष्ठ माने जाते हैं . तत्कालीन सरकार ने इन दो अफसरों की वरिष्ठता नज़रन्दाज़ करते हुए उमेश मिश्रा को 27 अक्टूबर 2022 को डीजीपी बना दिया था.