दरअसल, ये देर रात की बात है . नई दिल्ली के तीन मूर्ति इलाके में जब 4-5 महिला एक कार से कहीं जा रही थी. अचानक आगे को ड्राइवर वाली सीट पर बैठी महिला बेहोश हो गई और उसकी सांस बंद हो गई. कार में बैठी उसकी साथी महिलाएं घबरा गईं, रात काफी ज्यादा हो चुकी थी और आसपास मदद कोई थी नहीं . किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था . लेकिन, उन्होंने मदद की पुकार करनी शुरू कर दी , ” हेल्प …हेल्प … हेल्प … ” और उनका चिल्लाना सुनकर वहां पास में गश्त कर रहे पुलिस नियंत्रण कक्ष के वाहन में तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उस तरफ पड़ी, जिस तरफ से महिलाएं शोर मचा रहीं थीं. जब पीसीआर की टीम कार के नज़दीक पहुंची तो पता चला कि ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठी महिला थी . महिला की उम्र 50 के आसपास रही होगी. उसकी दिल की धड़कन रुकी महसूस हुई .
पीसीआर में तैनात पुलिसकर्मियों सब इंस्पेक्टर सुनील कुमार और सिपाही आकाश ने बिना देर किए महिला को वहां पर लिटाया और उसकी साथी महिलाओं की मदद से सीपीआर देना शुरू कर दिया.इस बीच एक महिला अपने दूसरी मुंह के जरिए उसे सांस देनी शुरू की. इसका नतीजा यह हुआ कि बेहोश महिला के शरीर मे कुछ ही देर में हरकत नजर आने लगी और वह होश में भी आ गईं .
सीपीआर (cpr ) पाने के बाद वह महिला उठ भी गईं. महिला को फ़ौरन नजदीक के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ले जाया गया. पुलिसकर्मी कुछ देर वहीं रुके और स्थिति सामान्य होती देख लौट गए . दिल्ली पुलिस के पुलिस नियंत्रण कक्ष (pcr ) के उपायुक्त ( डीसीपी ) आनंद मिश्रा ने इस मामले की जानकारी देते हुए बताया कि पेट्रोलिंग पर तैनात सहायक सब इंस्पेक्टर सुनील कुमार और कॉन्स्टेबल आकाश की टीम ने सीपीआर देकर महिला की जान बचाने का सराहनीय काम किया.
क्या है सीपीआर देने का तरीका :
सीपीआर का मतलब है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन cardiopulmonary resuscitation. यह एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड (first aid ) है. जब किसी को अचानक सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो और बेहोश हो जाए तो सीपीआर देकर उसकी जान बचाई जा सकती है. बिजली का करंट लगने से , पानी में डूबने से और दम घुटने पर सीपीआर से उस पीड़ित को आराम पहुंचाया जा सकता है . हार्ट अटैक यानि दिल का दौरा पड़ने पर तो सबसे पहले अगर वक्त पर सीपीआर दे दिया जाय तो पीड़ित की जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.
दो मुख्य प्रक्रियाएं :
सीपीआर में मुख्य तौर से दो प्रक्रिया की जाती हैं . सबसे पहले पीड़ित को किसी सपाट जगह जैसे फर्श आदि पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाता है. सबसे पहले तो छाती को दबाने की प्रक्रिया की जाती है और दूसरा मुँह से सांस दिया जाता है जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं. पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचो – बीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है. एक से दो बार ऐसा करने से धड़कनें फिर से शुरू हो जाती हैं . पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें. अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो लगातार पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है.
छाती दबाएँ , सांस दें लेकिन संभलकर :
ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करते हैं . सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है. 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम साँस दी जाती है यानि इस प्रक्रिया में छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस देने का अनुपात 30 :02 का रहना चाहिए. कृत्रिम सांस यानि मुहं से सांस देते वक्त मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से साँस दी जाती है क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है.
सांस देते समय ध्यान रखना होता है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से अपना मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़ें. ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भरती है. इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती ऊपर नीचे हो रही है या नहीं. ये प्रक्रिया तब तक चलती रहने देनी होती है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे. उसके खुद से साँस लेने पर ये प्रक्रिया रोकनी होती है.