देश की सबसे कठिन #upsc की परीक्षा पास करके एक सशक्त व्यक्तित्व बनना, करियर के एक ऐसे मुकाम पर पहुंचना जहां न सिर्फ अपनी दुनियावी ज़रूरतें पूरा करना बेहद आसान हो बल्कि सैकड़ों – हज़ारों लोगों की मदद करने की क्षमता भी हो … तब 47 साल की उम्र में किसी का इस दुनिया से हमेशा के लिए खुद वास्ता खत्म कर देना सच में अजीब लगता है ..!
सांसारिक – भौतिक आवश्यकताएं पूरी न होने , असहनीय बीमारी की पीड़ा से मुक्ति , अपमान आदि से उत्पन्न हीन भावना जैसी वजह से किसी का इस दुनिया को छोड़ने का फैसला लेना कुछ हद तक तर्कसंगत माना जा सकता है लेकिन जब आईपीएस जैसा शानदार करियर हो , न कोई विवाद हो , लोकप्रियता में कमी न हो तब अचानक खुद को गोली मार कर जीवनलीला समाप्त करने जैसा फैसला लेना सच में कितना रहस्यमयी है ..!
बेशक , उस समय कोयम्बटूर के डीआईजी सी विजय कुमार #ipsCVijaykumar असहनीय पीड़ा के दौर से गुज़रे होंगे जब शुक्रवार की सुबह कोयम्बटूर में रेडफ़ील्ड ( redfield) स्थित अपने कैम्प ऑफिस में उन्होंने खुद को गोली मारी होगी . ये घटना सच में विचलित कर डालती है. साथ ही यह भी याद दिलाती है कि हम आसपास ऐसे लोगों का कम से कम इतना ख्याल ज़रूर रखें कि वो अपने दिल की बात किसी से कह सके . मदद न कर सकते हों या नहीं लेकिन उनकी सुन तो सकते हैं . छोटा सा यह काम किसी अवसाद पीड़ित शख्स के लिए उन क्षणों में बड़ी राहत दे सकता है .
अभी महीना भर पहले ही उत्तर प्रदेश से भी ऐसी ही बुरी घटना की खबर आई थी . यहां एक ऐसे रिटायर्ड आईपीएस ने आत्महत्या की जो करियर के सबसे ऊँचे ओहदे यानि महानिदेशक तक की कुर्सी संभाल चुके थे. वह थे दिनेश कुमार शर्मा. 1975 बैच के आईपीएस . उम्र बेशक 73 साल थी लेकिन उनके साथ रह रहे लोगों को ऐसा कुछ भी नहीं दिखाई पड़ता था जो ये बताता हो कि श्री शर्मा अचानक 6 जून को अपनी रिवाल्वर से खुद को गोली मार लेंगे और दुनिया से हमेशा के लिए रुखसती ले लेंगे . अलबता लखनऊ के गोमती नगर वाले उस घर में सुसाइड नोट ज़रूर मिला जहां उन्होंने जान दी थी . सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा था कि अपनी सेहत खो रहा हूं . यानि श्री शर्मा भी अवसाद संबंधी विकार से परेशान थे. यूं भी कहा जा सकता है कि किसी परेशानी से अवसाद की हालत में थे .
भारत में हर साल 1 लाख से ज्यादा लोग आत्महत्या करते हैं . पिछले कुछ साल में ये संख्या तेज़ी से बढ़ी है . राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी – ncrb ) के मुताबिक़ 2021 में 1 लाख 64 हज़ार से ज्यादा लोगों ने अपनी जिंदगी खुद खत्म की जबकि इससे पांच साल पहले ये संख्या 1 लाख 29 हज़ार 887 थी. प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो पांच साल में आत्महत्या करने वालों की संख्या में 25 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है. 33 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक क्लेश के कारण तो 18 प्रतिशत ने बीमारी से तंग आकर ये कदम उठाया. ये सच में सोचने वाली गंभीर बात है …!पांच राज्य जहां सबसे ज्यादा खुदकशी होती है :
क्षेत्र या राज्यों के हिसाब से देखा जाए तो भारत में महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा खुदकशी के केस होते हैं . दूसरे नम्बर पर तमिलनाडु है जहां के आईपीएस सी विजय कुमार रहने वाले थे. इन दो राज्यों के अलावा मध्य प्रदेश , पश्चिम बंगाल और कर्नाटक सबसे ज्यादा आत्महत्या के रिकॉर्ड वाले राज्यों में शुमार होते हैं . इन पाँचों राज्यों में जितने लोग सुसाइड करते हैं उनकी संख्या पूरे देश में आत्महत्या करने वालों का 50 प्रतिशत है . 2021 में आत्महत्या के सबसे कम केस बिहार में हुए.
सबसे ज्यादा मजदूरों और गृहणियों ने आत्महत्या की :
भारत में आत्महत्या के मामले 2010 से अचानक बढ़ने शुरू हुए थे जो तीन साल तो लगभग एक ही स्तर पर रहे लेकिन 2014 से इनमें गिरावट आनी शुरू हुई और ये रुझान 2017 तक देखा गया लेकिन 2018 में भारत में आत्महत्या करने वालों का ग्राफ बढ़ना शुरू हुआ और कोविड – 19 संक्रमण काल के बाद से तो इन मामलों में ज़बरदस्त वृद्धि देखी गई . व्यवसाय के आधार पर वर्गीकरण करके देखा जाए तो 20 21 में भारत में आत्महत्या करने वाले लोगों में 25 प्रतिशत वो थे जो ‘ रोज़ कमाना और रोज़ खाना ‘ वाली जिंदगी जीने वाले दिहाड़ी मजदूर थे . दूसरे नम्बर पर गृहणियां हैं. 2021 में भारत में आत्महत्या करने वालों में 14 फीसदी गृहणियां थीं . दस प्रतिशत प्रोफेशनल लोगों ने आत्महत्या की वहीँ 8 .4 % ने बेरोजगारी से परेशान होकर यह कदम उठाया.
कई देशों से ज्यादा आत्महत्या दर :
अन्य देशों के मुकाबले भी भारत में आत्महत्या की दर काफी ज्यादा है. आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या के हिसाब से भारत दुनिया भर के देशों में 41 वें नम्बर पर है . विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने यह अंदाजा 2019 तक आंकड़ों के हिसाब लगाया था और इसके मुताबिक़ रूस 11 वें नम्बर पर है. यूं 2021 के रिकॉर्ड के मुताबिक़ उम्र के लिहाज़ से देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा आत्महत्या 18 से 30 साल की उम्र में लोगों ने कीं और दूसरे नम्बर पर 39 से 45 साल का आयु वर्ग आता है . उम्र व लिंग के हिसाब से देखें तो भारत में आत्महत्या करने वालों में ज्यादा संख्या पुरुषों की है लेकिन नाबालिग के माम्लोने में सबसे ज्यादा आत्महत्या लड़कियों ने की . 2021 में 10730 नाबालिगों ने खुदकशी की जिनमें 5655 महिलाएं थीं.