भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान पुलिस व्यवस्था लागू किये जाने के तौर तरीके और इसके पीछे रही अंग्रेज़ हुकूमत की नीयत की पोल पट्टी खोलते हुए आलोचना की. उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक इतिहास और सामंती आदतों का बोझ अब भी विभिन्न पहलुओं से व्यवहार और देश के शासन को प्रभावित कर रहा है. राष्ट्रपति मुर्मू ने पुलिस व्यवस्था के अमल में ब्रिटिश शासन के दोगलेपन की तरफ भी इशारा किया.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज (27 दिसंबर 2022) हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकेडमी में भारतीय पुलिस सेवा के 74 वें बैच के प्रशिक्षुओं को सम्बोधित कर रही थीं. उन्होंने कहा कि कि हमें हमेशा ये आसान सा तथ्य हमेशा याद रखना चाहिए कि औपनिवेशिक ताकतों ने अपने देश में पुलिस व्यवस्था को नागरिकों की सहमति और भागीदारी के आधार पर विकसित किया लेकिन भारत जैसे उपनिवेश में उन्होंने नागरिकों में भय पैदा करने को आधार बनाकर पुलिस व्यवस्था लागू की.
राष्ट्रपति मुर्मू ने पुलिस व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी की अहमियत का ज़िक्र करते हुए स्केंडिनेवियाई देशों का ज़िक्र भी किया. उन्होंने कहा कि उन देशों में पुलिस में 30 फीसदी महिलाएं हैं जोकि पुलिस में महिलाओं का सबसे ज्यादा औसत है. ये देश मानव विकास के संदर्भ में उच्च श्रेणी के देशों में शुमार होते हैं. उन्होंने कहा कि हमें जल्द ही स्त्री सशक्तिकरण के चरण आगे बढाकर स्त्री के नेतृत्व वाले विकास की तरफ अग्रसर होना चाहिए. राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि ऐसा विभिन्न क्षेत्रों में शुरू हो गया है और ये जल्द ही बड़े स्तर पर होना चाहिए.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वहां उपस्थित महिला आईपीएस अधिकारियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मैं इस बात पर ज़ोर दे रही हूँ, नेतृत्व की स्थिति वाली महिलाओं को अन्य महिलाओं की सहायता करनी चाहिए, खास तौर से जो महिलाएं कमजोर हों. अगर हरेक महिला अपने में से किसी कमजोर के साथ खडी हो गई तो समाज बहुत बड़ा बदलाव महसूस करेगा. उन्होंने कहा कि मुझे इस बात को जानकार बेहद ख़ुशी हुई कि यहां लगातार तीन बैच से महिला आईपीएस प्रशिक्षु ही बेहतरीन प्रशिक्षु घोषित हो रही हैं.