‘तू छित्तर खाण वाले कम्म न कर … ‘ ‘कुड़ियां ने औसदी चंगी छित्तर परेड कित्ती …’ पंजाबी में इस तरह ‘ छित्तर ‘ शब्द का इस्तेमाल काफी किया जाता है. पंजाबी फिल्मों में तो ये बहुतायत में इस्तेमाल होता है . यहां तक कि पंजाब से प्रकाशित हिन्दी अखबारों में ‘ छित्तर ‘ शब्द के उपयोग की स्वीकारोक्ति है . इन सभी मामलों में ‘ छित्तर ‘ का इस्तेमाल ‘ जूती या चप्पल ‘ के लिए किया गया है जैसे कि अक्सर हिंदी में ‘ जूतम पैजार ‘ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि असल में ‘ छित्तर ‘ नाम का एक औज़ार भी होता है जिसे पुलिस अपराधियों से सचाई उगलवाने या फिर परम्परागत तरीके से अपने तौर पर सज़ा देने के लिए इस्तेमाल करती रही है.
यहां असल में जिस ‘ छित्तर ‘ की बात हो रही है वो चमड़े का बनाया गया ऐसा औज़ार है जिसका आकार लॉन टेनिस के बल्ले lawn tennis racket की तरह होता है. पुलिस इससे मुजरिमों की पिटाई करती थी.
खासियत ये होती है कि इसकी पिटाई से दर्द तो खूब होता है लेकिन जानलेवा चोट नहीं लगती . या हड्डी टूटने का खतरा नहीं होता जैसा कि लकड़ी के डंडे या धातु से बनी किसी सख्त चीज़ से मारने पर बना रहता है. मानवाधिकार के दौर में पुलिस के लिए आधिकारिक तौर पर इस तरह की पिटाई करना बेशक गैर कानूनी है लेकिन सच्चाई ये है कि ‘ छित्तर परेड ‘ जैसे तरीके पुलिस आज भी आजमाती है. यूं अस्सी के दशक तक हरियाणा में पुलिस इस तरह के छित्तर का इस्तेमाल करती रही है.
किसी ज़माने में थानों में रखा जाने वाला पुलिस का पसंदीदा और अपराधियों के लिए खौफ का कारण बनने वाला ये ‘ छित्तर ‘ उन दिलचस्प सामानों में से एक है जो हरियाणा के सोनीपत में बनाए गए म्यूजियम की 13 में एक विशेष गैलरी में शीशे में करीने से सजा कर रखा गया है. छित्तर के साथ ही वो रस्सी भी है जिसे मुजरिम की पिटाई करने से पहले उसे बांधने में इस्तेमाल किया जाता था. ये छित्तर सोनीपत के सबसे पुराने थानों में शुमार सदर थाने की मिल्कियत थी . भारतीय पुलिस , सेना और अर्द्ध सैन्य बलों को समर्पित संग्रहालय के इस कक्ष में कुछ और रोचक वस्तुएं भी है और उनसे संबंधित ज्ञानवर्धक जानकारियां भी मिलती है. पुलिस की तरह तरह की वर्दियां या उनकी तस्वीरें हैं. वहीँ महिला आईपीएस अधिकारी सुमन मंजरी की वर्दी भी है. 1994 बैच की आईपीएस सुमन मंजरी सोनीपत की मूल निवासी हैं और उन्होंने संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए अपने मेडल तक दान किये है . वे पुलिस महानिरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुईं थीं.
वैसे तो ये म्यूजियम सोनीपत के प्राचीन और आधुनिक इतिहास को समर्पित है लेकिन इसमें हरियाणा की उस संस्कृति की प्रभावशाली झलक मिलती है जो हरियाणा राज्य के ‘ नामकरण ‘ से पहले की थी . अलग राज्य बनने से पहले हरियाणा दरअसल संयुक्त पंजाब का हिस्सा था. भारतीय पुलिस , सेना और अर्द्ध सैन्य बलों को समर्पित संग्रहालय के इस कक्ष में कुछ और रोचक वस्तुएं भी है और उनसे संबंधित ज्ञानवर्धक जानकारियां भी मिलती है. यहां के ‘ बलिदान ‘ कक्ष में स्वतंत्रता सेनानियों में उन सेनानियों की तस्वीरें भी है जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज indian national army में सैनिक थे .
सेना की सेवा के दौरान कर्तव्य की खातिर जान देने वाले उन फौजियों को भी यहां विशेष स्थान दिया गया है जिनका ताल्लुक हरियाणा के सोनीपत ज़िले से है. भारत के आज़ाद होने से लेकर अब तक सोनीपत के 95 सैनिकों ने शहादत दी है. यूं तो यहां के असंख्य जवानों ने विश्व युद्धों में भी वीरता दिखाई. इसकी भी झलक यहां दिखाई देती है.
राजधानी दिल्ली से तकरीबन 50 किलोमीटर के फासले पर ये म्यूजियम कोट मोहल्ला में है. यहां ब्रिटिश हुकूमत के दौर में तहसील हुआ करती थी और साथ में ही सदर थाना भी था. समय के साथ साथ और सरकारी उपेक्षा के कारण ये इमारत जर्जर होती गई. हालात ये हो गई थी कि यहां आसपास के लोगों ने ज़मीन खोदनी शुरू कर डाली . यहां तक कि इस स्थान के बाहरी हिस्सों में कब्ज़ा तक करके अपने मकान तक बनाने की कोशिश की. स्थानीय पत्रकार राजेश कुमार खत्री ने इस इमारत के जीर्णोद्धार की पहल 23 साल पहले सोनीपत ज़िले के तत्कालीन उपायुक्त सुधीर राजपाल की मदद से की थी. इसके लिए सोसायटी फॉर द डेवलपमेंट एंड ब्यूटिफिकेशन ऑफ़ द सोनीपत टाउन society for the development and beautification of the sonepat town बनाई गई. ज़िले के डीसी ही इस संस्था के अध्यक्ष होते है और राजेश खत्री इसके सदस्य सचिव हैं .
दिलचस्प है कि इमारत बनाने से लेकर संग्रहित वस्तुओं का इंतजाम तक सोनीपत और हरियाणा के अन्य हिस्सों से ताल्लुक रखने वाले लोगों के सहयोग से हुआ. पौराणिक कथा के मुताबिक़ महाभारत काल में युद्ध से बचने के समझौते के तहत पांडवों के लिए जिन पांच गांव का क्षेत्र देने का ज़िक्र हुआ उनमें से एक सोनीपत था जिसे स्वर्णप्रस्थ कहा जाता था. इस कहानी को बताती पेंटिंग भी म्यूजियम में है . सेठों के गल्ले से लेकर सात तालों में सरकारी खजाने और दस्तावेजों को कैसे रखा जाता था , वो सब यहां देखने को मिलता है. बाहर से एक किले की तरह दिखने वाला ये म्यूजियम उन लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत है जो समाज और देश के लिए समर्पित होकर काम कर रहे हैं लेकिन समय पर अपेक्षित सहयोग न मिलने से कभी कभी निराश या हताश हो जाते हैं . इस संग्रहालय को बनाने में राजेश खत्री को भी ऐसे हालात का सामना करना पड़ा था लेकिन लगन , मेहनत , सब्र व ईमानदारी से आखिर उनका ये सपना पूरा हो रहा है . 2017 में संग्रहालय की इमारत को बनाने का काम पूरा हुआ और 2015 से 8 साल यहां प्रदर्शित वस्तुओं को जमा करने में लगे.
पूरे हरियाणा में अलग तरह से बनाए गए सोनीपत के इस म्यूजियम sonepat museum में रखीं इन 1300 वस्तुओं में सभी असली हैं जो 100 से 3000 तक पुरानी हैं. इनमें से कुछ यहीं आसपास की ज़मीन से खुदाई के दौरान मिलीं हैंजो पुरातत्व महत्व की हैं. रोचक बात है कि इनमें से ज्यादातर लोगों ने संग्रहालय को दान की है या खुद राजेश खत्री ने अलग अलग स्थानों में जाकर खोजी हैं . यहां अभी काफी कुछ नया होने की प्रक्रिया चल रही है. चार नई दीर्घा बनाई जानी है.