हिमाचल प्रदेश में पुलिस महानिरीक्षक के ओहदे पर तैनात भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी ज़हूर हैदर जैदी (ips zahur haider zaidi ) और 7 अन्य पुलिसकर्मियों को चंडीगढ़ की एक अदालत ने उम्र कैद की सज़ा सुनाई है. यह पुलिसकर्मी सूरज नाम के एक शख्स की पुलिस हिरासत में मौत के लिए ज़िम्मेदार साबित हुए. सूरज को एक नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था .
यह 2017 का केस हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के कोटखाई थाने का है और इसकी जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो ( सीबीआई cbi ) ने की थी. मुकदमा चंडीगढ़ स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में चल रहा था और यह फैसला सोमवार को जज अलका मलिक ने सुनाया. अदालत ने पुलिस कर्मियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
विशेष अदालत की न्यायाधीश अलका मलिक ने कहा, “सभ्य समाज में हिरासत में हिंसा बहुत चिंता का विषय है और कानून के शासन द्वारा शासित सभ्य समाज में हिरासत में मौत शायद सबसे बुरे अपराधों में से एक है.” अदालत ने कहा, “नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन की रक्षा के उद्देश्य से संवैधानिक और वैधानिक प्रावधानों के बावजूद, पुलिस हिरासत में यातना और मौत की बढ़ती घटनाएं दिखाती हैं कि अभी भी मानवाधिकारों का सबसे बुरा उल्लंघन हो रहा है, वह भी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के हाथों, जैसा कि इस मामले में हुआ है.”
यह पुलिसकर्मी दोषी पाए गए :
अदालत ने 18 जनवरी को हिमाचल प्रदेश पुलिस ( himachal pradesh police ) के आईजी ज़हूर हैदर जैदी (55 वर्ष ), तत्कालीन पुलिस उपाधीक्षक मनोज जोशी (42 वर्ष ), उपनिरीक्षक राजिंदर सिंह (38 वर्ष ), सहायक उपनिरीक्षक दीप चंद शर्मा (59 वर्ष ), हेड कांस्टेबल मोहन लाल (58 वर्ष ), सूरत सिंह (50 वर्ष ), रफी मोहम्मद (43 वर्ष ) और कांस्टेबल रंजीत सटेटा (37 वर्ष ) को दोषी ठहराया था. हालांकि, अदालत ने इस केस में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ( एसपी ) डी डब्ल्यू नेगी ( sp d w negi ) को बरी किया है. उपरोक्त पुलिस कर्मियों को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था , जिसमें 302 (हत्या) को 120-बी (आपराधिक साजिश), 330 (जुर्म का इकबाल करवाने के लिए जानते बुझते हुए चोट पहुंचाना), 348 (स्वीकारोक्ति करवाने के लिए गलत तरीके से बंधक बनाना), 195 (झूठे सबूत देना), 196 (झूठे सबूत इस्तेमाल करना), 201 ( सबूत मिटाना ) और 218 (झूठे रिकॉर्ड बनाना) शामिल हैं.
यूं हुई पड़ताल :
यह मामला 4 जुलाई, 2017 का है, जब शिमला जिले में स्कूल की छुट्टी के बाद एक नाबालिग छात्रा गायब हो गई थी. दो दिन बाद उसका शव पास के जंगल से बरामद हुआ. पोस्टमार्टम में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई.
इस केस को लेकर उभरे सार्वजनिक आक्रोश के बाद, हिमाचल प्रदेश की सरकार ने 13 जुलाई, 2017 को आईपीएस ज़हूर हैदर जैदी के नेतृत्व में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया. इस एसआईटी ने सूरज सिंह समेत पांच संदिग्धों को गिरफ्तार किया था . लेकिन सूरज की 18 जुलाई, 2017 को शिमला जिले के कोटखाई पुलिस स्टेशन में हिरासत में मौत ( death in police custody) हो गई . हिमाचल पुलिस ने शुरू में दावा किया था कि सूरज की मौत लॉकअप में बंद किए गए एक अन्य आरोपी के साथ हाथापाई में हुई .
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने बाद में दोनों मामलों यानि छात्रा से बलात्कार और हत्या तथा सूरज की हिरासत में मौत की जांच करने का ज़िम्मा सीबीआई को दिया. सीबीआई ने 22 जुलाई, 2017 को मामला दर्ज किया और बाद में 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी जैदी, डीसीपी जोशी और अन्य आरोपी पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर लिया.
ऐसे चला केस :
सीबीआई जांच के मुताबिक़ , अपराध कबूल करने के लिए सूरज पर दबाव बनाया गया जिसके लिए उसे टॉर्चर किया गया था. इसके नतीजे के तौर पर जिसके सूरज को घातक चोटें आईं. एक मेडिकल बोर्ड ने निष्कर्ष निकाला कि उसके शरीर पर 20 से अधिक चोटें लाठी या डंडे जैसी किसी कुंद, बेलनाकार वस्तु से लगी थीं. एम्स (aiims ) के एक मेडिकल बोर्ड ने भी यातना के निष्कर्षों की पुष्टि की. नवंबर 2018 में, आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मामले को शिमला से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की. सीबीआई ने भी देरी और ज़हूर हैदर जैदी द्वारा गवाहों को प्रभावित करने की चिंताओं का हवाला देते हुए मुक़दमा ट्रांसफर करने के पक्ष में तर्क दिया. मई 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएस जैदी को जमानत दे दी और हिरासत में मौत के मामले को सुनवाई के लिए चंडीगढ़ सीबीआई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया था.