एक जमाने में तेज़ तर्रारी के लिए मशहूर रहे दिल्ली पुलिस के अधिकारी पण्डित हरि देव भर्ती तो सहायक पुलिस निरीक्षक (एएसआई – ASI) के तौर पर हुए थे लेकिन रुतबा ऐसा बना लिया कि पुलिस कमिश्नर तक उन्हें उस्ताद मानते थे. भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के कई अफसरों को पण्डित हरि देव ने थाना स्तर के काम की ट्रेनिंग दी और अफसर भी वो जो कमिश्नर से लेकर गवर्नर तक बन गये. निखिल कुमार, मुकुंद बिहारी कौशल, डॉ केके पॉल, तिलक राज कक्कड़… ये कुछ प्रमुख नाम हैं लेकिन लिस्ट और भी लम्बी है. हिन्दी सिनेमा की दुनिया में अभिनेता राहुल देव (विलेन के किरदार के तौर पर मशहूर) और मुकुल देव के पिता के तौर पर भी पण्डित हरि देव की पहचान बनी. लेकिन दिल्ली पुलिस में चर्चित रहे पण्डित हरि देव अब नहीं रहे.
सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी -ACP) के तौर पर रिटायर हुए पण्डित हरि देव ने 92 साल की उम्र में बुधवार को दिल्ली में अंतिम सांस ली. तकरीबन महीने भर से वह बीमार थे और अस्पताल में इलाज करवा रहे थे. लोधी कालोनी के शवदाह गृह पर पुलिस के पुराने साथियों ने तो उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की ही, वे पुलिस अधिकारी भी पहुंचे जिन्होंने सिर्फ उनका नाम ही सुना था. शनिवार, 20 अप्रैल को दिल्ली के साकेत स्थित गुरूद्वारे में शाम 4 से 5 बजे तक उनकी याद में प्रार्थना सभा होगी.
लम्बे अरसे तक दिल्ली में क्राइम रिपोर्टिंग करते रहे पत्रकार पंकज वोहरा पण्डित हरिदेव के उस केस को याद करते हैं जब अगवा की गई एक शख्सियत को छुड़ाने के लिए वह अपहरण करने वाले गैंग के पास पत्रकार बनकर पहुंच गये थे. ये अस्सी के उत्तरार्द्ध की बात है. बाद में वह शख्स मध्य प्रदेश में मंत्री भी बने.
दिल्ली में दंगे को नियंत्रित करने में साहसपूर्ण काम के लिए उन्हें गैलेंटरी मेडल दिया गया था. तब वह दरियागंज सब डिवीजन के एसीपी थे. उसी दौरान तिलक राज कक्कड़ को भी ये मेडल दिया गया था. श्री कक्कड़ तब उनके बास यानी उपायुक्त (डीसीपी) थे.
दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी- NSG) के महानिदेशक के अलावा केन्द्रीय गृह मंत्रालय में सचिव रहे तिलक राज कक्कड़ 1979 के उस सितम्बर महीने की घटना को याद करते हुए बताते हैं कि तब जामा मस्जिद, हौजकाज़ी और आसपास के इलाके में साम्प्रदायिक हिंसा भड़की थी. शायद पांच लोग मारे गये थे. ज़बरदस्त चाकूबाजी, पथराव और आगज़नी का दौर चल रहा था. कई पुलिस कर्मी भी ज़ख़्मी हो गये थे. दंगाई चावड़ी बाज़ार और दरीबे की तरफ बढ़ रहे थे. हालात और बिगड़ सकते थे लिहाज़ा उन्हें काबू करने के लिए वह लगातार 36 घंटे जूझते रहे. जोखिम को देखते हुए भी पुलिस टीम को श्री कक्कड़ और पण्डित हरिदेव लीड कर रहे थे लेकिन जान हथेली पर रख कर. इस दौरान दोनों बुरी तरह घायल भी हुए.
श्री कक्कड़ कहते हैं, ‘ पण्डित हरिदेव गज़ब की सूझबूझ वाले पुलिस अफसर थे. पुलिस के काम की बारीकियां समझने वाले और धैर्यवान अधिकारी ‘.
पण्डित हरिदेव दिल्ली पुलिस में 1950 में एएसआई के तौर पर भर्ती हुये. वह कुछ अहम थानों के प्रभारी (SHO) भी रहे और फिर 1987 में संसद मार्ग के एसीपी के तौर पर रिटायर हुये. रिटायरमेंट के बाद भी वह निजी संस्थानों के लिए काम करते रहे. जब तक स्वास्थ्य ने साथ दिया, वह सामाजिक कामों में भी सक्रिय रहे.
दिल्ली पुलिस रिटायर्ड आफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और हाल ही तक प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख रहे आईपीएस कर्नल सिंह कहते हैं कि पण्डित हरिदेव के साथ उन्होंने काम तो नहीं किया लेकिन उनकी कार्यकुशलता काबिले तारीफ़ थी. रिटायरमेंट के कई साल बाद भी दिल्ली पुलिस में उनके काम को याद किया जाता रहा.