इकतालीस साल की अश्विनी गोकुल देवरे वाकई कमाल की हैं. उनके जैसे किरदार वाली कोई दूसरी महिला का मिलना बेहद मुश्किल है और अब अश्विनी जो करने जा रही हैं वैसा कर पाने की सोचना किसी भी शक्तिमान को हिला कर रख छोड़ेगा. अश्विनी देवरे अब लगातार 10 किलोमीटर समुद्र में तैरेंगी , इसके बाद 421 किलोमीटर साइकिल चलाएंगी और फिर 85 किलोमीटर तक दौड़ कर रेस पूरी करेंगी . यह सब सिर्फ 72 घंटे में कर पाना सच में रोमांचक कर डालने वाला है खास तौर से तब जब इसे ऐसी महिला करे जो पुलिस की नौकरी करने के साथ साथ स्कूल जाते अपने दो बच्चों का लालन पालन भी करती है. ऐसा किरदार तो कल्पनाओं या फिल्मों में ही मिल सकता है.
अब तक 6 अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों और कितने ही राष्ट्रीय मुकाबलों में अपना सिक्का जमा चुकी अश्विनी गोकुल देवरे बीस – तीस या पचास नहीं पूरे 600 से ज्यादा मेडल जीत चूकी हैं. ये सब 2016 से 2023 के बीच कर डाला. औसत देखें तो हर साल 100 मेडल. महाराष्ट्र के नासिक में उनके घर का शायद ही कोई कोना होगा जहां उनके मेडल , ट्रॉफी , सर्टिफिकेट या सम्मान प्रतीक न टंगे हुए हों . वे महाराष्ट्र की पहली ऐसी महिला पुलिसकर्मी है जिसने विश्व आयरनमेन मुकाबला (world ironman competition ) सफलता से पूरा किया. पिछले साल यानि 2022 की ही बात है जब अश्विनी देवरे ने इस मुकाबले को कजाकिस्तान में पूरा करके एंड्यूरेन्स स्पोर्ट्स ( endurance sports ) की दुनिया में अपनी पहचान साबित कर डाली. अश्विनी कहती हैं , ” मैं यह साबित करना चाहती हूँ कि लड़की किसी भी तरह की उपलब्धि हासिल कर सकती है .” लंडन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स और एशिया बुक ऑफ़ रिकार्ड्स आदि में भी उनका नाम दर्ज है .
अश्विनी गोकुल देवरे ( ashwini gokul deore ) इस तरह की बात सिर्फ कहने भर के लिए नहीं कहती . वो इसे साबित करने का पूरा दम रखती हैं . यूं उन्होंने खुद इस बात को पहले भी बार बार साबित किया है. जीवन के हर कदम पर असम्भव सी दिखने वाली उपलब्धि उन्होंने अपने हौसले , ताकत और सूझबूझ के बूते हासिल की है. जीवनसाथी के तौर पर उन्हें मिले फौजी गोकुल की शख्सियत भी शानदार है. भारतीय सेना की सबसे तेज़ तर्रार कमांडो वाली यूनिट 9 पैरा स्पेशल फोर्सेस ( 9 para sf) में है और कश्मीर बॉर्डर में तैनात हैं .
संघर्षों से शुरुआत :
नासिक ज़िले के सटाणा की रहने वाली अश्विनी एक गरीब किसान परिवार की चार संतानों में से एक है और पुलिस की सेवा में आने वाली अपने घर की पहली सदस्य हैं . पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और भेदभाव वाले व्यवहार के प्रति बागीपन उनको खाकी की तरफ खींच लाया. अश्विनी ने पुलिस में भर्ती होने की ठान ली और इसी इरादे से किसान पिता का घर छोड़कर मुंबई चली आई . जीवन जीने के साधन जुटाने के लिए यहां लोगों के घरों में झाड़ू पोछा तक किया. 12 वीं क्लास तक की पढ़ाई करते और खेलों की भी हर विधा में अव्वल आने वाली अश्विनी महाराष्ट्र पुलिस में सिपाही के तौर पर 2001 में भर्ती हुई . वैसे अब अश्विनी दो तरक्की पाकर हवलदार ( हेड कांस्टेबल ) हो गई हैं.
जीवन साथी के रूप में मिले जिन फ़ौजी गोकुल ने उनकी जिंदगी में नए रंग भरे, वो खुद भी संघर्षों की आंच में तपकर सोना बने हैं. गोकुल के पिता ने दूसरी शादी कर ली थी और गोकुल ने बिना माँ बाप के अपना बचपन दादा दादी की परवरिश में बिताया. वहीं पर अश्विनी की मौसी रहती थीं जो गोकुल के बारे में जानती थीं. अश्विनी बताती हैं कि उनके समाज में अब भी दहेज़ एक नासूर बना हुआ है. बगैर दहेज लिए कोई नौजवान शादी नहीं करता लेकिन गोकुल ने तय कर रखा था कि वो दहेज़ नहीं लेगा . उनके विवाह बंधन में ये एक बड़ा पहलू रहा.
बेटा बना गुरु :
यूं तो खेलों में अश्विनी की शुरू से ही रुचि थी और वो अच्छी एथलीट थीं . यूं साइकिल बचपन से चलाई और ड्यूटी पर आना जाना भी साइकिल से होता था लेकिन खेल के तौर पर साइकिलिंग की शुरुआत उन्होंने बहुत देर से की . 2018 में पहले बीआरएम ( BRM) में हिस्सा लिया . आयरनमेन ट्रायथलोन ( ironman triathlon ) के मुकाबले के बारे में जब सोचा तो मुश्किल ये थी कि उनको तैरना तक नहीं आता था . दिलचस्प है कि उनको तैरने का तरीका उनके बेटे अनिकेत ने सिखाया जो तब खुद बमुश्किल 8 साल का था. अनिकेत ने स्कूल में स्विमिंग सीख रहा था . यही नहीं अनिकेत अपनी मां की प्रैक्टिस के लिए साथ साथ भी तैरता था. अनिकेत अब 12 साल का है और छोटा बेटा शौर्य 9 साल का है. दोनों भाई भी एथलीट हैं और विभिन्न खेलों में दिलचस्पी रखते हैं . शायद माता पिता से दोनों में ये अनुवांशिक गुण आया . कभी मौका लगे तो पूरा परिवार ही मेराथन या लम्बी रेस में हिस्सा लेता है .
अश्विनी ने बताया कि जब बेटा – बेते बहुत छोटे तब वे उनको साइकिल पर आगे – पीछे बिठाकर कर प्ले स्कूल या बेबी सिटिंग के लिए ले जाती थी. ड्यूटी से लौटते वक्त उनको लेकर आया करती थीं . दोनों कुछ बड़े हो गए और खुद साइकिल चलाने लगे हैं लिहाज़ा जब अश्विनी ड्यूटी पर जातीं हैं तो उनको साथ लेकर जातीं है. हालाँकि दोनों आते जाते अपनी अपनी साइकिल पर ही हैं . अश्विनी नासिक रोड पुलिस स्टेशन के अधीन एक ऐसी यूनिट ‘ निर्भया ‘ का हिस्सा हैं जो महिलाओं से जुड़े मामलों को देखती है .
साधन जुटाने की मुश्किलें :
पुलिस की घंटों लम्बी लगातार ड्यूटी के साथ बच्चों का ख्याल रखते हुए अपनी प्रैक्टिस कर पाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता. लिहाज़ा जब एक साप्ताहिक छुट्टी होती है तब भी वे प्रैक्टिस करती हैं . यही कोई एक मुश्किल नहीं है. आयरनमेन मुकाबले की तैयारी के दौरान दो साल तक किसी एक रविवार की छुट्टी पर भी अश्विनी ने आराम नहीं किया था. अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों में जाने पर खूब खर्चा भी होता है लेकिन सरकार या पुलिस विभाग से उनको किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं मिलती. आयरनमेन मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए उनको यात्रा और प्रैक्टिस उपकरणों पर जो खर्चा हुआ उसमें कुछ रकम पति ने दी और बाकी 5 लाख रूपये का क़र्ज़ बैंक से लेना पड़ा. अभी वो पूरा उतरा नहीं कि अल्ट्रामैन मुकाबले के लिए धन की चिंता सताने लगी है. कम से कम 13 लाख रुपये चाहिए. ये भी तब जबकि अश्विनी विशेषज्ञ से कोचिंग नहीं ले रहीं. एक कोच ने अपनी फीस के तौर पर 80 हज़ार रूपये मांगे थे जो अश्विनी देने की सामर्थ्य नहीं रखती थीं. अश्विनी ने खुद को ही अपना गुरु बनाया. इंटरनेट पर मिलने वाली जानकारी और वीडियो देख देख कर गुर सीखे.
परिवार भी कमाल है :
अश्विनी गोकुल देवरे परिवार के लिए भी प्रेरणा है . उनकी राह पर चलते हुए एक बहन ने भी पुलिस सेवा को अपना करियर बनाया जो वर्तमान में ठाणे में तैनात है. उनके पति भी पुलिस में हैं . पांच साल की उम्र से तैराकी सीख रहा बेटा भी शानदार तैराक बन रहा है . जब कभी मौका लगता है तो पूरा परिवार ओपन मेराथन या ऐसे मुकाबलों में हिस्सा लेता है . अश्विनी बातचीत के दौरान हलके फुल्के अंदाज़ में एक दिलचस्प वाक्य भी साझा करती हैं जब वह कज़ाकिस्तान से आयरनमेन मुकाबला करके लौटीं. सब उनकी कामयाबी पर खुश थे और जमकर तारीफ़ कर रहे थे लेकिन उनके पति ने बाकियों की तरह ख़ास प्रतिक्रिया नहीं की. अश्वनी कहती हैं , ” जब मैंने इस बारे में पूछा तो बोले – ऐसे दस आयरन जैसे मुकाबले हम सेना में करते हैं”. वैसे गोकुल उनकी हौसला अफज़ाई या मदद करने में पीछे नहीं हटते. जब छुट्टियों में घर लौटते हैं तो बच्चों की पूरी देखभाल भी सँभालते हैं .
पुलिस की नौकरी और एंड्यूरेन्स मुकाबलों के अश्विनी देवरे के जुनून का परिवार पर अलग तरह से भी असर पड़ा है . अश्वनी कहती है कि उनकी संतान ने बचपन से ही खुद को संभालना शुरू कर दिया था क्योंकि खुद अश्विनी उनको समय नहीं दे पाती थीं और पति की तैनाती भी बाहर रहती थी. अश्विनी बताती हैं , ” अनिकेत 7-8 साल की उम्र में अपने से 3 साल छोते भाई की देखभाल करना सीख गया था और उसे ऐसे समझाता था जैसे खुद कोई 20 – 22 साल का नौजवान हो .” असल में हालात ने अनिकेत के स्वभाव में वक्त से पहले परिपक्वता ला दी है .

जुनून जारी रहेगा :
फिलहाल अश्विनी देवरे ने अपना पूरा ध्यान दुनिया के सबसे बड़े मुकाबले अल्ट्रामेन ट्रायथलोन ( ultraman triathlon) की प्रैक्टिस में लगा रखा है. वेट लिफ्टिंग और पॉवर लिफ्टिंग तो साथ चलती ही है. अश्विनी अल्ट्रामेन मुकाबले में कहाँ हिस्सा लेंगी अभी तय नहीं है दक्षिण अफ्रीका में या फिर अमेरिका के फ्लोरिडा में .
