खाकी इन डस्ट स्टॉर्म : आमोद कंठ की किताब जिसमें यादें और पुलिस के खुलासे हैं

779
खाकी इन डस्ट स्टॉर्म
आईपीएस अधिकारी रहे आमोद कंठ.

खाकी इन डस्ट स्टॉर्म (Khaki in Dust Storm) यानि ‘धूल के चक्रवात में खाकी’ की शुरुआत 30 साल से भी पहले जुर्म की दुनिया की उन घटनाओं के ज़िक्र से होती है जिन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में सत्ता से लेकर सियासत तक की चूलें हिला डाली थीं. ये दौर वो था जब खालिस्तान समर्थक आतंकवाद चरम पर था जिसका सबसे ज्यादा असर पंजाब और दिल्ली पर था. स्वर्ण मन्दिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी की हत्या, सिखों के कत्लेआम और खून खराबे के बीच राजधानी धू धू करके जली थी. जनरल एएस वैद्य और कांग्रेस के नेता ललित माकन, अर्जुन दास की हत्या भी उस समय में गई. इन दुर्भाग्यपूर्ण बड़ी घटनाओं और तबाही के मंजर के साथ नशीले पदार्थों की तस्करी भी उन दिनों बड़ी चुनौती थी.

दिल्ली पुलिस में तैनाती के दौरान इन हालात को करीब से देखने, परखने और जांचने से जुड़े रहे आईपीएस आमोद कंठ ने अपने अनुभव और यादों को अपनी इस किताब ‘खाकी इन डस्ट स्टॉर्म’ में साझा किया है. अपने सीबीआई में कार्यकाल के दौरान पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी हत्याकांड की जांच से भी वह जुड़े रहे. अरुणाचल प्रदेश में दो साल पुलिस महानिदेशक के पद पर रहने के बाद रिटायर हुए आमोद कंठ का कहना है कि रोजमर्रा के काम, विभिन्न मामलों की जांच पड़ताल और उससे जुड़े तथ्य, वरिष्ठों के सलाह मशविरे आदि के सन्दर्भ में और उन्हें याद रखने के लिए वह डायरी में नोट कर लिया करते थे. उनकी ये ‘डेली डायरी’ एक तरह की आदत ही बन गई थी. इससे उन्हें मदद भी मिलती थी. उन्ही डेली डायरी और घटनाओं के आकलन के आधार पर आज के दौर के हिसाब से किताब में कुछ लिखा गया है.

खाकी इन डस्ट स्टॉर्म
आईपीएस अधिकारी रहे आमोद कंठ.

आमोद कंठ ने इस किताब में कई अहम केस की जांच से जुड़ी पर्दे के पीछे की कहानियों का ज़िक्र किया है वहीं इसमें कुछ नाजायज़ गठजोड़ों के खुलासे भी किये गये हैं. वे गठजोड़ जो क़ानून बनाने वालों, उनका पालन कराने वालों और उनका उल्लंघन करने वालों के बीच रहे जो अक्सर फ़िल्मी परदे पर दिखाई देते हैं. यानि वो गठजोड़ जिसमें नेता, पुलिस और अपराधी शामिल होते हैं. वैसे श्री कंठ खुद राजनीति में हाथ आज़माने की नाकाम कोशिश कर चुके हैं. उन्होंने 2008 दिल्ली के संगम विहार विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुना लड़ा था.

श्री कंठ का कहना है कि वर्तमान भारतीय पुलिस का गठन 1857 की आज़ादी की पहली लड़ाई का नतीजा है. इससे चार साल बाद यानि 1861 में बनाये गये नियमों (भारतीय पुलिस अधिनियम 1861) के मुताबिक़ पुलिस काम करती है. वो क़ानून भारत में ब्रिटिश राज को बरकरार रखने के मकसद से बनाये गये थे और दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी पुलिस का परम्परागत कामकाज उसी के हिसाब से चल रहा है. पुलिस सीआरपीसी, आईपीसी, एविडेंस एक्ट के हिसाब से ही काम कर रही है ना कि एक सेवा के हिसाब से. पुलिस को एक ऐसी सेवा के तौर पर विकसित करने की ज़रूरत है जो नागरिकों की मदद सीधे तौर पर कर सके. श्री कंठ ने इस सन्दर्भ में गठित की गई अपनी संस्था ‘प्रयास’ के बारे में लिखा है जो ज़रूरतमंद और कमज़ोर वर्ग के बच्चों, युवकों और महिलाओ के कल्याण के लिए काम करती है.

आमोद कंठ का कहना है कि क़ानून व्यवस्था को सम्भालने, अपराधों की जांच पड़ताल और रोकथाम के साथ साथ अन्य तरह के संकट भरे हालात संभाल रहे पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी से ये उम्मीद नहीं की जानी चाहिए की वो गहराई से अनुसंधान करे लेकिन वो सिर्फ इस प्रक्रिया का हिस्सा मात्र भी बना नहीं रह सकता है. पुलिस अधिकारी को घटनाओं के सम्पूर्ण पहलुओं को समग्रता से लेते हुए मंथन करना चाहिए ताकि उसे व्यापक दृष्टिकोण से देखा जा सके.

वरिष्ठ अधिकारी कंठ कुछेक मामलों में नाम आने से ऐसे विवादों में भी आये जैसाकि कामकाज के दौरान कई पुलिस अधिकारियों को सामना करना पड़ता है. ऐसे में उनके अनुभव और यादें कई पुलिस अधिकारियों और खासतौर से नये अधिकारियों के काम आ सकती हैं.