आतंकवाद से ग्रस्त जम्मू – कश्मीर से एक शहीद जाबाज़ पुलिस कर्मी का परिवार, भारत में शांतिकाल में मिलने वाला बहादुरी का सबसे बडा सम्मान, अशोक चक्र लेने के लिए इस आस से भी आया है कि सरकार उनकी छोटी सी एक इच्छा भी पूरी कर देगी. ये परिवार पूंछ ज़िले के मेंढर के धारना गांव के रहने वाले उस सहायक उप निरीक्षक बाबूराम का है जो आतंकवादियों से लड़ते हुए पिछले साल शहीद हुए थे. पुलिस और अर्धसैन्य बलों में भर्ती होकर सेवा करने के जुनून से भरे इस परिवार के साथ रक्षक न्यूज़ टीम ने ‘सड़क से सरहद तक’ की विशेष कवरेज के दौरान समय बिताया, इनके जज़्बे और इनकी तकलीफों को जानने की कोशिश की.
1999 में जम्मू कश्मीर पुलिस में सिपाही के तौर भर्ती हुए साहसी और जुनूनी बाबूराम ने अपनी सूझबूझ और बहादुरी के दम पर पुलिस में जीते जी ही काफी शोहरत हासिल करके एक अलग पहचान बना ली थी. आतंकवादरोधक ऑपरेशनों (anti terrorist operations) में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाले बाबूराम ने 14 मुठभेड़ों में हिस्सा लिया था जिनमें 28 आतंकवादी मारे गये थे. थाने की सेवा की बजाय वह विशेष अभियानों में जाना ज्यादा पसंद करते थे. चुनौतियों और खतरों का सामना करना उनकी आदत में शुमार हो चुका था. 48 वर्षीय एएसआई बाबूराम ने अपने ज़्यादातर पुलिस करियर में जम्मू कश्मीर पुलिस में विशेष अभियान समूह (special operation group) यानि एसओजी में ही काम किया. एक तरह से वह इन कार्रवाइयों के एक्सपर्ट हो गये थे.
पन्था चौक ऑपरेशन :
वो 29 अगस्त 2020 की शाम का वक्त था. श्रीनगर का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले पन्था चौक पर जम्मू कश्मीर पुलिस के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर बाबू राम (ASI Baburam) अपनी टीम के साथ हाइवे से गुजरने वालों और वाहनेां पर नजर रखे हुए थे. इसी बीच एक स्कूटी पर सवार तीन आतंकी आए और वहां सड़क किनारे भीड़ में खड़े केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (crpf) के एक जवान पर अचानक हमला कर डाला. यही नहीं आतंकी उस जवान से हथियार भी छीनने लगे. इसी इरादे से उन्होंने नाका पार्टी पर अंधाधुंध गोलियां भी दागी. तब हालात अफरा तफरी वाले हो गये. एएसआई बाबू राम ने वहां आसपास मौजूद लोगों को बचाते हुए तुरंत हवा में फायर किया जिससे आतंकवादी घबरा गए और जान बचाते हुए नज़दीक के मोहल्ले में दाखिल हो गए.
एएसआई बाबू राम ने अपने साथियों के साथ उनका पीछा किया. उन्होंने उस मकान को घेर लिया जिसमें आतंकवादी जा छिपे थे. पहले उन्होंने आतंकवादियों का ठिकाना बने इस मकान में फंसे लोगों को आतंकवादियों की गोलीबारी के बीच ही बाहर निकालने का ऑपरेशन शुरु किया. बाबूराम ने अपने दस्ते को निर्देश दिया कि वह आतंकियों की घेराबंदी ढीली न होने दें. इस बीच, सुरक्षाबलों की और टुकड़ियां भी पहुंच गई. इस बीच आतंकवादियों से मुकाबला करने या उनको मार गिराने का इरादा बदलते हुए सरेंडर के लिए मनाने की कोशिश शुरु की गईं. कुछ घंटे तक यही सिलसिला चलता रहा.
वो आखिरी फोन कॉल :
इसी ऑपरेशन के बीच में शायद उन्हें परिवार का ख्याल आया होगा. एएसआई बाबूराम की बेटी सानवी शर्मा बताती है कि तकरीबन रात 10.30 बजे का वक्त था जब पापा की कॉल आई और बस इतना ही कहा था कि एक ऑपरेशन में जा रहा हूं. बाबूराम की पत्नी रीना बताती हैं, उस रात घर में की गई उनकी वो आखिरी कॉल थी. खुद एक पुलिस परिवार की बेटी एक पुलिस परिवार में ही पुत्रवधू बनकर आई रीना के लिए बाबूराम का आतंकरोधी कार्रवाइयों में जाना कुछ हैरानी या परेशानी की बात नहीं थी लेकिन इस ऑपरेशन ने तो सबकुछ ही ख़त्म कर दिया था.
यूं हुई शहादत :
असल में, ऑपरेशन के बीच खबर आई कि मकान में आतंकवादियों के साथ कुछ अैर लोग भी हैं. बाबू राम फिर आगे बढ़े और वहां फंसे लोगों को निकालने लगे. इसी बीच उन्हें आतंकियों की गोली लगी. बावजूद इसके उन्होंने मोर्चा नहीं छोड़ा. उनका लश्कर ए तैयबा के कमांडर साकिब बशीर के साथ आमने सामने का मुकाबला हुआ. कुछ ही देर में आतंकवादी साकिब बशीर मारा गया.
इस बीच ज़ख़्मी एएसआई बाबू राम को अस्पताल ले जाया गया लेकिन जहां जख्म इतने थे और खून इतना बहा कि उनके प्राण बच न सके. वहीं रात को गोलीबारी होती रही. साकिब बशीर के दो और साथी उमर तारिक और जुबैर अहमद शेख भी सुबह का सूरज निकलने से पहले मारे गए. ये तीनों आतंकवादी पाम्पोर के द्रंगबल के रहने वाले थे. साकिब साल 2018 से आतंकी कार्रवाइयों में सक्रिय था. बैंक डकैती, सुरक्षाबलों के हथियार छीनने, सुरक्षाकर्मियों पर गोली चलाने और ग्रेनेड फेंकने की वारदात के अलावा पंचायत प्रतिनिधियों को धमकाने के एक दर्जन से ज्यादा मामलों में पुलिस को उसकी तलाश थी. एएसआई बाबूराम ने अपनी जान दांव पर लगाकर तुरंत कार्रवाई नहीं की होती तो ये खतरनाक आतंकवादी न जाने और कितनी भयानक घटनाओं को अंजाम देते.
जांबाज़ी का सम्मान – अशोक चक्र :
अपनी जान की परवाह न करके औरों को बचाने और जांबाज़ी के साथ हर बार आतंकवादियों को ज़मीं चटाने वाले जम्मू कश्मीर पुलिस के एएसआई के बलिदान को पुलिस महकमे और सरकार ने सम्मान देते हुए उनको अशोक चक्र (मरणोपरांत) देने का फैसला लिया. रीना बताती हैं बीते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इस सरकार के इस फैसले की जानकारी उनको मिली. मेंढर थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर कोहली ने पहले पहल उनको सूचना दी. फिर प्रधानमन्त्री कार्यालय और केन्द्रीय गृह मंत्रालय से भी पत्र आया.
दिल का दर्द :
अशोक चक्र सशस्त्र बलों, अर्द्धसैन्य बलों और पुलिस के कार्मिकों को शांतिकाल में दिया जाने वाला बहादुरी का ऐसा पुरस्कार है जो परमवीर चक्र के बराबर माना जाता है. इस सम्मान के लिए शहीद एएसआई बाबूराम की पत्नी रीना और परिवार के सदस्य फख्र महसूस करते हुए सरकार का आभार भी व्यक्त करते हैं लेकिन उनको इस सिस्टम से शिकायत भी है. रीना का कहना है उनके पति के नाम पर गांव के प्रवेश से पहले एक चौक का नाम ‘शहीद एएसआई बाबूराम चौक तो रख दिया गया है लेकिन न तो इसकी ठीक तरह से पहचान बनाई गई है और न ही इसकी संजीदगी से कोशिश की गई. शहीद के नाम वाला एक छोटा सा बोर्ड सड़क के किनारे लगाया गया है जिसके आसपास इतने वाहन खड़े होते हैं तो दिखाई तक नहीं देता.
यही एएसआई बाबू राम का परिवार और उनके भाइयों के परिवार जिस पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं वहां उनके गांव तक जाने के लिए तो सड़क है लेकिन इसके आगे घर तक जाने के पक्का रास्ता नहीं है. रीना और इनका परिवार इस रास्ते को बनाने में मदद के लिए पुलिस वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर स्थानीय प्रशासन को गुहार लगा चुका है लेकिन एक शहीद का दर्जा प्राप्त शूरवीर के घर तक पहुँचने के लिए मुश्किल से 100 मीटर का रास्ता भी नहीं बनाया जा सका. घर के ड्राइंग रूम में बैठी रीना जब ये सब बता रही थीं तब नम हुई उनकी आँखें बार बार कमरे के उस कोने को देखने लगती थीं जिसमें एएसआई की वर्दी तो टंगी थी लेकिन कांच के फ्रेम में संजोकर रखी गई थी. और उसे पहनने वाला भी ऐसे ही कांच के फ्रेम के भीतर रह गया था जिसके आसपास बस अब फूल ही थे. उनको उम्मीद है अब दिल्ली में आ कर कहने के बाद शायद सरकार इन दोनों मुद्दों पर गौर करेगी.
ऐसा हे ये परिवार :
एएसआई बाबूराम के पूर्वज धारना गांव के ही रहने वाले है. एएसआई बाबूराम के चार भाई हैं. इनमें से सबसे बड़े सुभाष चन्द्र जम्मू कश्मीर पुलिस से सब इंस्पेक्टर के तौर पर रिटायर हुए. उनसे छोटे गुलशन कुमार अब भी जम्मू कश्मीर पुलिस में सेवारत हैं. सबसे छोटे भाई प्रवीन कुमार सीमा सुरक्षा बल से सेवामुक्त होकर हाल ही में आये हैं. एक भाई ओम प्रकाश हैं जो मन्दिर में पुजारी हैं. एएसआई बाबू राम की पत्नी रीना शर्मा के पिता योगराज शर्मा भारतीय सेना की जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंटरी की 13 वीं (13 JAK LI) में थे. यही नहीं रीना के एक भाई भी जम्मू कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर हैं.
एएसआई बाबूराम के तीन बच्चों में से सबसे बड़ा 18 साल का माणिक है. 12 वीं का छात्र है, कबड्डी का खिलाड़ी है और पिता की तरह ही जुनूनी भी है. छोटा बेटा केतन और बेटी सानवी स्कूल में पढ़ते हैं.
रीना और उनका बेटा माणिक दिल्ली आये हुए हैं. वे गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों वो अशोक चक्र ग्रहण करेंगे जो एएसआई बाबूराम की शहादत के सम्मान में मरणोपरांत दिया जा रहा है.