इंजीनियर से आईपीएस बने कर्नल सिंह वकालत के साथ यूं ज्योतिष भी पढ़ाते हैं

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कर्नल सिंह
भारतीय पुलिस सेवा के रिटायर्ड अधिकारी कर्नल सिंह दिल्ली स्थित अपने दफ्तर ' सर्किल ऑफ़ कॉउंसेल्स ' में

कर्नल सिंह ..!! नाम ज़रूर कड़क है लेकिन बेहद अनुशासनप्रिय, मृदुभाषी, शालीन और स्पष्टवादी. इतनी विनम्रता और सादगी कि बिना इनका इतिहास जाने कोई इनसे मिले तो यकीन ही न हो कि ऐसी शख्सियत से मिल रहे हैं जिसने तीन दशक के अपने करियर में इतने प्रभावशाली ओहदों पर काम किया है जो कइयों में घमंड पैदा कर दे. मुझे नहीं लगता कि पूरे भारत में इस तरह के दो चार पुलिस अफसरों से ज्यादा इनके जैसे अफसर होंगे जिन्होंने हर जगह अपनी एक ख़ास छाप छोड़ी है. एक आईपीएस अधिकारी के तौर पर तीन दशक के अपने बेदाग़ और बिना किसी विवाद के अपने काम के बूते पर आगे बढ़ते रहे कर्नल सिंह बतौर अधिकारी ही नहीं एक बेहतरीन इंसान भी हैं.

कर्नल सिंह यूं सरकारी सेवा से 2018 में रिटायर हो चुके हैं लेकिन काम शायद अब पहले से भी ज्यादा और तरह तरह का ही करते हैं. भारतीय पुलिस सेवा के 1984 बैच के अधिकारी कर्नल सिंह असल में दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से बैचलर और फिर कानपुर आईआईटी से एमटेक (Mtech ) पूरी करके इसी फील्ड में आगे बढ़ना चाहते थे लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि संघ लोक सेवा आयोग (upsc) की परीक्षा में बैठे और पहले प्रयास में क्लियर कर आईपीएस बन गए. बाद में क़ानून की पढ़ाई भी की, बिजनेस मैनेजमेंट में भी हाथ आजमाया यानि एमबीए भी कर लिया. और तो और उन्होंने ज्योतिष जैसे विषय को भी पढ़ा, उसमें शोध भी किया और अब ज्योतिष पढ़ाते भी हैं.

कर्नल सिंह
भारतीय पुलिस सेवा के रिटायर्ड अधिकारी कर्नल सिंह दिल्ली स्थित अपने दफ्तर ‘ सर्किल ऑफ़ कॉउंसेल्स ‘ में

एक इंजीनियर यानि विज्ञान के छात्र और उस पर कानून के विशेषज्ञ का ज्योतिष जैसे विषय को पढ़ना व पढ़ाना क्या व्यक्तित्व का विरोधभास नहीं है? कर्नल सिंह इस सवाल पर समझाते हैं-दरअसल, ज्योतिष भी विज्ञान है लेकिन ये सम्भावनाओं का विज्ञान (science of possibilities) है. ज्योतिष के ज़रिये हम सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकते लेकिन ये जान सकते हैं कि आने वाले समय में स्थितियां किस तरह की हो सकती हैं और अगर उनको बदलने की कोशिश करनी है तो क्या तौर तरीके अपनाए जा सकते हैं. मतलब पैदा होने वाली परिस्थितियों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए वो काम किये जाएं जिससे उन हालात को बनने से रोका जा सके या उसका असर कम हो.

कौन हैं कर्नल सिंह के ज्योतिष गुरु :

कर्नल सिंह ने जाने माने और देश – विदेश में ख्याति प्राप्त ज्योतिषाचार्य के एन राव से ज्योतिष की न केवल शिक्षा ली बल्कि ज्योतिष पर शोध कार्य भी किया. असल में के एन राव ही वो शख्स हैं जिनके प्रभाव के कारण ज्योतिष शास्त्र कोर्स को यूजीसी ( university grant commission ) ने भारत के विश्वविद्यालयों या कॉलेज में पढ़ाने को हरी झंडी दी थी. जब हैदराबाद हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगाई तो उसे चुनौती देने के लिए सरकार के पक्ष की तरफ से के एन राव ने सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दीं थीं. अदालत को समझाने में उनको कामयाबी मिली थी. भारत में ज्योतिष शास्त्र की मान्यता प्राप्त संस्थागत पढ़ाई की दिशा में ये मील का पत्थर साबित हुआ. कर्नल सिंह कहते हैं कि ज्योतिष के नाम कुछ स्वार्थी लोगों ने भ्रम फैलाकर अंध विश्वास को बढ़ावा दिया है. इसके लिए राहू केतु की दशा पर काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि मनगढ़ंत बातें गढ़ीं गई जिनका असल में कोई आधार नहीं है. कर्नल सिंह भारतीय विद्या भवन में ज्योतिष फैकल्टी के तौर पर जाते हैं जहां 1200 छात्र हैं. उनमें अधिकारियों से लेकर व्यवसायी, प्रोफेशनल, गृहणियां और युवा भी हैं. कर्नल सिंह कहते हैं कि काल सर्प या मांगलिक दोष जैसा ऐसा कुछ नहीं जो जिसका प्रचार पिछले कुछ साल से ऐसा किया जा रहा है. लोगों में इस तरह का भ्रम फैलाकर कुछ कथित ज्योतिषी अपनी दुकानें चलाते हैं. कर्नल सिंह का कहना है कि ऐसा कुछ भी ज्योतिष की पुस्तकों में वर्णित नहीं है.

क्या कभी इस विद्या का उन्होंने पुलिस के काम के दौरान इस्तेमाल किया? इस पर कर्नल सिंह का जवाब न में था लेकिन अचानक कुछ याद आते ही ठहाका लगाते हुए एक किस्सा बताते हैं जब वे दिल्ली पुलिस में थे – एक शातिर अपराधी पकड़ा गया था. गिरफ्तारी प्रक्रिया में जामा तलाशी के दौरान उसकी जेब से उसकी कुंडली मिली. इस बारे में पूछने पर उस अपराधी ने कहा कि इस कुंडली में वर्णित ग्रहों की दशा ‘राज योग’ बताती है यानि वो कोई बड़ा नेता बनेगा. कुछ ही दिन बाद पता चला कि वो किसी एनकाउंटर में मारा गया.

यूं बने आईपीएस :

कर्नल सिंह ज्योतिष के प्रति रुझान का कारण अपने घर का माहौल बताते हैं. मां धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. पूजा पाठ करती थीं लेकिन पिताजी आर्यसमाजी थे. ऐसे में खुद कर्नल सिंह भी इससे जुडी पुस्तकों की तरफ आकर्षित हुए. उन्होंने आचार्य रजनीश को काफी पढ़ा. ये सन 1981 के बाद की बात है जब वो कानपुर आईआईटी से एम टेक कर चुके थे लेकिन उन्हीं दिनों आंत की बीमारी ने जकड़ लिया. उनकी सर्जरी हुई और साल भर से अधिक समय उनका कहीं आना जाना बंद रहा. ज्यादा वक्त घर पर ही गुजरता था इस कारण नौकरी के अवसर भी छूट गए. लेकिन इस समय को भी उन्होंने एक मौके के तौर पर इस्तेमाल किया और यूपीएससी की तैयारी की. कर्नल सिंह 1984 में आईपीएस बने. दिल्ली पुलिस में सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी – acp ) रहते उन्होंने कम्प्यूटरीकरण की शुरुआत की. ये 1987 की बात है. इसके बाद 90 के दशक के मध्य में दिल्ली पुलिस में बड़े पैमाने पर कंप्यूटर पर काम की शुरुआत उनके नेतृत्व में की गई पहल पर हुई. यहां पुलिस को उनके इंजीनियरिंग के ज्ञान का भरपूर फायदा मिला. इसके बाद दिल्ली पुलिस की साइबर लैब की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही.

आतंकवाद का सामना :

कर्नल सिंह
कर्नल सिंह ने किताब लिखि – बाटला हाउस : एन एनकाउंटर दैट शुक द नेशन.

दिल्ली पुलिस के उस समय के सबसे बड़े और संवेदनशील ज़िले में से एक उत्तर पश्चिम दिल्ली की कमान उन्होंने सम्भाली थी जिसकी सीमा हरियाणा से लगती है. अवैध कालोनियों का निर्माण, ज़मीनों के झगड़े और अपराधी गिरोहों की इनमें सक्रियता के अलावा तब अपहरण, फिरौती और गैंग वार एक बड़ी चुनौती थी. इसके बाद अपराध शाखा और फिर आतंकवाद से निपटने वाले स्पेशल सेल का प्रभार भी उनके पास आया. दिल्ली में सीरियल बम धमाकों के वक्त कर्नल सिंह ज्वाइंट कमिश्नर थे. उन धमाकों की पड़ताल के दौरान ही इंडियन मुजाहिदीन तक पुलिस पहुँची और फिर बाटला हाउस मुठभेड़ हुई. इसमें दिल्ली पुलिस ने अपना शानदार इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा गंवाया. कर्नल सिंह ने इस पर किताब भी लिखी – बाटला हाउस : एन एनकाउंटर दैट शुक द नेशन ( Batla House : An encounter that shook the Nation ). इस एनकाउंटर पर बॉलीवुड फिल्म भी बनी थी जिसमें डीसीपी संजीव यादव का रोल जॉन अब्राहम ने किया था. हालाँकि इस एनकाउंटर को लेकर कुछ विवाद भी हुए. कुछ सियासत भी गरमाई. लेकिन दिल्ली पुलिस के उस एक्शन ने इंडियन मुजाहिदीन का पूरा नेटवर्क ऐसा ध्वस्त किया कि इस आतंकवादी गुट की कमर टूट गई और ये गुट फिर दिल्ली को अपना शिकार न बना सका.

सोच को यूं बड़ा बनाए :

पुलिस के अपने करियर के आधार पर अनुभव साझा करते हुए वो किसी भी अफसर को कामयाबी के लिए एक सबक देना चाहते हैं. वो ये कि अधिकारी को स्वंय अनुशासित होना बेहद ज़रूरी है. वहीं उसे संस्थान की ज़रूरतों के हिसाब से संस्थान के विकास पर ध्यान देना चाहिए बजाय व्यक्तिवादी सोच को बढ़ाने के. एक बार सिस्टम बन जाता है तो वो काम स्वत: होने लगता है.

मिशन विज़न की कमी :

कर्नल सिंह कहते हैं कि हमारे देश में पुलिसिंग में बड़ी कमी है ‘मिशन और विज़न’ पर काम करने की. सभी सेक्टर में भविष्य की योजना बनती है लेकिन पुलिस व्यवस्था में ऐसा कुछ नहीं होता. मिसाल के तौर पर वे कहते हैं कि अगर किसी पुलिस अधिकारी से पूछा जाए कि अगले 5 साल में वो विभाग के काम के बारे में क्या सोचता है या योजना बनाना चाहेगा तो वो अधिकारी बगलें झांकने लगता है. उसे लगता है कि ये काम ( योजना बनाना) तो किसी फैक्ट्री या व्यवसाय वाली जगह के लिए ही संभव है. कर्नल सिंह कहते हैं कि भविष्य की योजना बनाने की संस्कृति पुलिस जैसे विभाग में होनी चाहिए.

शिथिल प्रवर्तन निदेशालय में जान फूंकी :

परम्परागत या आधुनिक पुलिसिंग के साथ साथ आईपीएस कर्नल सिंह एक और चुनौतीपूर्ण काम को शानदार तरीके से करने में कामयाब रहे. ये काम था एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट ( enforcement directorate ) यानि प्रवर्तन निदेशालय में जान फूंकना. आज जिस ईडी को लेकर सरकार पर दुरुपयोग का आरोप लगता है वो कुछ साल पहले तक दयनीय हालत में था. हालांकि इससे जुड़े विवाद की चर्चा करने पर कर्नल सिंह गुरेज़ करते हैं लेकिन एक संस्थान के तौर पर इसके कायाकल्प की बात वे बताते हैं. 2012 से छह साल तक कर्नल सिंह ने ईडी में काम किया. पहले तीन साल स्पेशल डायरेक्टर के तौर पर और फिर इतने ही साल यानि 2018 तक इसके चीफ यानि निदेशक के तौर पर. जब इस संस्थान में कर्नल सिंह का जाना हुआ तब चुनौती ये थी कि इस संस्थान में कर्मचारी न के बराबर थे. कर्मचारियों के स्वीकृत पद 2068 थे लेकिन कर्मचारी कुल जमा 600 थे यानि तक़रीबन 30 % कर्मियों से निदेशालय चल रहा था. सिंह बताते हैं, ‘ वजह ये थी कि किसी दूसरे विभाग से कोई यहां आने को तैयार ही नहीं था. पुलिस महकमे या अन्य सरकारी विभाग से लोग सीबीआई या ऐसे संस्थान में जाने के इच्छुक रहते थे क्योंकि वहां 15 से 20 प्रतिशत इंसेंटिव मिलता था.’ कर्नल सिंह बताते है कि मैंने प्रयास किया और यहां भी सरकार से कहकर वैसा सिस्टम लागू कराया तब जाकर यहां कर्मचारियों ने प्रतिनियुक्ति पर आना शुरू किया ‘ 2018 में कर्नल सिंह की रिटायरमेंट के समय यहां ईडी में कर्मचारियों की तादाद 1400 तक पहुँच गई थी. यही नहीं कर्नल सिंह के कार्यकाल में ईडी ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में साइबर लैब भी बनाई. इससे काम में काफी तेज़ी आई.