प्रिंस बर्नहर्ड (नीदरलैंड की रानी जुलियाना के पति) ने अपने फोकर से स्वयं उड़कर श्रीलंका के कोलंबो से थाईलैंड के फुकेट जाना तय किया. उन्होंने बंगाल की खाड़ी में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लयेर के एकमात्र उस हवाईअड्डे, पर तकनीकी ठहराव की योजना बनाई थी जहाँ नागरिक विमानों को भी उतरने की इजाज़त थी.
प्रिंस बर्नहर्ड के आने का कार्यक्रम रविवार 7 अप्रैल, 1985 सुबह 8 बजे का था. इसके लिए मुझे संपर्क अधिकारी का काम सौंपा गया जिसमें आप्रवास जाँच और आवश्यक प्रोटोकॉल आवश्यकताओं को पूरा करना, सुचारू रूप से आगमन/प्रस्थान सुनिश्चित करने के साथ-साथ हल्के-फुल्के नाश्ते का इंतज़ाम और विमान में ईंधन भरवाने की ज़िम्मेदारी जैसे काम शामिल थे. स्थानीय निवासियों, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को विदेशी मुद्रा के लेन-देन की प्रक्रिया के लिए सूचित किया गया जिससे कि ईंधन भरवाने आदि जैसी गतिविधियां आसानी से हो सकें.
मैं बड़ी ही उत्सुकता से यूरोपीय राजघराने के एक नामी सदस्य और एक वीर अनुभवी योद्धा से मिलने का इंतज़ार कर रहा था. इन्हें महापराक्रमी जर्मनी के दुश्मनों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आरएएफ पायलट के पद से नवाज़ा गया था. ग्रेट ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने उनको ऐसे आसाधारण कार्य के लिए आरएएफ के एयर मार्शल के मानद पद से सम्मानित किया था. लेकिन कार्यक्रम बदल गया. शनिवार देर शाम, इस यात्रा के स्थगित होने के संबंध में सभी संबंधित अधिकारियों को सूचित किया गया जिसमें नागरिक प्रशासन एवं सेना भी शामिल थी.
रविवार की एक चमकदार सुबह, किसी भी नागरिक यात्री विमान का उड़ान न भरने का दिन, मैं इस छुट्टी के दिन, आराम करने के मूड में होने की वजह से, अपने विश्रामगृह में सुस्ता रहा था. अचानक हमारे पुलिस प्रमुख का सन्देश आया जिसने मेरी शांत मनोदशा को अशांत कर दिया, “आपके मेहमान आ चुके हैं, फ़ौरन एयरपोर्ट पहुँचे”. एयरपोर्ट पहुँचने पर मैंने पाया कि उच्च पदासीन अधिकारियों का दल एयरपोर्ट के बाहर प्रतीक्षा में खड़ा है. उन्होंने मुझे एक स्पष्ट आदेश देते हुए कहा, “उनके साथ उचित व्यव्हार करें” जिसके बाद वे अपनी सुबह की ख़राब हुई नींद को पूरा करने के लिए वहाँ से जल्दी से चले गए.
लाउंज में निराशापूर्वक प्रवेश करने पर मैंने दो तगड़े स्पेनिश पायलटों एंटोनियो और माइकल को अपने सामने खड़ा पाया. मैं पहले मिले झटके से अभी उबरा भी नहीं था कि एक और झटका मिल गया. वे दोनों एक सुर हो कर बोले “ हमें लगता है कि आप आप्रवास अधिकारी हैं, कृपया ज़रूरी औपचारिकताएँ पूरी करें, ताकि हम रंगून के लिए उड़ान भर सकें”.
जैसे-जैसे रहस्य गहराता गया, तेज़ी से घटित होती घटनाओं ने मेरे दिमाग को बुरी तरह से थका दिया जिसके परिणामस्वरूप स्वयं प्रतिक्रियात्मकता स्वरुप मैंने कहा-“ सज्जनों हमें एक आपराधिक मामला दर्ज करना होगा और आपके आगमन की जाँच करनी होगी”. मेरे इन शब्दों को सुनने के बाद जैसे ज्वालामुखी विस्फोट ही हो गया हो. वहां सादीवर्दी में तैनात कुछ पुलिसकर्मियों ने उन हट्टे कट्टे स्पेन वासियों के हाथ-पांव पकड़ कर अपने कब्ज़े में ले लिया. एम्बरडीन के सेंट्रल क्राइम स्टेशन (सीसीएस) में विदेशी अधिनियम और अन्य संबंधित कानूनी धाराओं के तहत मामला (FIR) दर्ज किया गया. ‘आप्रसंगिक’ विमान की तलाशी लेने के लिए संबंधित असैन्य एवं सैन्य ख़ुफ़िया खोजी दल को बुलाया गया.
उनके पास विमान में स्पेनिश सेना का लगाया टेलीफोनिक कनेक्टिविटी के लिए उच्च शक्ति से लेस संचार सेट (दो लोगों के बात करने के लिए) था. जब उनका विमान एक हज़ार फीट की ऊंचाई पर पहुँचता था, तब वे इस सेट से दुनिया भर में कहीं भी किसी से भी संपर्क साध सकते थे. दोनों पायलटों को ‘अंडमान बीच रिसॉर्ट’ में ठहराया गया था, इस क्षेत्र में रहने के लिए उन्हें कड़ी चेतावनी दी गयी थी. हालाँकि तफसील से की गई छानबीन के बावजूद भी उनके खिलाफ़ कुछ नहीं मिला.
स्पेन के पायलट्स ने पूछताछ में इस बात का खुलासा किया कि स्पेन का “स्वर्ण जयंती स्मारक उड़ान” का मंचन करने का कार्यक्रम बना था. इसमें विमान को पचास वर्ष पहले सन् 1935 में मैड्रिड से फिलिपीन्स की राजधानी मनीला तक ले जाया गया था. यह कुछ बेहद उच्च श्रेणी के गोपनीय दस्तावेजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का अति गुप्त मिशन था जिसे गोपनीय बनाये रखने की शपथ दिलाई गई थी. स्पेन और अमेरिका फिलीपींस के रणनीतिक दक्षिण पूर्व एशियाई द्वीपसमूह पर अपना अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए काफ़ी समय से दबावपूर्ण शक्ति संघर्ष में उलझे हुए थे.
यह मुख्य मामला संभवतः अंतर्राष्ट्रीय पेचीदगी से भरा था इस कारण द्वीप के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने मुख्य सचिव से इस संवेदनशील मुद्दे से खुद निपटने को कहा. मैंने मुख्य सचिव को पोर्ट ब्लेयर में एक छोटे स्पेनिश सेसना विमान की संकटपूर्ण परिस्थितियों में हुई लैंडिंग के बारे में जानकारी दी. इसके अलावा, उन्हें सोने की गुदाई किया हुआ एक लिफ़ाफ़ा भी दिखाया जिस पर फिलीपींस के राष्ट्रपति, महामहिम फर्डिनेंड मार्कोस का नाम लिखा हुआ था. सूचना की मुताबिक़ ये लिफाफा स्पेन के राजा जुआन कार्लोस ने भेजा था.
इसी बीच, उपराज्यपाल मनोहर लाल कम्पानी ने प्रधानमंत्री राजीव गांधी को पहले ही इन सब घटनाओं के बारे में बता दिया था. प्रधानमंत्री ने मामले की महत्ता को ध्यान में रखते हुए, अपनी ओर से औपचारिक मंज़ूरी देते हुए स्पेनिश विमान को छोड़ने की हामी भरी थी.
दरअसल नौसेना एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) से एक भूल हुई, उन्हें शाही दौरे के पुनर्योजन सम्बन्धी संदेश को ठीक से समझने या पाने में गलती हो गयी. असल में हुआ ये कि स्पेनिश पायलट बंगलादेश के चटगांव से रंगून की यात्रा कर रहे थे, उनके विमान को तेज़ हवाओं के थपेड़ों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण ईंधन की ज़्यादा खपत हुई और टैंक में ईंधन के लेवल में गिरावट आ गयी. इस आपातकालीन स्थिति ने उन्हें अपने यूरोपीय भूदृश्य से इतर अंडमान के संवेदनशील द्वीपों की ओर विमान ले जाना पड़ा. सेसना ने नर्कोंडम द्वीप की उत्तरपूर्वी दिशा से हमारी हवाई क्षेत्र का रुख किया जबकि, फोकर को दक्षिण-पश्चिम दिशा से संपर्क करना था, प्रक्रियात्मक रूप से भारतीय हवाई क्षेत्र में इसके प्रवेश की जानकारी दर्ज हो गई.
शुरुआत में ही एटीसी ने पोर्ट ब्लेयर में उसे प्रवेश करने की सुविधा दे दी. भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति पाने के लिए स्पेनिश विमान न केवल अधिकृत किया बल्कि उसे गर्मजोशी से स्वागत भी मिला.
एक फोकर और एक सेसना की बनावट में व्यापक अंतर देखा जा सकता है, यहाँ तक कि उनके अन्त्य भाग पर छपे PH (नीदरलैंड) और EC (स्पेन) के अन्तर्राष्ट्रीय पंजीकरण चिह्नों को बिना किसी परेशानी के बेहद आसानी से पहचाना जा सकता है. जब सेसना हैवलॉक द्वीप के ऊपर उड़ान भरता पहुँच गया तब एटीसी को अपनी गलती का अहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सेसना को इस समय भारतीय हवाई क्षेत्र को तुरंत खाली करने का आदेश दिया था, लेकिन इस कठिन परिस्थिति में परेशान पायलट्स के लिए लौटना असंभव था.
कुछ ही मिनटों में स्पेनिश पायलट एंटोनियो ने रेडियो पर जवाब देते हुए कहा, “कोई और रास्ता नहीं बचा, लैंडिंग के लिए रनवे की ओर आ रहे हैं, आपको जो भी ठीक लगे, वही करें”. जब घी निकालने के लिए ऊँगली टेढ़ी करने के तौर तरीके आज़माए जाने लगे तब एटीसी के लेफ्टिनेंट कमांडर हमें अनिच्छापूर्वक एटीसी और अपचारी प्लेन के बीच हुई इस दिलचस्प ‘गुप्त’ बातचीत की प्रमाणित प्रति देने के लिए राज़ी हुए.
चौथे दिन यानि बुधवार की दोपहर, सभी औपचारिकताओं की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, सेसना में ईंधन भरा गया. भारतीय हवाई क्षेत्र मार्ग से “अबोध गमन” (गलती से किसी और अधिकारिक क्षेत्र में चले जाना) की घटना को स्पेन के पायलटों के पासपोर्ट में दर्ज किया गया, साथ ही एटीसी से आवश्यक आपात मंज़ूरी भी दी गई. उसी क्षण एक कमांडर की अगुवाई में तीन जीपों में सवार नौसेना के पुलिस अधिकारियों का एक दल वहाँ आ पहुंचा. उन्होंने भारतीय नौसेना प्रमुख का एक महत्वपूर्ण संदेश दिया. सन्देश में कहा गया था कि विमान को आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, साथ ही किसी जासूसी संबंधी गतिविधि में शामिल होने की छोटी से छोटी आशंका को ख़ारिज करने के लिए यह मामला आगे की सुरक्षा जांच के अधीन होना चाहिए.
मैंने अपना पक्ष रखते हुए, सशस्त्र पुलिस गार्ड्स को, नौसेना अधिकारियों को हवाई अड्डे के परिचालन क्षेत्र तक पहुचने से रोकने के लिए ज़रुरत पड़ने पर बल का प्रयोग करने का आदेश दिया.
इसके साथ ही नौसेना अधिकारियों को समझाया कि भारत के प्रधानमंत्री ने पहले ही सेसना विमान की उड़ान के लिए मंज़ूरी दे दी थी. इन हालात में नौसेना प्रमुख की भावी शंका पूरी तरह से बेतुकी लगती थी. कोई और विकल्प न होने के कारण, वे सभी टर्मैक क्षेत्र (पक्की सड़क जिसप र विमान तेज़ी से चलकर उड़ान भरता है) के बाहर चुपचाप एक कतार में सन्न हो कर खड़े हुए विमान को अपने इच्छित गंतव्य यानि रंगून जाते देख रहे थे.
मैं सोच रहा था कि क्या से क्या हो गया…! अलग-अलग देशों के विमानों के “यात्रा कार्यक्रम की अदला-बदली” उनकी यात्रा का लक्ष्य और उद्देश्य क्या थे, क्या यह अनाधिकारिक हस्तक्षेप था या महज़ एक संयोग?
मूलतः यह नागरिक विमानों को पहचानने में हुई गलती का हानिरहित मामला था. 3 जुलाई 1988 को यूएसएस विन्सेंस में सवार उच्च प्रशिक्षित नौसेना कर्मियों द्वारा हुई गंभीर ‘गलती” का ख्याल करो.
ईरानी हवाई जहाज़ A300B203, होरमुज़ के जलडमरूमध्य की फारस खाड़ी के ऊपर से उड़ान भरते समय, SAM मिसाइल ने गलती से इसे F-14 A समझा और हवाई जहाज़ पर हमला किया जिस कारण इस विमान पर सवार सभी 290 नागरिक मारे गए.
दिलचस्प बात तो यह है कि इस प्रकार के “टॉमकैट” लड़ाकू विमान केवल अमेरिका और ईरानी वायु सेना द्वारा विशेष रूप से प्रयोग में लाए जाते थे. बीते कुछ समय के दौरान “पहचानने में गलती” के मामलों के रूप में सैन्य मिसाइलों द्वारा नागरिक यात्री विमानों पर हुए हमले के कई उदाहरण हैं. हम इस बात से भली भांति परिचित हैं कि छोटी बड़ी हर मशीन के परिचालन के पीछे आखिरकार हमारा अच्छा या बुरा मानव मस्तिष्क ही होता है. यह निश्चित तौर से अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पेचीदगी से भरा अनूठा अनुभव था.
(इस आलेख के लेखक दिल्ली पुलिस के पूर्व उपायुक्त (डीसीपी) हैं. उनका ये लेख अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उनकी तैनाती के दौरान उनके अनुभव पर आधारित है. लेख का अनुवाद शारदा बहल ने किया है)