पंजाब पुलिस का प्रमुख चुनने के लिए तय किये गये भारतीय पुलिस सेवा के तीन अधिकारियों के नाम वाले पैनल में अपना नाम शामिल न किये से नाराज़ आईपीएस अधिकारी मोहम्मद मुस्तफा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने का इरादा ज़ाहिर किया है. इस बीच दिनकर गुप्ता के पंजाब पुलिस की कमान सम्भालने के 24 बाद ही शुक्रवार को मोहम्मद मुस्तफा समेत पंजाब पुलिस में दस आईपीएस अधिकारियों के तबादले या काम में फेरबदल कर दिया गया.
वीरता के लिए चार गेलेंट्री मेडल से सम्मानित (भारत के सम्भवतः एकमात्र आईपीएस अधिकारी) मोहम्मद मुस्तफ़ा का मानना है कि पुलिस प्रमुख के पैनल में डालने के लिए भी उनके नाम पर विचार ना करना उनका अपमान हैं. उनका कहना है कि वो अपने सम्मान को बचाने की खातिर अदालत जायेंगे.
आईपीएस अधिकारी मोहम्मद मुस्तफा से स्पेशल टास्क फ़ोर्स का प्रभार ले लिया गया है लेकिन वह राज्य मानवाधिकार आयोग के डीजीपी बने रहेंगे. इसके पीछे वजह ये बताई जाती है कि एसटीएफ प्रभारी का बॉस पुलिस प्रमुख होता है लिहाज़ा एसटीएफ प्रभारी को डीजीपी को रिपोर्ट करना होता है जबकि नवनियुक्त डीजीपी दिनकर गुप्ता मुस्तफा से जूनियर हैं. इसलिये दोनों के लिए ही असहज स्थिति उत्पन्न होने से रोकने के लिए सम्भवत: ये फैसला लिया गया. फिलहाल दिनकर गुप्ता अपने पास ही एसटीएफ का प्रभार भी रखेंगे.
आईपीएस मोहम्मद मुस्तफा पंजाब कैडर के 1985 बैच के अधिकारी हैं. उनका कहना है कि वह लोक संघ सेवा आयोग की तरफ से निर्धारित उन तीनों प्रमुख शर्तों को पूरा करते हैं जो राज्य का पुलिस प्रमुख बनने के लिए ज़रूरी हैं. बावजूद इसके, पैनल में नाम न होने की वजह की जड़ में उन्हें कोई साजिश या अधिकारियों की लॉबी की राजनीति नज़र आती है. पंजाब के सत्ता के गलियारों और मीडिया में चर्चा तो ये है कि ऐन वक्त पर पैनल बदल कर उसमें से मोहम्मद मुस्तफा का नाम हटाया गया.
पंजाब में आतंकवाद के दौर में पुलिस अधिकारी के तौर पर बेहतरीन काम कर चुके आईपीएस मोहम्मद मुस्तफा की पत्नी रज़िया सुल्ताना विधायक हैं और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में मंत्री हैं. आईपीएस मोहम्मद मुस्तफा के जीवन के इस पहलू को पुलिस चीफ के ओहदे से टकराव वाला बताकर प्रचारित किया गया था.
कहा जा रहा है कि मुस्तफा का नाम पैनल में न डाले जाने को इस नजरिये से दी गई दलील के आधार पर देखा जा रहा है जबकि अफसरशाहों का एक खेमा इस दलील को दमदार नहीं मानता. दिनकर गुप्ता की तरह यूँ तो मोहम्मद मुस्तफा भी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी हैं. लेकिन मुस्तफ़ा की एक विशेषता उनकी स्पष्टवादिता भी है. इसके अलावा अफसरशाही में खेमेबंदी जैसे कारण भी मुस्तफ़ा का नाम पैनल में न डाले जाने के पीछे देखे जा रहे हैं.