रिटायर्ड पुलिस कर्मियों की भी सेना की तरह पुलिस सम्मान के साथ आखिरी विदाई

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दिल्ली पुलिस
दिल्ली पुलिस की विशेष आयुक्त (कल्याण) शालिनी सिंह

दिल्ली पुलिस (delhi police) भी अपने रिटायर्ड जवानों और अफसरों की मृत्यु पर उन्हें ठीक उसी सम्मान के साथ इस दुनिया से विदाई देगी जैसा कि ड्यूटी के दौरान निधन होने पर उन्हें दी जाती है. ये व्यवस्था भारतीय सेना में पहले से ही है और इसे दिल्ली पुलिस की तरफ से भी अपनाना काबिल ए तारीफ़ है. इस बारे में 2 मई को आदेश जारी किये गए हैं. इस पूरी व्यवस्था की ज़िम्मेदारी ज़िले के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) की होगी जो सुनिश्चित करेगा कि पुलिस कमिश्नर की तरफ से मृतक को पुष्प चक्र अर्पित करते हुए सलामी दी जाए.

दिल्ली पुलिस की विशेष आयुक्त (कल्याण) शालिनी सिंह के मुताबिक़ रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों के साथ हाल ही में हुई बैठक के दौरान इस पर चर्चा हुई थी जिसके बाद ये फैसला लिया गया. असल में इन रिटायर्ड अधिकारियों का कहना है कि पुलिसकर्मी सेवा के दौरान समाज में अपना योगदान तो देते हैं लेकिन रिटायर होने के बाद वो एक तरह से भुला दिए जाते हैं. कुछ अरसा बाद जब उनकी मृत्यु होती है तो उनकी उस सेवा को याद करते हुए सम्मानपूर्वक विदा किया जाना चाहिए ताकि समाज को उनके योगदान के बारे याद कराया जा सके.

स्पेशल कमिश्नर शालिनी सिंह ने बताया कि इस बारे में स्टैण्डर्ड ऑपरेटिव प्रोसीज़र (एसओपी – SOP) तय करने के बाद पुलिस कमिश्नर की तरफ से जारी किये जा चुके हैं. इस एसओपी के मुताबिक़ सशस्त्र पुलिस के उपायुक्त और अतिरिक्त उपायुक्त की ज़िम्मेदारी होगी कि पुलिसकर्मी की सम्मानपूर्वक अंतिम विदाई हो. श्रद्धांजलि देने के लिए मृतक के रैंक के हिसाब से क्षेत्र में तैनात पुलिस अधिकारी जाएंगे. किसी रिटायर्ड कर्मी की मृत्यु होने पर ज़िले के कल्याण अधिकारी की तरफ से डीसीपी को सूचना दी जाएगी जो तय करेगा कि मृतक के परिवार वालों के पास एक अधिकारी को भेजा जाए. वहां के तमाम हालात उस अधिकारी की तरफ से जानने के बाद तय प्रक्रिया और पुलिस रस्मों के मुताबिक़ अंतिम विदाई दी जाएगी. मिसाल के तौर पर यदि किसी रिटायर्ड ज्वाइंट कमिश्नर या इससे ऊपर के रैंक के रिटायर्ड अधिकारी की मृत्यु होती है तो वहां डीसीपी रैंक का अधिकारी पुलिस कमिश्नर के आधिकारिक प्रतिनिधि के तौर पर श्रद्धांजलि अर्पित करेगा.

दिल्ली पुलिस में कई कार्मिक ऐसे हैं जो अन्य राज्यों से ताल्लुक रखते हैं. इनमें से कई रिटायरमेंट के बाद अपने मूल शहर या गांव में लौट जाते हैं. उनकी वहां मृत्यु हो जाने की सूरत में किसी को पता भी नहीं चलता कि वो शख्श किस तरह समाज की सेवा करके गया है.