‘बर्ड डॉग’ के तौर पर अपनी पहचान बना चुकी सुनहरे बालों वाली खूबसूरत गोल्डन रिट्रीवर (Golden Retriever) नस्ल के पांच खोजी कुत्ते बरसों बाद दिल्ली पुलिस के श्वान दस्ते के परिवार का हिस्सा बनने वाले हैं. सूंघने और तलाश करने के ख़ास गुण के साथ साथ अच्छे शिकारी होने की वजह से भी इन्हें पसंद किया जाता है. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के मध्य प्रदेश स्थित ट्रेनिंग कैम्प से लाये गये ये पांच, दिल्ली की आबो हवा में ढाले जाने के बाद बारूद खोजी अभियानों के लिए बम निरोधक दस्ते के साथ ड्यूटी पर लगाये जायेंगे.
सुनहरे, हल्के सुनहरे और गहरे सुनहरे बालों की घनी परत की और तीन प्रकारों में बंटी इस नस्ल के कांगो, क्रिसी, कोस्बी, कामत और ज़ेन्द्रा नाम के ये पाँचों खोजी कुत्ते हल्के सुनहरे (Light Golden) हैं. करीब डेढ़ सौ साल पुराने इतिहास वाली खोजी कुत्तों की ये स्कॉटलैंड की नस्ल मानी जाती है लेकिन ये पाँचों तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में पैदा हुए हैं. पाँचों तकरीबन एक से सवा साल की उम्र के हैं.
दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी का कहना है कि इन्हें 15 साल बाद भारत की राजधानी की पुलिस का हिस्सा बनाया गया है. इनके पहले से ही दिल्ली पुलिस के श्वान परिवार में 60 साथी हैं जिनमें ज़्यादातर जर्मन शेफर्ड और लेब्रडोर हैं. बदलते माहौल और उसी तरह से बदलती ज़रूरतों, काम के स्वरूप और उपलब्धता के हिसाब से पुलिस संगठन श्वान दस्ते में इज़ाफा और बदलाव करते रहते हैं.
पहले ज्यादातर डोबरमेन और जर्मन शेपर्ड नस्ल को खोजी और पहरेदारी के काम के हिसाब से रखा जाता था जो संगीन अपराध करके फरार हुए मुजरिमों को खोजते थे. फिर नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद के दौर की वजह से लेब्रडोर की ज्यादा ज़रुरत महसूस होने लगी जिनमें सूंघने की गज़ब क्षमता होती है लेकिन वे उतने फुर्तीले नहीं होते. इनमें वजन बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है. इनके मुकाबले गोल्डन रिट्रीवर को अब तरज़ीह मिलने लगी है.
गाइड डॉग के तौर पर अच्छा काम करने वाला गोल्डन रिट्रीवर राहत और बचाव कार्यों में बहुत काम का माना जाता है. भारत में सेना, कई अर्धसैन्य बल और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल भी इन्हें अरसे से अपना रहे हैं. इन्हें केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ CISF) के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी NSG) ही नहीं प्रधानमन्त्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार के सदस्यों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी SPG) के दस्ते में भी तैनाती पहले से मिली है. इन बलों में अब इनकी मांग भी बढ़ रही है. शायद मांग बढ़ने के कारण ही अब ये प्रशिक्षण केन्द्रों में कम ही मिलते हैं.
ज्यादा खराब मौसम की मार ये नस्ल नहीं झेल पाती शायद यही वजह है कि राज्यों की पुलिस के पास ये कम ही दिखाई देते हैं.
तैरने के जन्मजात हुनर और पक्षी तक को झपट कर दबोच लेने की फुर्ती रखने वाले गोल्डन रिट्रीवर के बारे में दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी का कहना है कि अनुशासित, शांत प्रवृत्ति और कई गुणों से भरपूर इस नस्ल के साथ दिक्कत एक ये है कि इन्हें भूख बर्दाश्त नहीं हैं. ज्यादा देर तक भूखे रहने पर इनके काम पर न सिर्फ असर पड़ने लगता है बल्कि ये आक्रामक भी हो उठते हैं.
यही वजह है कि इनसे उन जगहों पर ही बेहतर काम लिया जा सकता है जहां परिस्थितियाँ इनके अनुकूल हों जैसे वातानुकूलित क्षेत्र एयर पोर्ट, माल्स वगैरह. वैसे इन गोल्डन रिट्रीवर के अलावा भी कुछ और श्वान दिल्ली पुलिस ने लिए हैं और कुछ और लाये जाने हैं लेकिन इन पाँचों के काम को देखने के बाद तय किया जाएगा कि यही नस्ल लाई जाए या कोई और. वैसे तो दिल्ली पुलिस के खोजी कुत्तों के दस्ते में कॉकर स्पेनियल (cocker spaniel) भी हैं.