रिटायरमेंट से सिर्फ चार दिन पहले ही देश की राजधानी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बनाये गये , भारतीय पुलिस सेवा के गुजरात कैडर के अधिकारी , राकेश अस्थाना की नियुक्ति कानूनन सही हैं या नहीं ? , इसका फैसला दिल्ली हाई कोर्ट को ‘ तरज़ीह ‘के आधार पर दो हफ्ते में ही करने को कहा गया है दिल्ली हाई कोर्ट के लिए ये आदेश भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ एन वी रमना की अगुआई वाली 3 सदस्यीय बेंच ने , जाने माने वकील और एक्टिविस्ट प्रशान्त भूषण की तरफ से दायर याचिका पर बुधवार को दिया. याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (centre for public interest litigation – CPIL ) की तरफ से प्रशांत भूषण ने डाली थी.
सुप्रीम कोर्ट प्रशांत भूषण की तरफ से दाखिल उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें अदालत से अनुरोध किया गया था कि वे हाई कोर्ट में इससे जुड़े मामले में दाखिल की जा चुकी याचिका में दखल दे. हाई कोर्ट में इसी तरह की एक याचिका दिल्ली के वकील सदरे आलम ने दायर की थी. हालांकि प्रशांत भूषण का दावा था कि हाई कोर्ट में दायर याचिका हुबहू वही है जो उन्होंने ( प्रशांत भूषण ने ) सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही दाखिल कर रखी थी.
जैसे ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना की तीन सदस्यों वाली बेंच के सामने सुनवाई शुरू हुई तभी भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को हाई कोर्ट में दायर मामले के बारे में सूचित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले इसका फैसला हाई कोर्ट को करने दे. उसी दौरान वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के सामने कहा कि वे याचिका उनकी (प्रशांत भूषण की ) तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पहले ही दाखिल की जा चुकी शब्दश: नकल है. प्रशांत भूषण का कहना था ये सुप्रीम कोर्ट में डाली गई याचिका को बेकार करने के लिए हाई कोर्ट में दाखिल कर दी गई थी. इस पर तुषार मेहता ने कटाक्ष वाली टिप्पणी भी की.
सुप्रीम कोर्ट की इस बैंच के दो अन्य सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत हैं. शुरू में जस्टिस एनवी रमना मामले की सुनवाई नहीं करना चाहते थे . साथ ही जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी वकील प्रशांत भूषण से कहा कि आप सही हो सकते हैं. लेकिन हाईकोर्ट को मामले की सुनवाई करने दें, हमको हाईकोर्ट के फैसला करने का फायदा मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने उनको इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट जाने की स्वतंत्रता भी दी. अब हाई कोर्ट दो हफ्ते में , राकेश अस्थाना की की नियुक्ति के कानूनी तौर पर ‘ सही – गलत ‘ होने के इस मामले पर फैसला करेगा. इन दो हफ्तों के बाद सुप्रीम कोर्ट में ये मामला सुना जायेगा.
प्रशांत भूषण के एनजीओ सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना की दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के रूप में नियुक्ति और साथ ही उनके सेवा में एक साल के विस्तार को चुनौती दी है. एनजीओ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट से , केंद्र सरकार को अपने 27 जुलाई के उस आदेश को भी रद्द करने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है जिसमें राकेश अस्थाना का कैडर गुजरात से बदल कर एजीएमयूटी कैडर करने यानि अंतर-कैडर प्रतिनियुक्ति को मंजूरी दी गई थी.
उल्लेखनीय है कि गुजरात कैडर के 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को 27 जुलाई 2021 को दिल्ली के पुलिस के कमिश्नर तौर पर नियुक्त किया गया था. श्री अस्थाना 31 जुलाई 2021 को रिटायर होने वाले थे लेकिन उनको सेवानिवृत्ति से 4 दिन पहले ही पुलिस कमिश्नर बनाया गया. उस आदेश के मुताबिक़ राकेश अस्थाना का दिल्ली पुलिस प्रमुख के तौर एक साल का कार्यकाल होगा. वकील प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका में अदालत से श्री अस्थाना की सेवा अवधि बढ़ाने के सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की है. उन्होंने अपनी याचिका में राकेश अस्थाना के कार्यकाल के विस्तार के साथ-साथ दिल्ली पुलिस प्रमुख के तौर पर नियुक्ति को भी अवैध बताया है. प्रशांत भूषण ने याचिका में कहा कि रिटायरमेंट से 4 दिन पहले राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस कमिश्नर नियुक्त करना अवैध है, क्योंकि उनकी नियुक्ति के वक्त उनके पास अनिवार्य 6 महीने की सेवा का शेष कार्यकाल नहीं बचा हुआ था और श्री अस्थाना को 4 दिन के अंदर ही 31 जुलाई 2021 को रिटायर होना था.
यहाँ ये बात भी बता दें कि दिल्ली पुलिस के कमिश्नर की नियुक्ति भारत सरकार के कैबिनेट की नियुक्ति समिति करती है. कमिश्नर के पद पर अधिकारी का चयन प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली समिति करती है जिसके एक सदस्य के तौर पर , संसद में विपक्ष के नेता भी शामिल होते हैं.