रिटायर हुए आईपीएस प्रदीप भारद्वाज की शख्सियत पर एक धुरंधर क्राइम रिपोर्टर का नजरिया

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नई दिल्ली स्थित पुलिस मुख्यालय में 28 जून को प्रदीप भारद्वाज के विदाई समारोह में गुल्दस्ता भेंट करते कमिश्नर अमूल्य पटनायक.

संयोग ही है कि प्रदीप भारद्वाज ने जब 31 जनवरी 1990 को एसीपी-शाहदरा के रूप में अपनी पहली पोस्टिंग पाई तो मैं पहले ही दिन उनसे मिला था, उनके सेवाकाल के अंतिम दिन भी मुझे उनसे मिलने का मौका मिला. नई दिल्ली स्थित पुलिस मुख्यालय में शुक्रवार 28 जून को भारद्वाज के विदाई समारोह से ठीक पहले मैं उनके ऑफिस में था. यह भी संयोग देखिए कि भारद्वाज जब पूर्वी दिल्ली के एडिशनल डीसीपी थे, तो मौजूदा कमिश्नर अमूल्य पटनायक उनके डीसीपी थे. उन्हीं पटनायक के हाथों स्पेशल कमिश्नर भारद्वाज ने विदाई का गुलदस्ता पाया. दोनों भावविभोर थे.

31 साल 10 महीने का कार्यकाल. यह छोटी अवधि नहीं है. कोई दाग नहीं, कोई विवाद नहीं. 22 अगस्त 1987 को प्रदीप भारद्वाज को आईपीएस मिला था. दिल्ली के देहात वाले नजफगढ़ जैसे इलाके में रहकर सिविल सर्विस पास कर भारतीय पुलिस सेवा में आए भारद्वाज की ट्रेनिंग अन्य सभी की तरह पहले हैदराबाद में हुई, फिर पश्चिमी दिल्ली में छह महीने के फेज-एक और तीन महीने के फेज-दो की ट्रेनिंग के बाद पुलिस सेवा का सफर जमीन पर शुरू हो गया. लंबी यादें हैं. 1990 के उस दौर में मंडल कमीशन लागू किए जाने की वजह से आंदोलन हो रहे थे.

इसके बाद बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की ‘सोमनाथ से अयोध्या यात्रा‘ से भी माहौल गरम था. शाहदरा सब डिविजन के तहत मिलीजुल आबादी वाली कई संवेदनशील बस्तियां थीं. छात्रों के आंदोलन के लिहाज से श्यामलाल कॉलेज एसीपी ऑफिस के बगल में ही था. भारद्वाज ने उस दौर में अपना सूचना तंत्र विकसित किया. आम लोगों के साथ संवाद का मानवीय रूप पेश किया. नतीजतन उस तनावपूर्ण दौर में इलाके में शांति रही. यह 6 दिसंबर 1992 के माहोल में भी काम आया.

आईपीएस अधिकारी प्रदीप भारद्वाज बातचीत में सरल, लेकिन भीतर से मजबूत और सख्त अधिकारी के रूप में चर्चित हो गए. उन्हें कई बार दूसरे जिले में भी बुलाया जाता था. उन्हीं के समय में सीलमपुर क्षेत्र के एसीपी रहे केशव चंद्र द्विवेदी तब के कई किस्से बताते हैं. दिल्ली पुलिस में जॉइंट सीपी के पद से रिटायर हुए द्विवेदी ने कहा कि पूर्वी दिल्ली जिले के शकरपुर में शराब ठेका लूटा जा रहा था. मामला बढ़ता गया, तो उत्तर-पुर्वी दिल्ली से द्विवेदी और भारद्वाज सहित तीन एसीपी को मौके पर आने को कहा गया. उस स्थिति से निपटने और शांति कायम करने में भारद्वाज ने अहम रोल प्ले किया था.

भारद्वाज पूर्वी दिल्ली के डीसीपी बने. वहां अच्छे कार्यकाल के बाद उनकी पोस्टिंग साउथ-वेस्ट दिल्ली डीसीपी के पद पर की गई. जहां तक मुझे याद है, उस जिले में उपराज्यपाल के किसी परिचित के मामले की मिसहैंडलिंग की वजह से रात में ही भारद्वाज को पूर्वी दिल्ली से बदल कर दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में नियुक्त करने के आदेश दिए गए थे. वहां भी भारद्वाज की पारी बेहतरीन रही. 1999 में वह इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) में डेपुटेशन पर गए. एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन और अन्य मामलों से जुड़े विभाग एफआरआरओ के पद पर रहे. आईबी में कई उच्च पदों पर रह कर गत मार्च में दिल्ली पुलिस में वापस आ गए. अपने काडर, अपने शहर में ही सेवानिवृति.

आईबी से जुड़े मामलों की जानकारी सामान्यत: नहीं होती है, मुझे भी नहीं है. लेकिन मैं समझता हूं कि अभी तक तीन अधिकारी ऐसे हुए हैं, जो आईबी में 18-20 साल या ज्यादा समय रहे हैं. भारद्वाज और उनसे पहले वी राजगोपाल और अनिल चौधरी. वी. राजगोपाल 1985 से 1988 तक अविभाजित पूर्वी जिले के डीसीपी रहे थे. उसके बाद नई दिल्ली जिले के डीसीपी बनाए गए. वह वहीं से ही आईबी में चले गए और लौट कर नहीं आए.

अनिल चौधरी तो एसडीपीओ की पोस्टिंग के बाद ही आईबी में चले गए थे. वह भी राजगोपाल की ही तरह वहीं से रिटायर हुए. मुझे लगता है कि चौधरी का आईबी कार्यकाल अब तक का सबसे लंबा रहा. वैसे, दिल्ली पुलिस से आईबी में जाने वालों में बीएस बस्सी, धर्मेंद्र कुमार, देवेश चंद्र श्रीवास्तव जैसे अधिकारिरयों के नाम भी शामिल हैं. बस्सी वहां आठ साल से ज्यादा रहे. धर्मेंद्र कुमार और देवेश श्रीवास्तव का कार्यकाल वहां करीब पांच-पांच साल का रहा. मुझे लगता है कि आईबी में पहले गए अधिकारियों के अच्छे कामकाज की वजह से ही इस समय दिल्ली पुलिस के आठ-दस अधिकारियों को वहां काम करने का मौका मिला हुआ है.

प्रदीप भारद्वाज एक बेहतरीन अधिकारी के अलावा बेहतरीन क्रिकेटर भी रहे. वह 1989 से दिल्ली पुलिस की टीम की तरफ से हाल ही के साल तक मैच खेलते रहे हैं. यह उनकी फिटनेस का नमूना है. पत्रकारों की टीम और उनकी टीम के बीच भी कई मैच हुए थे. पूर्वी दिल्ली जिले की टीम में भारद्वाज और डीसीपी पटनायक की जोड़ी पत्रकारों को काफी परेशान करती थी. सालाना होने वाले जी. मुरली मेमोरियल मैच में यह दोनों अफसर बहुत बार पत्रकारों की टीम के सिरदर्द बन जाते थे. पर, उनका बर्ताव हमेशा उम्दा रहा. किसी भी व्यक्ति के काम के अलावा उसका व्यवहार ही अहम होता है. भारद्वाज व्यवहार के धनी हैं.

( लेखक ललित वत्स लम्बे समय तक टाइम्स आफ इण्डिया समूह के समाचार पत्रों में क्राइम रिपोर्टर की बीट पर रहे हैं और दिल्ली क्राइम रिपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भी हैं)