बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (director general of police ) डीपी ओझा का शुक्रवार को निधन हो गया . वह 82 वर्ष के थे . पूर्व डीजीपी डीपी ओझा ने शुक्रवार को अंतिम सांस ली . श्री ओझा भारतीय पुलिस सेवा के 1967 बैच के अधिकारी थे.
रिटायरमेंट से दो महीने पहले ही सरकार ने उनको डीजीपी ( dgp ) के ओहदे से हटा दिया था. सीवान से बाहुबली सांसद मोहम्केमद शहाबुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई करना और अपराधियों व राजनेताओं के गठजोड़ पर मुखर होना बिहार पुलिस प्रमुख के पद से उनकी वक्त से पहले विदाई का कारण बना था. वैसे शहाबुद्दीन भी अब इस दुनिया में नहीं हैं . शहाबुद्दीन का निधन 2021 में हो गया था .
बतौर डीजीपी की गई अपनी नियुक्ति से ज्यादा सुर्खियां आईपीएस डीपी ओझा ने तब सुर्खियां बटोरी थीं, जब उन्हें सेवानिवृत्ति की निर्धारित महीने यानि फरवरी 2004 की बजाय दो महीने पहले दिसंबर 2003 में हटाया गया था . तब बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) का शासन था. आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी के मुख्यमंत्रित्वकाल का आखरी दौर था .
सब जानते हैं कि शहाबुद्दीन बहुत दबदबे वाला था और कई लंबित आपराधिक मामलों के बावजूद उसके खिलाफ शायद ही कोई कड़ी कार्रवाई की गई थी. डीपी ओझा ने बाहुबली सांसद के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की हिम्मत की, जिससे सीएम राबड़ी देवी और राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद नाराज हो गए.” दरअसल , बिहार सरकार को डीपी ओझा द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में उन्होंने खुलासा किया कि था शहाबुद्दीन के पाकिस्तान स्थित संगठनों से संबंध थे.
डीपी ओझा ( dp ojha ) को हटाकर उनकी जगह वारिस हयात ( waris hayat) को बिहार का डीजीपी नियुक्त कर दिया गया था.
असल में डीपी ओझा 2003 में विवादों में घिरे थे जब उन्होंने एक सार्वजनिक समारोह में कहा था कि बिहार के लोगों ने “लफंगों को सत्ता सौंप दी है, जो जेल में बंद अपराधियों के पैर छू सकते हैं.” हालांकि ओझा ने अपने भाषण में किसी का नाम नहीं लिया था, लेकिन बिहार में सत्तारूढ़ राजद की सरकार ने डीपी ओझा पर आरोप लगाया था कि उन्होंने इस टिप्पणी के साथ सेवा संहिता का उल्लंघन किया है .
एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि डीपी ओझा ने बाद की नीतीश कुमार सरकार के लिए मोहम्मद शहाबुद्दीन के खिलाफ त्वरित सुनवाई शुरू करने का रास्ता खोल डाला था . बाद में शहाबुद्दीन आधा दर्जन से ज्यादा मामलों में दोषी ठहराया गया और 2009 के बाद से शहाबुद्दीन को लोकसभा चुनाव लड़ने से भी अयोग्य घोषित कर दिया गया.