ड्रग्स के मकड़जाल में फंसे पंजाब में, अब पुलिसकर्मियों समेत सभी सरकारी कर्मचारियों का वक्त वक्त पर डोप टेस्ट किया जाया करेगा. आमतौर पर स्टीरायड्स और उत्तेजना पैदा करने वाली दवाओं के सेवन का पता लगाने के लिए डोप टेस्ट का इस्तेमाल खिलाडियों पर किया जाता है. अब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने आदेश दिया है कि भर्ती से लेकर नौकरी में तरक्की जैसे अहम चरणों के दौरान कर्मचारियों को डोप टेस्ट से गुज़रना अनिवार्य होगा.
मुख्यमंत्री के इस फैसले पर दिलचस्प और मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. कांग्रेस की सत्ता वाले इस सूबे में इसी पार्टी के नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने ही सबसे पहले शिगूफा छेड़ते हुए बयान दे डाला है. श्री तिवारी ने सवाल पूछते हुए आग्रह भी किया है कि इस डोप टेस्ट के दायरे में विधायक और सांसद जैसे जनप्रतिनिधि में आने चाहिये. दरअसल, ये जनप्रतिनिधि क्यूंकि लोकसेवक भी हैं और वेतन-भत्ते भी लेते हैं, शायद इसी सन्दर्भ में श्री तिवारी ने ऐसा कहा.
पंजाब सरकार की तरफ से जारी बयान के मुताबिक़ ये आदेश ड्रग्स पर शिकंजा कसने की तरफ बढ़ाया गया एक और कदम है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राज्य के मुख्य सचिव को इस सिलसिले में अधिसूचना (Notification) जारी करने और प्रक्रिया के तौर तरीके तय करने के निर्देश दिए हैं.
सरकार के आधिकारिक प्रवक्ता के मुताबिक़ मुख्यमंत्री ने भर्ती, प्रोन्नति और सालाना मेडिकल जांच के दौरान “ड्रग स्क्रीनिंग” की अनिवार्यता कर दी है. ये पंजाब सरकार के तमाम महकमों पर लागू होगा चाहे वो नागरिक या पुलिस प्रशासन हो. सरकारी विज्ञप्ति के मुताबिक़ बीते तीन दिनों में, पंजाब में ड्रग्स की विभीषिका को नेस्तनाबूत करने की कड़ी में उठाए गये कदमों में से ये भी एक कदम है.
ध्यान देने की बात ये भी है कि ये आदेश उसी समय जारी किये गये जब पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार को औपचारिक तौर पर पंजाब राज्य की कैबिनेट के फैसले से अवगत कराते हुए, नशीले पद्धार्थ निवारक अधिनियम (NDPS Act ) में ऐसा संशोधन करने की मांग की जिसमें उस शख्स को भी सजा-ए-मौत देने का प्रावधान हो जो ड्रग्स के केस में पहली बार भी दोषी पाया जाए.
Dope Test of Govt Servants for recruitment/promotions proposed by Punjab Govt is a welcome step.Must be made mandatory for all MLA’s& MP’s from state. It would not only set an example but unreasonable classification between two classes of Public Servants may not meet test of law
— Manish Tewari (@ManishTewari) July 5, 2018