भारत में सशस्त्र बलों को नॉन फंक्शनल अपग्रेड (एनएफयू-NFU) का लाभ देने का मामला एक तरफ सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है, वहीं सरकार ने इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर विचार करने के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया है. हालांकि इस कमेटी को एक महीने में अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है लेकिन अब तक सरकार के एनएफयू के प्रति उदासीनता या फिर विरोध वाले रुख को लेकर बलों में नाराजगी है. एनएफयू का लाभ अभी सिर्फ भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service), भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service) और संगठित समूह ए सेवा (Organised Group A Service) के लिए ही है.
सशस्त्र बल और केन्द्रीय पुलिस संगठन यानि दोनों ही संगठित समूह ए सेवा (OGAS) में नहीं आते. कमेटी से कहा गया है कि विभिन्न परिचर्चाओं और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों, विभिन्न अदालती फैसलों, सरकार की प्रशासनिक और आर्थिक मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर समेकित समाधान सामने रखे. कमेटी को संगठित समूह ए सेवा (OGAS) की स्पष्ट परिभाषा भी देने को कहा गया है ताकि कैडर समीक्षा (cadre review) प्रक्रिया और संगठित समूह ए सेवा (OGAS) का दर्जा देने का फर्क समझ आ सके.
सात सदस्यों वाली इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व वित्त सचिव और नीति आयोग के प्रमुख सलाहकार रतन पी वटल हैं जिसके गठन सम्बन्धी आदेश केन्द्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण मंत्रालय ने 30 अप्रैल को जारी किये हैं. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1987 बैच के अधिकारी आरके चतुर्वेदी इस कमेटी के संयोजक बनाये गये है. अन्य सदस्यों में सीमा सुरक्षा बल से महानिदेशक के पद से कुछ अरसा पहले रिटायर हुए आईपीएस अधिकारी रजनीकांत मिश्र का भी नाम है.
मार्च में केन्द्र सरकार ने सशस्त्र बल ट्रिब्यूनल (AFT) के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिसमे कहा गया था कि नॉन फंक्शनल अपग्रेड (NFU) का विस्तार करके इसे सशस्त्र बलों में भी लाया जाए. सुप्रीम कोर्ट अर्द्धसैन्य बलों में इसे लागू करने को पहले ही कह चुकी है.
एनएफयू 2006 में लागू किया गया था ताकि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी के बराबर की वरिष्ठता वाले भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी को अगर उसके जैसा काम करने का अवसर या ओहदा नहीं मिल पाता है तो वेतन व रैंक उसी के बराबर किया जा सके.
पिछले कुछ साल के अरसे में ये 53 ग्रुप सेवाओं तक विस्तारित किया जा चुका है. सेना और अन्य बलों में भी इसे लागू करने की मांग लगातार हो रही है. दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे केन्द्रीय पुलिस संगठनों में लागू करने के आदेश दिए थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था.