असम के तिनसुखिया जिले में एक मकान में छिपे उल्फा आतंकवादियों को पकड़ने गये थाना इंचार्ज भास्कर कालिता की मौत पर एक बड़ा सवाल फिर से उठ रहा है. क्या जान हथेली पर रख के खतरनाक अपराधियों और आतंकियों से मुकाबले के लिए जाने वाले सुरक्षा बलों के अफसरों और जवानों को अपने बचाव के पूरे और स्तरीय उपकरण दिए जाते हैं? ये सवाल उठाना इसलिए भी लाज़मी है कि इस जांबाज अफसर के जिस्म को आतंकियों की जिन गोलियों ने छलनी किया, उनमें से दो गोलियां उस बुलेटप्रूफ जैकेट को भेदकर उनके जिस्म में घुसी थीं जो उन्होंने पहनी थी.
शुक्रवार को हुई इस मुठभेड़ के इस तकलीफदेह पहलू का खुलासा भास्कर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद हुआ जिससे पता चलता है कि भास्कर के शरीर के 2 वो जख्म जानलेवा साबित हुये जो उनकी छाती और पेट के पास पाए गये. ये ज़ख्म उस हिस्से में पाए गये जोकि बुलेट प्रूफ जैकेट से ढका रहना लाज़मी है. उन्हें लगी 9 गोलियों में से TAVOR X95 राइफल से चली वो 2 गोलियां थीं जिससे वो जख्म हुए.
भास्कर को शनिवार को पुलिस सम्मान के साथ आखिरी सलाम किया गया और इस मौके पर आये असम के पुलिस महानिदेशक कुलधर सैकिया ने कहा कि असम पुलिस के जवानों के इस्तेमाल में ली जाने वाली बुलेट प्रूफ जैकेट की विश्वसनीयता परखने के लिए जांच कराई जायेगी. वैसे उनका एक तर्क ये भी था कि कभी कभी बुलेटप्रूफ जैकेट में एक ही जगह पर बार बार गोली लगने पर जैकेट में उस जगह सुराख हो जाता है. उन्होंने हालांकि ये भी कहा कि इस मामले में क्या हुआ, इसका पता तो जांच के बाद ही लग सकेगा.
एनजीओ और शहीद की पत्नी का गम्भीर आरोप
इस बीच असम पब्लिक वर्क्स नाम के एक एनजीओ ने असम पुलिस की सीआईडी ब्रांच में एफआईआर दर्ज कराने का फैसला किया है. एनजीओ चाहता है कि पुलिस के लिये घटिया बुलेटप्रूफ जैकेट की खरीद के बारे में जो जानकारियां सामने आई हैं उनकी जांच हो.
शहीद भास्कर की विधवा संगीता और उनके सहयोगियों ने बुलेटप्रूफ जैकेट की गुणवत्ता को लेकर शक जाहिर किया है क्योंकि जैकेट पहने होने के बावजूद भास्कर को 6 गोलियां लगने की बात कही जा रही है. संगीता भी असम पुलिस में हैं. उनका कहना है कि एनकाउंटर के वक्त भास्कर ने बुलेटप्रूफ जैकेट पहन रखी थी और गोलियों ने उसे भी भेद दिया. इसकी जांच होनी चाहिये. संगीता का कहना है कि अगर जैकेट की क्वालिटी अच्छी होती तो भास्कर आज जिंदा होते.
असम पब्लिक वर्क्स के प्रतिनिधि के मुताबिक 2011-12 में ये जैकेट तब खरीदी गई थीं जब राज्य में तरुण गोगोई की कांग्रेस सरकार सत्ता में थी. उसने संदेह जताया कि सिर्फ बुलेटप्रूफ जैकेट की खरीद में ही नहीं हुआ बल्कि पुलिस आधुनिकीकरण की अन्य स्कीमों के तहत खरीद में भी भ्रष्टाचार हुआ होगा.
घटना :
भास्कर कालिता बोरदुम्सा थाने के इंचार्ज थे और उन्हें खबर मिली थी कि आतंकवादी संगठन उल्फा के पांच आतंकवादियों ने कुजुपथर इलाके के एक मकान में पनाह ली हुई है. भास्कर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की कोबरा बटालियन के कमांडो के साथ जब वहां आतंकवादियों की तलाश में पहुंचे तो घमासान शुरू हो गया और उन्हें कई गोलियां लगीं. शुरू में पता चला था कि कुछ आतंकी भी मारे गये लेकिन ये बात गलत साबित हुयी. मुठभेड़ के दौरान आतंकी फरार हो गये थे. वैसे पुलिस महानिदेशक का कहना है कि हो सकता है कि उनमें से कुछ घायल हुए हों.
पुलिस महानिदेशक ने साथ ही दावा किया कि इस घटना के बाद अब उल्फा के खिलाफ सघन अभियान चलाया जाएगा. इस सिलसिले में सैकिया ने अरुणाचल प्रदेश के पुलिस महानिदेशक से बात करके सहयोग भी माँगा है क्यूंकि असम- अरुणाचल सीमा पर उल्फा की गतिविधियां काफी रहती हैं. ये घटना भी उसी क्षेत्र की है.
मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल ने इस घटना की निंदा करते परिवार के प्रति संवेदना प्रकट की है और शहीद के आश्रितों को 20 लाख रुपये की धनराशि देने के साथ ये भी ऐलान किया कि उनके परिवार को भास्कर को मिलने वाले वेतन के बराबर धन हर महीने तब तक मिलेगा जब तक भास्कर की सेवानिवृत्ति का समय था. उन्होंने कहा कि आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा और भास्कर का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने देंगे.
कौन थे भास्कर :
35 वर्षीय भास्कर कालिता की गिनती होनहार और जांबाज़ पुलिस सब इंपेक्टरों में की जाती थी. वे कामरूप जिले के अजारा के रहने वाले थे. उनके परिवार में माता पिता, पत्नी संगीता और दो छोटे बच्चे हैं.
आतंकियों के बारे में :
हमले में शामिल इन आतंकियों का सरगना हाल ही में उल्फा काडर में भर्ती हुआ दुर्दांत जान असोम बताया जाता है जिसका ताल्लुक उल्फा (इंडिपेंडेंट) गुट से है. इस गुट के प्रमुख और खुद को कमांडर इन चीफ कहलाने वाले परेश बरुआ ने स्थानीय मीडिया के सामने ये दावा किया है कि इस घटना में उनके गुट के लोग थे लेकिन साथ ही कहा कि उनका इरादा भास्कर को मारना नहीं था और उन्हें अपने बचाव में मजबूरन भास्कर पर हमला करना पड़ा. परेश बरुआ ने तो भास्कर की शहादत पर खेद भी ज़ाहिर किया.
उल्फा आतंकी भास्कर को असम पुत्र कहके सम्बोधित कर रहे हैं. असल में ये आतंकी गुट बार बार इस बात का प्रचार करके स्थानीय लोगों को अपनी तरफ करने की कोशिश करते हैं कि उनकी लड़ाई केंद्र सरकार और केन्द्रीय सुरक्षा बलों से ही है और वही उनके दुश्मन हैं. ऐसा करके वो न केवल स्थानीय बाशिंदों की सहानुभूति और समर्थन हासिल करते हैं बल्कि स्थानीय पुलिस व सुरक्षा बलों की मदद के लिए तैनात केन्द्रीय बलों/सेना के खिलाफ भी उन्हें (स्थानीय फ़ोर्स) को भडकाने की कोशिशें लगातार करते हैं.
पांच साल पहले उल्फा ने अपनी इस रणनीति (हथकंडे) को अपनाया था जिसका ज़िक्र भी बरुआ ने किया है. उसका कहना था कि जबसे स्थानीय पुलिस पर हमला न करने का प्रस्ताव पास हुआ है तबसे उल्फा ने किसी थाने को निशाना नहीं बनाया.
सुरक्षा बलों के बचाव की खातिर :
असम की इस घटना की तरह ही कश्मीर के पुलवामा में भी पिछले साल दिसम्बर में ऐसी घटना हुयी थी जब बुलेटप्रूफ जैकेट सीआरपीएफ के जवानों को हमले से बचाने में मददगार साबित नहीं हुई थी. दो दशक पहले असम में ही सुरक्षा बलों के लिए ख़रीदे गये बुलेटप्रूफ वाहनों की गुणवत्ता पर सीएजी (CAG ) की रिपोर्ट में ऊँगली उठी थी.