छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से निपटने की रणनीति के तहत अब सरकार की एंटी नक्सलाइट लैब में नया प्रयोग शुरू होने जा रहा है. केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) ने यहां के आदिवासी युवकों और युवतियों को भर्ती करके बनाई बस्तरिया बटालियन को जंगे मैदान में तैनात कर दिया है. भर्ती के तौर तरीकों में कुछ बदलाव करने के बाद बनाई गई इस बटालियन को खून की होली खेलने के आदी हो चुके नक्सलियों की नाक में नकेल कसने के सारे गुर सिखा दिए गये हैं. सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस बटालियन के जवान उन्हीं चार जिलों – दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर से हैं जो सबसे ज्यादा नक्सल हिंसा की चपेट में हैं. क्यूंकि ये जिले बस्तर डिवीजन के हैं इसलिए बटालियन का नाम भी ऐसा ही रखा गया है-बस्तरिया बटालियन.
सीआरपीएफ की इस 241वीं बटालियन की पासिंग आउट परेड सोमवार को अम्बिकापुर में हुई जिसकी सलामी लेने खुद केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहुंचे. ये कई मायनों में ऐतिहासिक क्षण माना जायेगा और इस मौके पर छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह, उनके साथी गृह मंत्री राम सेवक पैकड़ा, सांसद बेचार नेताम और कमलनाथ भी थे.
सीआरपीएफ के महानिदेशक रवि राय भटनागर और राज्य के पुलिस महानिदेशक ए एन उपाध्याय की उपस्थिति तो लाज़मी ही थी.
दो साल पहले नक्सलियों की ज़बरदस्त हिंसक कार्रवाइयों के दौर में इस तरह की बटालियन बनाये जाने का सुझाव आया था और 2017 में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की मंजूरी के बाद तेज़ी से इसकी तैयारी हुई. इसके लिए मंज़ूरी तो 743 जवानों की भर्ती को दी गई थी लेकिन पहले चरण में 534 जवानों को तैयार किया गया है. इनमें महिलाओं का औसत संतुलित यानि 33% रखने की क़वायद भी की जा रही है लिहाज़ा 189 महिलाएं भी हैं.
दिलचस्प बात ये भी है कि इनमें से कई ऐसे रंगरूट थे जो खासतौर से शिक्षा के मापदंड के हिसाब से भर्ती के लायक भी नहीं होते अगर सीआरपीएफ के चलाए गये सिविक एक्शन प्रोग्राम के तहत पढ़ाया लिखाया न गया होता. इसके अलावा स्थानीयों की शारीरिक बनावट और क्षमताओं को देखते हुए इनको भर्ती के वक्त लम्बाई (4.5 सेंटीमीटर) और आयु व लम्बाई के अनुपात में वज़न में 10% की भी छूट दी गई थी. लेकिन इन्हें ट्रेंड करने वालों का कहना है कि ये कमियाँ इनके काम में आड़े नहीं आने वाली.
इनको 44 हफ़्तों की ट्रेनिंग में जंगल की जंग, गुरिल्ला युद्ध, पेड़ों पर रहना और वो तमाम तौर तरीके सिखाये गये हैं जो इन्हें खतरनाक लोगों से निपटने के लिए चाहिए. इनकी तैनाती बल की सामान्य बटालियन और कोबरा बटालियन के साथ की जा रही है. स्थानीय आदिवासी होने के नाते ये न केवल के रास्तों, माहौल से बखूबी वाकिफ़ हैं और बल्कि इनके लिए
आबो हवा, रहन सहन मुफीद भी है. साथ ही स्थानीय भाषा और शैली की जानकारी होने का फायदा इन्हें नक्सल विरोधी आपरेशंस में मिलेगा जो बल के दूसरे जवानों को कतई नहीं मिल सकता.
एक बड़ा फायदा ये भी है कि स्थानीय होने के कारण से आसानी से उन्हीं में घुल मिल सकते है और इससे उन्हें खतरनाक गुप्त सूचनाएं हासिल करने में ज्यादा सफलता भी मिलेगी जिसका आमतौर पर अभाव रहता है.
बस्तरिया बटालियन के गठन से न सिर्फ सामरिक तौर पर बल्कि रोजगार देकर, उन्हें कानून व्यवस्था बनाने की प्रक्रिया और मुख्य धारा में शामिल करके सरकार को राजनीतिक लाभ भी मिलना स्वाभाविक है. साथ ही ये रास्ता आदिवासियों की सम्पन्नता और विकास में भी सहायक बन सकता है.
राजनाथ सिंह ने इस मौके पर सीआरपीएफ की खूब प्रशंसा करते हुए कहा कि ये बल अपनी शूरवीरता और कार्यशैली से देश में ख़ास पहचान बना चुका है, चाहे वो जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से निपटना हो या फिर नक्सलियों से. गृह मंत्री ने ये भी बताया कि पहले के मुकाबले न सिर्फ नक्सलियों की हिंसक घटनाएं कम हुई हैं बल्कि उनका क्षेत्र भी सिकुड़ा है.