दूसरों की पीड़ा समझने और उसे कम करने में कभी कभी थोड़ी सी संवेदनशीलता भी बहुत काम कर जाती है. इतना ही नहीं कभी तो ये इंसानी रवैया मौत को भी हरा देता है. कुछ कुछ ऐसा ही हुआ नक्सलियों के गढ़ बने भारत के राज्य छत्तीसगढ़ के बीजापुर में और इस घटना में हीरो बने उसी केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ- CRPF) के जवान जो यहाँ अपनी जान हथेली पर रखकर नक्सलियों से निपट रहे हैं.
जो भी इन तस्वीरों और हालात के बारे में जान रहा होगा वो पक्के तौर पर विचलित हुआ होगा. शायद आपको भी ये इन तस्वीरों में बीजापुर के उस गरीब पिता की मजबूरी और दर्द दिखाई देगा, परेशान करेगा जो पिता अपनी बीमार बेटी को किसी सामान की तरह ढोने को विवश है. सोचिये अगर ये तस्वीरें ही जब दर्दनाक हों तो इन हालात का चश्मदीद बनना कितना तकलीफ भरा होगा.
बीमार बेटी चल पाने में भी असमर्थ थी, लगभग अर्धमूर्छित सी अवस्था में. न तो आसपास डाक्टरी सुविधा और न ही वाहन या और ऐसा साधन कि बेटी को अस्पताल ले जाया जा सके. बेटी को बचाने के लिए अस्पताल पहुँचाना जरूरी था सो परिवार ने डंडे में चादर के दोनों छोर बांधकर बेटी को उसमें डाला और सामान की तरह लादकर चल दिए.
इस मजबूर और गरीब परिवार की कोई मदद करने वाला नहीं था और रहा भी होगा तो किसी ने मदद को हाथ नहीं बढ़ाया लेकिन वहीं रास्ते से गुजर रहे सीआरपीएफ के जवानों से रहा न गया. ये सीआरपीएफ की 168 वीं बटालियन के जवान वहां अपने वाहन से गुज़र रहे थे. सारा माजरा और बीमार लड़की की हालत देख उन्होंने बिना वक्त गंवाए मदद को अपने हाथ बढ़ाए. उन्होंने बच्ची को और उसके परिवार को वाहन में सवार करके तुरंत नजदीकी अस्पताल पहुंचा दिया. ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी छा गयीं और साथ ही छा गया उन सीआरपीएफ जवानों की संवेदनशीलता और इंसानियत का फ़र्ज़ जो उन्हें दुआएं और वर्दी को सम्मान दिला रहा है.