नक्सली हिंसा से ग्रस्त इलाके में किसी ज़ख्मी या बीमार को तुरंत अस्पताल या डाक्टर तक पहुंचाना तब एक बड़ी चुनौती होता है जब वाहन का बन्दोबस्त न हो या रास्ते ऐसे हों जहां तक चौपहिया वाहन या एम्बुलेंस का पहुंचना मुमकिन नहीं. घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में ऊबड़-खाबड़ और कच्चे रास्तों पर इस चुनौती के साथ साथ हमले के लिये घात लगाकर या बारूदी सुरंग बिछाकर इंतज़ार कर रहे नक्सली यमदूतों के मौजूद होने का खतरा इस चुनौती को खौफ़नाक बना डालता है. कुल मिलाकर हालात अक्सर ऐसे होते हैं कि मरीज़ या घायल शख्स की जिंदगी बचाने के लिये, उन्हें भी अपनी जान दांव पर लगानी पड़ती है जो उसे चिकित्सा सहायता के लिए लेकर जाते हैं या ले जाना चाहते हैं. अरसे से नक्सलियों के गढ़ में इस बड़ी समस्या से जूझ रहे भारत के सबसे बड़े केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस संगठन केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने इसका समाधान निकाला है बाइक एम्बुलेंस की शक्ल में ..!
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साधारण मोटर साइकिल में कुछ अतिरिक्त सामान लगाकर तैयार की गई बाइक एम्बुलेंस उपरोक्त चुनौती को काफी हद तक सीआरपीएफ को पार पाने में मदद करेगी. झारखण्ड के लातेहार में सीआरपीएफ की 133 बटालियन के कैम्प में तैयार की गई बाइक एम्बुलेंस की लांचिंग सीआरपीएफ झारखण्ड सेक्टर के महानिरीक्षक (आईजी) संजय आनन्दराव लाठकर ने बृहस्पतिवार को जब की तो सीआरपीएफ जवानों से ज्यादा ख़ुशी वहां आसपास के ग्रामीण इलाकों से आये लोगों में दिखाई दी. और हो भी क्यूँ न ! लगभग तीन साल से झारखण्ड सेक्टर के इंचार्ज पुलिस महानिरीक्षक श्री लाठकर बताते हैं, ‘ इस तरह की 20 बाइक एम्बुलेंस सीआरपीएफ तैयार कर रही है जिसकी सेवा सीआरपीएफ के साथ साथ आम नागरिक भी ले सकता है. सीआरपीएफ के बीस कैम्प में से हरेक में ऐसी बाइक एम्बुलेंस होगी. ये काम 15 दिन में पूरा हो जायेगा.’
बाइक एम्बुलेंस की ख़ासियत :
इस बाइक एम्बुलेंस की ख़ासियत ये है कि ये मौसम के लिए मुफीद है. इसके राइडर के पीछे मरीज़ के बैठने के लिए लगाई गई आरामदायक सीट के ऊपर कैनोपी है जो धूप और बरसात से काफी हद तक राहत देगी. मरीज को सुरक्षित तरीके से ले जाने के लिए सीट के साथ बेल्ट है और फुट रेस्ट पर भी ऐसा स्ट्रेप है जो पाँव को जकड़ करके रखेगा ताकि संतुलन बिगड़ने की सूरत में पीछे बैठे शख्स का पाँव न खिसके. पैर को पहिये में फंसने से रोकने के लिए व्हील गार्ड भी है. बाइक एम्बुलेंस का चालक प्राथमिक उपचार में ट्रेंड होगा और बाइक में फर्स्ट ऐड बॉक्स (First Aid Box) भी है. बाइक पर एम्बुलेंस की आपात स्थिति में इस्तेमाल किये जाने वाली नीली बत्ती भी लगी है और हूटर भी है ताकि सड़क पर वाहनों से रास्ता मांगने या ओवरटेक करने में दिक्कत न हो.
तरह तरह के ट्रायल किये :
इसकी व्यवहारिकता के बारे में पूछने पर भारतीय पुलिस सेवा के 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी संजय आनन्दराव लाठकर कहते हैं, ‘हमने 15 दिन में ज़रूरत के हिसाब से इसके ट्रायल करने के साथ साथ बदलाव भी किये हैं. ये सामान्य गति में चल सकती है और इससे बेहोश शख्स को भी सुरक्षित तरीके से ले जाया जा सकता है’. अभी जिस तरह से मरीज को बाइक से ले जाने का जो तरीका अपनाया जाता है वो न सिर्फ यातायात के नियमों का उल्लंघन है बल्कि तकलीफ देह और खतरनाक भी. मरीज़ को चालक के पीछे बिठाकर उसे पकड़ने के
लिए एक शख्स और सवार होता है. ऐसे में दुर्घटना के भी हालात बने रहते हैं.
कइयों के लिए आइडिया :
उम्मीद की जा रही है कि सीआरपीएफ अधिकारियों का ये छोटा सा आइडिया कई जरूरतमंदों को फ़ौरन और प्रभावी चिकित्सा सहायता मुहैया कराने में एक असरदार कदम का काम करेगा. इससे सबक लेकर झारखंड और नक्सल प्रभावित अन्य राज्यों की सरकार भी शायद ऐसा करें. ये आइडिया भीड़ भाड़ और संकरे रास्ते वाले शहरों और नगरों में भी मरीजों तक तुरंत चिकित्सा सहायता पहुँचने में सक्षम हो सकता है. कम संसाधन वाले चिकित्सा संस्थान भी ऐसा प्रयोग कर सकते हैं.