केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (crpf सीआरपीएफ) की कोबरा बटालियन के एक बहादुर नौजवान अधिकारी सहायक कमांडेंट बिभोर सिंह को एक नक्सली धमाके में घायल होने के बाद अपनी दोनों टांगे गंवानी पड़ी. बिभोर सिंह सिर्फ दो साल पहले ही सीआरपीएफ अकेडमी से पास आउट होने के बाद राजपत्रित अधिकारी बने थे और उन्होंने कठिन इलाके में अपनी पोस्टिंग के लिए खुद पहल की थी. कहा जा रहा है कि अगर सही जगह पर इलाज के लिए सही समय पर पहुंच जाते तो शायद उनकी टांगे काटने के लिए डॉक्टरों को मजबूर न होना पड़ता.
बिहार के गया में नक्सल हिंसा प्रभावित क्षेत्र में 25 फरवरी 2022 को हुई इस घटना में बिभोर सिंह के साथ हवलदार सुरेन्द्र यादव भी घायल हुए थे. दोनों को घायल हालत में पहले गया स्थित अनुगढ़ नारायण मेडिकल कॉलेज अस्पताल (ANMCH) ले जाया गया जहां उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों ने उन्हें राजधानी दिल्ली ले जाने की सलाह दी थी. लिहाज़ा उनको दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) लाया गया. लेकिन सहायक कमांडेंट बिभोर सिंह की टांगों की हालत ऐसी हो गई थी कि उनको घुटने से नीचे तक काटकर जिस्म से अलग करने के अलावा कोई तरीका डॉक्टरों के पास नहीं था. इस बहादुर जांबाज़ अधिकारी बिभोर सिंह ने अस्पताल में रिकार्डेड अपने वीडियो में बताया कि ये घटना उस दिन शाम पांच बजे के आसपास की है. सबको अभिवादन करते हुए बिभोर सिंह इस वीडियो में कहते दिखाई पड़ते हैं कि टेंशन की कोई बात नहीं है, दोनों टांगे घुटनों के नीचे से चली गईं लेकिन जान बच गई और ये बहुत बड़ी बात है.
एक अधिकारी ने घायल सहायक कमांडेट बिभोर सिंह को एयरलिफ्ट करके पहुंचाने में हुई देरी की बात तो मानी लेकिन उनका कहना था कि ये देरी मौसम की गड़बड़ी की वजह से हुई. उनको झारखंड से गया पहुंचे सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ – bsf ) के हेलिकॉप्टर से लाया गया था. केन्द्रीय गृह मंत्रालय के अधीन तमाम केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के लिए ज़रूरत पड़ने पर बीएसएफ के हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया जाता है. ये नीति वर्षों से चल रही है. हालांकि वो बात अलग है कि सवा तीन लाख की नफरी वाली सीआरपीएफ भारत ही नहीं दुनिया भर में सबसे बड़ा अर्ध सैन्य बल (paramilitary force) है. यही नहीं मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे नक्सली प्रभावित राज्यों के ग्रामीण व जंगल वाले इलाकों से लेकर पूर्वोत्तर में अलगाववादी हिंसाग्रस्त राज्यों और पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से जूझ रहे जम्मू कश्मीर में भी सीआरपीएफ की वर्षों से तैनाती है. भारत की आंतरिक सुरक्षा में सभी केन्द्रीय बलों में से सबसे अहम भूमिका भी यही बल निभा रहा है. ऐसी सूरत में सीआरपीएफ में अपने एयर विंग की ज़रूरत भी अरसे से महसूस की जा रही है. खासतौर से उन हालात में जब कोई बड़ा ऑपरेशन या हमले जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होती है.
सीआरपीएफ 205 कोबरा बटालियन (205 commando battalion for resolute action – CoBRA) में तैनात सहायक कमांडेंट बिभोर सिंह ने 2019 – 2020 में सीआरपीएफ एकेडमी के 49 वें बैच के सदस्य के तौर पर पास आउट होकर अधिकारी बने. वे और उनके साथी 25 फरवरी को गया के छकरबंधा के जंगल में चलाए जा रहे ऑपरेशन में भेजे गए थे. छकरबंधा से से कुछ ही दूर करीबा दोभा के पास वे और हवलदार सुरेंद्र यादव नक्सलियों के आईईडी (IED ) धमाके की जद में आ गए. हालांकि घायल होने के बावजूद उन्होंने नक्सलियों के हमले के जवाब में अपने साथियों का नेतृत्व किया और बहादुरी का परिचय दिया. कहा जा रहा है उनकी बहादुरी और सूझबूझ की वजह से सीआरपीएफ की टुकड़ी बिना और ज्यादा नुक्सान के वहां से सुरक्षित निकल सकी और जवाबी कार्रवाई में नक्सलियों के खेमे को भी क्षति हुई है.