भारत में हवाई अड्डों के सुरक्षा इंतजाम करने वाली केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ CISF) अब अपने जवानों और अधिकारियों को दिव्यांगजनों की सुरक्षा जांच और उनसे संपर्क के वक्त पर अपनाए जाने वाले बातचीत के तौर तरीके के साथ व्यवहार के बारे में जागरूक करेगी. हालांकि ये कैसे होगा और इसमें सीआईएसएफ किस किस की मदद लेगी? इसका खाका खींचने के लिए 11 नवंबर को विशेष वार्तालाप कार्यक्रम होगा. ऑफ़लाइन के साथ साथ ये सम्पर्क कार्यक्रम ऑनलाइन भी होगा जिसमें सीआईएसएफ के महानिदेशक और कुछ अधिकारियों के अलावा दिव्यांगजनों के लिए काम करने वाले संगठन, स्वास्थ्य संगठन, कुछ दिव्यांग और तमाम सम्बद्ध विभागों के लोग जुड़ेंगे.
जानी मानी डांसर और अदाकारा सुधा चंद्रन के साथ हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच के दौरान उनकी कृत्रिम टांग हटवाने को लेकर उठे विवाद के बाद सीआईएसएफ ने ये पहल की है. इसका काफी हद तक श्रेय, भारत के पहले ब्लेड रनर मेजर डी पी सिंह को भी जाता है जिन्होंने भारत – पाकिस्तान के बीच 1999 में लड़े गये करगिल युद्ध में एक टांग गंवाई है. कृत्रिम अंग की मदद से एक नया जीवन शुरू करने वाले मेजर डीपी सिंह अपने अंग गंवा चुके लोगों के कल्याण के कार्यक्रमों में काफी सक्रिय हैं. उन्होंने सुधा चंद्रन वाली घटना को भी सोशल मीडिया में उठाया था और कहा था कि वह इस विषय को लेकर लेकर सीआईएसएफ के जवानों को जागरूक करने पर खुद पहल करना चाहते हैं लेकिन उनके प्रस्ताव पर किसी ने सकारात्मक प्रति उत्तर तक नहीं दिया था.
असल में सुरक्षा जांच के दौरान दिव्यांग के कृत्रिम अंग को हटवाना सुरक्षाकर्मियों की मजबूरी भी होती है. उनको सुनिश्चित करना होता है कि कृत्रिम अंग में कुछ आपत्तिजनक या गैर कानूनी वस्तु तो लेकर नहीं ले जा रही है. दूसरी तरफ दिव्यांग को कृत्रिम अंग हटाने में तकलीफ भी होती है और उसको भावनात्मक रूप से खराब भी लगता है. यही नहीं कृत्रिम अंग को फिर से लगाना और उसे पहले की तरह सेट करने में समय भी लगता है. कई बार वहां ज़रूरत के मुताबिक स्थान या सपोर्ट सिस्टम की कमी के कारण कृत्रिम अंग दुबारा ठीक से नहीं लगता. इससे खीझ भी होती है. इन तमाम हालात के मद्देनजर समस्या का समाधान खोजने के लिए संबंधित व्यक्तियों से सुझाव भी मांगे गये हैं.