कई मोर्चों पर अपने दमखम से लबरेज़ कारनामों के बूते पर लोहा मनवा चुका भारत का सबसे पुराना अर्ध सैन्य बल असम राइफल्स (Assam Rifles) 185वां स्थापना दिवस मना रहा है. पूर्वोत्तर भारत का प्रहरी कहलाने ये बल 24 मार्च 1835 को सिर्फ कुछ सौ जवानों (तकरीबन 750) की भर्ती के साथ गठित किया गया था और इसका नाम था कछार लेवी. अब 46 बटालियन वाले इस संगठन में जवानों की नफरी 65 हजार के आसपास पहुँचने वाली है. अलग अलग तरह के काम की चुनौतियों से निपटना हो या इसका प्रशासनिक ताना बाना, हर मामले में इसका इतिहास अन्य सभी बलों से अलग भी और पेचीदा भी रहा है. लेकिन ताकत, हिम्मत, जोश और बहादुरी के दम पर इसने कामयाबी के परचम हर जगह फहराए हैं.
गठन के बाद से अब तक कई तरह के बदलावों की चुनौती का सामना करते हुए दूसरी सदी के उत्तरार्ध के करीब पहुँच रहे असम राइफल्स के प्रशासनिक माई बाप भी बदलते रहे है. 1965 तक तो ये विदेश मंत्रालय के अधीन था जब ये मंत्रालय पूर्वोत्तर मामलों (NEFA) का प्रभारी था. वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत की आंतरिक सुरक्षा और भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा की दोहरी ज़िम्मेदारी सम्भाल रहा असम राइफल्स ऐसा बल है जिसका नेतृत्व तो करते हैं भारतीय सेना के अधिकारी लेकिन इस पर नियन्त्रण गृह मंत्रालय का होता है. रैंक, वेतन, भत्ते आदि थल सेना के अधिकार क्षेत्र में होते हैं यानि ये रक्षा मंत्रालय के अधीन है. बेशक ये हमेशा साज़ो सामान और प्रशिक्षण में प्राथमिकता पर न होने की कमी से भी जूझता रहा लेकिन जहां ये नागरिक प्रशासन की दाहिनी बाजू है वहीं सेना की बायीं बांह भी है.
जवानों को बधाई :
वर्तमान में असम राइफल्स के प्रमुख हैं लेफ्टिनेंट जनरल सुखदीप सांगवान जो बल के महानिदेशक हैं. सेना मेडल से सम्मानित लेफ्टिनेंट जनरल सांगवान वैसे राजपुताना राइफल्स से है. उन्होंने स्थापना दिवस के अवसर पर असम राइफल्स के अधिकारियों और जवानों को बधाई संदेश भेजा है.
बल का मुखिया :
असम राइफल्स का प्रमुख थल सेना के अधिकारी को बनाया जाता है जो लेफ्टिनेंट जनरल रैंक का हो. अमूमन महानिदेशक का पद पुलिस बलों के या नागरिक विभागों में होता है लेकिन कुछ सैन्य संगठनों या सेना से सम्बद्ध इकाइयों के प्रमुखों को भी महानिदेशक बनाया जाता है. महानिदेशक गृह मंत्री को रिपोर्ट करता है.
गठन और काम :
असल में इसे ब्रिटिश शासन ने चाय बागानों वाले क्षेत्र की पुलिस फ़ोर्स के तौर पर बनाया था ताकि आदिवासियों के हमलों को रोका जा सके. इसके बाद इसे अविभाजित असम की सीमा की सुरक्षा के लिए 1883 में इसे असम फ्रंटियर पुलिस नाम दिया गया जो 1891 में बना दिया गया असम मिलिटरी पुलिस. वहीं 1913 में बना ईस्ट बंगाल और असम मिलिटरी. इसे वतर्मान नाम असम राइफल्स 1917 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दिखाई गई शूरवीरता के बाद मिला. इस युद्ध में इसके जवान ब्रिटिश सेना की तरफ से यूरोप और मध्य पूर्व के मैदान में लड़े थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इसने मुख्यत: बर्मा सीमा पर तैनाती की लेकिन इसके बाद ही इसका तेज़ी से विकास हुआ.
मेघालय की राजधानी शिलोंग में मुख्यालय वाले असम राइफल्स को मोटे तौर पर आंतरिक सुरक्षा का काम दिया गया है लेकिन समय समय पर इसे अलग अलग तरह की सेवा पर भी लगाया गया. भारत सरकार की 2002 में अपनाई गई ‘एक बॉर्डर एक फ़ोर्स’ की नीति के तहत इसे भारत-म्यांमार सीमा की निगरानी की ज़िम्मेदारी दी गई. युद्ध और पूर्वोत्तर में तैनाती के अलावा देश के भीतर ही अन्य हिस्सों में भी असम राइफल्स के जवानों की तैनाती की गई.
संख्या में बढ़ोतरी :
भारत जब अंग्रेज़ी शासन से 1947 में मुक्त हुआ तब असम राइफल्स मात्र 5 बटालियन वाला बल था. 1960 में बटालियन की संख्या 17 तक और 1968 में 21 तक पहुँची जो अब 46 है. अब इसके पास प्रशिक्षण केन्द्र समेत कई क्षेत्रीय मुख्यालय हैं और साथ ही एक समय में 1800 जवानों को ट्रेनिंग देने की क्षमता है.
मेडल और सम्मान :
इसके अधिकारी और जवानों को बहादुरी भरे, साहसी कारनामों और विशेष, सराहनीय कामों के लिए के लिए अब तक विभिन्न श्रेणी के तकरीबन 450 सम्मान मिल चुके हैं. इनमें 4 अशोक चक्र, 5 वीर चक्र, 31 कीर्ति चक्र, 120 शौर्य चक्र शामिल हैं.