भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच दो साल पहले लदाख की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच नए सिरे से पैदा हुआ तनाव घट नहीं रहा है. उल्टा उसके बाद से दोनों देशों ने सीमा पर अपनी गतिविधियां और बढ़ा दी है. पाकिस्तान की 1999 की हरकत से धोखा खा चुका भारत अब चीन के मामले में चूक नहीं करना चाहता. श्रीनगर-लेह मार्ग के बीच सफर के वक्त को कम करने और लदाख से 12 महीने सड़क सम्पर्क बनाए रखने के मकसद से बनाई जा रही जोजिला सुरंग के निर्माण कार्य में शायद इसीलिये गति लाई जा रही है.
1999 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए करगिल युद्ध के बाद जम्मू-श्रीनगर-लेह के बीच बेहतर सड़क सम्पर्क की ज़रूरत महसूस हुई थी. इस दिशा में श्रीनगर तक काफी काम हुआ. इसके आगे लदाख तक की कनेक्टिविटी को बेहतर करने के लिए हाईवे पर तो काम हुआ लेकिन खतरनाक जोजिला दर्रे पर पड़ने वाली बर्फ हमेशा बाधा बनी रही. इस रुकावट को दूर करने के लिए सड़क के विकल्प के तौर पर बरसों बाद जोजिला सुरंग परियोजना की शुरुआत हुई. सामरिक ही नहीं इस रास्ते का लदाख के आर्थिक विकास के नजरिये से भी काफी महत्व है.
जोजिला सुरंग की खासियत :
पाकिस्तान ने 1999 में लदाख को अपने कब्ज़े में लेने के लिए इसी हाइवे के दोनों ओर के पहाड़ों पर अपने सैनिकों के ठिकाने इस तरह से बनाए थे कि हाइवे उनके हथियारों की रेंज में रहे. इसी षड्यंत्र के इरादे से पाकिस्तानियों की घुसपैठ से निबटने में भारत को अपने 500 से ज्यादा सैनिक गंवाने पड़े. भारत को तब इस इलाके की सामरिकता गहराई से समझ आई और यहां जल्द से जल्द पहुँचने की क्षमता विकसित करने की ज़रूरत का अहसास हुआ. श्रीनगर से लेह जाने के रास्ते में 100 किलोमीटर बाद गान्दरबल ज़िले में पड़ने वाले जोजिला दर्रे की ऊबड़ खाबड़ संकरी सडक के चार घंटे के सफर के विल्कप के तौर पर सुरंग बनाने का काम शुरू हुआ. सोनमर्ग की खूबसूरत वादी वाले नजारों के खत्म होते ही जोजिला सुरंग का प्रवेश द्वार है. करीब 14 किलोमीटर लम्बी इस सुरंग का दूसरा मुंह मिनामर्ग पर खुलेगा जहां से द्रास झट से पहुंचा जा सकेगा.
जोजिला सुरंग परियोजना पूरी होने पर, चार घंटे वाले तकलीफदेह और खतरनाक सफर को 40 मिनट वाले आरामदायक और सुरक्षित सफर में तब्दील कर देगी. यही नहीं ‘आल वेदर टनल’ (all weather tunnel) होने के कारण ये रास्ता हमेशा खुला रहेगा. यानि द्रास तक पहुँचने के लिए बर्फ के पिघलने या हटने का इंतज़ार नहीं करना होगा. साल में 4 से 5 महीने तक कटे रहने वाला ये इलाका 14 किलोमीटर की जोज़िला सुरंग परियोजना पूरी होने के बाद देश से हरेक मौसम में जुड़ा रहेगा जिसका सबसे ज्यादा फायदा लदाख की अर्थव्यवस्था में भी होगा. इससे न सिर्फ आवाजाही सुगम होगी बल्कि सैलानियों की तादाद में भी इजाफा होगा.
सुरंग निर्माण में खूब तेज़ी आई :
प्लान के मुताबिक़ सुरंग 2026 तक पूरी की जानी थी लेकिन इसके निर्माण में जिस तेज़ी से काम चल रहा है उसके हिसाब से सितंबर 2025 तक इसे पूरा करने की सोची जा रही है. हालांकि सुरंग निर्माण करने वाली कंपनी मेघा इंजीनियरिंग एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के एक अधिकारी का कहना है कि सितंबर 2024 तक ये सुरंग आपात स्थिति में सेना के इस्तेमाल करने लायक तो बन ही जाएगी. समुद्र तट से 3500 मीटर से भी ज्यादा उंचाई वाले इलाके में सर्दियों में माइनस तापमान में भी जोजिला सुरंग का काम तेज़ी से चलता रहा. क्षेत्र में राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले तो कहते हैं कि केंद्र की वर्तमान सरकार इसे आगामी लोकसभा चुनाव में एक उपलब्धि के तौर पर प्रचारित करके राजनीतिक लाभ भी लेगी. वक्त से पहले तेज़ी से काम पूरा करने की यहां हो रही कोशिश को इस तरह से भी देखा जा रहा है. वैसे इस तेज़ी की बड़ी वजह सामरिक है. इस क्षेत्र में पाकिस्तान तो पहले से ही चुनौती दे चुका है और अब गलवान घाटी वाले घटनाक्रम के बाद से यहां चीन से सटी सीमा पर भारतीय सेना को कभी भी बड़ी तैयारी और बंदोबस्त करने पड़ सकते हैं. ऐसे में लदाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में सडक सम्पर्क की सबसे ज्यादा अहमियत होगी .
अर्थव्यवस्था के लिए वरदान :
जोजिला सुरंग का बनना लदाख और खासतौर से द्रास की अर्थव्यवस्था में काफी सुधार ला सकता है. 12 महीने की कनेक्टिविटी से सैलानियों की तादाद तो पक्का बढ़ेगी. आतिथ्य और ट्रेवलिंग उद्योग से जुड़े लोग द्रास का भविष्य लोकप्रिय विंटर स्पोर्ट्स डेस्टीनेशन (winter sports destination) और बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग के लिए आकर्षक साइट के तौर पर भी देख रहे हैं. असल में सुरंग बनने के बाद भारत में द्रास ही सुगम तरीके से पहुचने वाली ऐसी जगह होगी जहां सबसे ज्यादा बर्फ मौजूद होगी. अगले 3 – 4 साल में द्रास के ‘विंटर स्पोर्ट्स’ और फिल्म शूटिंग केंद्र बनने की संभावना को देखते हुए व्यवसायियों ने उस हिसाब से कारोबार करने की तैयारी भी कर ली है. यहीं के बाशिंदे और पोलो के शौक़ीन व्यवसायी शमीम कारी ने तो इस मकसद से शानदार होटल ‘डी मेडोस’ (hotel d’meadows) भी खड़ा कर लिया है. उनकी पोलो टीम है और वे यहां पोलो टूर्नामेंट भी कराते है. द्रास में कई छोटे मोटे गेस्ट हाउस ज़रूर हैं लेकिन बड़ा होटल यही है जिसमें 4 सितारा होटलों वाली लग्जरी सुविधाएं भी हैं. श्री कारी बताते हैं कि बीते 26 जुलाई को ‘करगिल विजय दिवस’ के मौके पर जब ‘करगिल युद्ध स्मारक’ पर बड़ा कार्यक्रम हुआ तो सेना के कई बड़े अधिकारी यहां आए. शमीम कारी कहते हैं, ” यहां ठहरे मेहमानों में रिटायर्ड जनरल भी थे.” हालाँकि द्रास में सैलानियों की बढ़ती सम्भावनाएं ही वजह थीं जो सरकार ने यहां हेलिकॉप्टर सेवा शुरू की है लेकिन इन दिनों में यहां फिलहाल यहां हेलिकॉप्टर उतर नहीं रहे.
खेलों के लिए काफी गुंजायश :
लदाख में ‘हॉर्स पोलो’ (horse polo) का क्रेज़ काफी पुराना है. द्रास थाने के वर्तमान एसएचओ तुरतुक गांव के निवासी इन्स्पेक्टर फ़ाज़िल अब्बास भी पोलो खिलाड़ी हैं. उनके पिता हाजी अब्दुल्लाह तो अपने ज़माने में जाने माने पोलो खिलाड़ी रहे हैं. लदाख में पोलो के लोकप्रिय होने की वजह है यहां घोड़ों की उपलब्धता. यहां की तारीफ में लोग ये तक दावा करते है कि सर्दियों में तो द्रास, कश्मीर के गुलमर्ग से भी ज्यादा सैलानियों को आकर्षित करेगा. यहां ‘ स्कीइंग ‘ और ‘आइस हॉकी’ जैसे खेलों के साथ साथ ‘रॉक क्लाइम्बिंग’ की भी अपार संभावनाएं हैं. बेशक ये अतिशयोक्ति हो सकती है लेकिन यहां के लोग तो द्रास के बर्फीले नजारों की तुलना स्विज़रलैंड की खूबसूरती से करते हैं. द्रास भारत में नंबर एक और विश्व में साइबेरिया के बाद इंसानी बसावट वाला दूसरे नम्बर का सबसे ज्यादा ठंडा इलाका कहा जाता है. यहां सर्दियों में तापमान -25 या उससे भी कम पहुँच जाता है.
सबकी पसंद के स्थान :
द्रास करीब करीब अपराधमुक्त क्षेत्र है जो पर्यटन के लिए किसी भी जगह का सबसे बड़ी विशेषता होती है. सुरक्षित होने के अलावा द्रास में आसपास ही पसंद आने लायक कई जगह हैं. श्रीनगर -लेह हाईवे वे पर ही द्रौपदी कुंड नाम का सरोवर है. पौराणिक कथा के मुताबिक़ वनवास के दौरान पांडवों के यहां से गुजरते वक्त द्रौपदी ने स्नान किया था. द्रास में मनमन टॉप ऐसी पहाड़ी चोटी है जहां से पूरी द्रास घाटी का नजारा तो लिया ही जा सकता है. पाकिस्तान का एलओसी वाला इलाका भी यहां से दिखता है. ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए द्रास-गुरेज़ रूट है जो जंगली फूलों की मशहूर मुश्कु घाटी से ही जाता है. हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थान अमरनाथ गुफा तक जाने का एक ट्रैक भी द्रास से है. इस रास्ते से गुफा तक पहुँचने में 4 से 5 दिन लगते हैं. द्रास से 30 किलोमीटर के फासले पर मचोई ग्लेशियर है जो द्रास नदी का उद्गम स्थल है. एडवेंचर के शौकीनों, प्राकृतिक सौन्दर्य, शांत वातावरण और पहाड़ पसंद करने वालों के वास्ते तो द्रास स्वर्ग से कम नहीं है. जिन्हें सामरिक विषयों, सेना, सुरक्षा और युद्धों के इतिहास में दिलचस्पी है उनके लिए भी यहां काफी कुछ है.