महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में भी जीती सरकार से जंग, सेना में मिलेगा स्थायी कमीशन

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विजयी मुद्रा में आर्मी अफसर वकील (बीच में) के साथ.

भारतीय थल सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुये सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के उस नजरिये और दलील को अपमानजनक कहा जिसकी वजह से अब तक महिलाओं को उनका ये हक़ नहीं मिल पाया. सेना में स्थायी कमीशन पाने के लिए 17 साल से कानूनी लड़ाई लड़ रही महिलाओं को अब इंसाफ मिला है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की उन दलीलों को ख़ारिज किया जिनमें सेना में महिलाओं को सहकर्मियों के बराबर जिम्मेदारी वाला काम और तैनाती न दिए जाने के पीछे उनकी शारीरिक क्षमताओं और सामाजिक मानदंडों को आधार बनाया गया था. कोर्ट ने कहा है कि वर्तमान में सेना में तैनात उन सभी महिलाओं को ऐच्छिक आधार पर स्थायी कमीशन दिया जाए जो शार्ट सर्विस कमीशन से सेना में शामिल हुई हैं.

जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने सोमवार को ये फैसला सुनाते हुये महिलाओं को कमांड अधिकारी के तौर पर तैनात करने को कहा है लेकिन कॉम्बैट रोल (युद्ध लड़ने) में उनकी तैनाती का फैसला सेना और सरकार पर छोड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार ने महिला अधिकारियों को लैंगिक आधार पर स्थायी कमीशन न देकर पूर्वाग्रह दिखाया है. सशस्त्र बलों में लैंगिक आधार पर भेदभाव खत्म करने के लिए मानसिकता बदलने की ज़रूरत है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने बरसों से चल रहे इस केस में 2010 में महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि महिला सैनिकों को सेना में स्थायी कमीशन मिलना चाहिए. फिर 2 सितम्बर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि हाई कोर्ट के फैसले पर रोक नहीं होगी. इसके बावजूद सरकार ने इस पर न अमल किया और न ही तवज्जो दी.

कोर्ट ने कहा कि अंग्रेजों का दौर ख़त्म होने के 70 साल बाद भी सरकार को सेना में लैंगिक आधार पर भेदभाव ख़त्म करने के लिए मानसिकता बदलने की ज़रुरत है. सेना में उपलब्धियों और उनकी भूमिकाओं की क्षमताओं पर शक करना न सिर्फ महिलाओं की बल्कि सेना की भी बेइज्जती है.

कब क्या हुआ :

इस मुद्दे को सबसे पहले वकील बबीता पुनिया ने 2003 में अदालत में पहुँचाया था. उसके बाद सेना की कुछ और महिला अधिकारीयों ने अगले 6 साल में अलग अलग याचिकाएं दायर की थीं. 2010 में हाई कोर्ट का फैसला आया और तब अदालत ने कहा था कि जो महिला अधिकारी रिटायमेंट की उम्र तक नहीं पहुंची है, उन सबको सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए. साथ ही उन्हें तरक्की के भी लाभ दिए जाएँ. हाई कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए टिप्पणी भी की थी, “ ऐसा करके हम महिलाओं पर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं.”

पिछले साल यानि 2019 में सरकार ने महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन देने की नीति तो बनाई लेकिन इसे 10 शाखाओं तक सीमित रखा. साथ ही कहा कि ये लाभ मार्च 2019 के बाद सेवा में शामिल हुई अधिकारियों को मिलेगा. इतना ही नहीं, सरकार ने अदालत में सामाजिक मापदन्डों का हवाला देते हुए ये दलील भी दी थी कि पुरुष महिला कमान अधिकारी का आदेश मानने को तैयार नहीं होंगे.

वर्तमान में :

थल सेना में अभी महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन के दौरान आर्मी सर्विस कोर, ऑर्डनेंस, शिक्षा कोर, जज एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखाओं में ही शामिल हो सकती हैं. उन्हें इन्फेंटरी, आर्मर्ड, तोपखाने और मैकेनाइज्ड इन्फेंटरी जैसी उन शाखाओं में काम नहीं दिया जाता जिनकी युद्ध में आमने सामने की सक्रिय भूमिका होती है. वैसे मेडिकल कोर और नर्सिंग सेवा में ये नियम लागू नहीं होते क्यूंकि इनमें महिलाओं को स्थायी कमीशन मिलता है जिसमें वे लेफ्टिनेंट जनरल पद तक भी पहुंच जाती हैं.

नौसेना और वायुसेना में तो महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन का विकल्प मिल गया है. महिला अधिकारी वायुसेना में युद्धक भूमिका जैसे कि फ्लाइंग और ग्राउंड ड्यूटी में शामिल हो सकती हैं. शॉर्ट सर्विस कमीशन के अधीन भी वे हेलिकॉप्टर से लेकर लड़ाकू जेट भी उड़ा सकती हैं. नौसेना में भी महिला अधिकारी लॉजिस्टिक्स, कानून, एयर ट्रैफिक कंट्रोल, पायलट जैसी सेवा दे सकती हैं.