जज़्बा : साल भर पहले शहीद हुए मेजर विभूति की पत्नी निकिता भी पहनेंगी सेना की वर्दी

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शहादत से पहले : मेजर विभूति शंकर ढोंडियाल और निकिता (फाइल फोटो).

पिछले साल पुलवामा हमले के बाद आतंकवादियों से लोहा लेते शहीद हुए भारतीय सेना के मेजर विभूति शंकर ढोंडियाल की पत्नी निकिता कौल ढोंडियाल के उस जवाब ने, इंटरव्यू लेने वालों को थोड़ा हैरान तो किया ही जब निकिता ने कहा कि उनके वैवाहिक जीवन को दो साल हो रहे हैं. क्यूंकि असलियत तो यही थी कि 17 फरवरी 2019 को कश्मीर में आतंकवादियों जिस मुठभेड़ में मेजर विभूति ढोंडियाल और उनके साथी जवानों की शहादत हुई थी उससे नौ महीने पहले ही विभूति और निकिता विवाह बंधन में बंधे थे. शायद यही वजह थी जो निकिता कौल ढोंडियाल को, अपने इस उलझाने वाले जवाब को खुद इंटरव्यू लेने वाले बोर्ड के सदस्य को समझाना पड़ा.

निकिता ने अपने जवाब को स्पष्ट करते हुए कहा था कि उनके पति आज भी उनके साथ हैं और वो आज भी मेजर विभूति की पत्नी हैं. सच में ऐसा समर्पण भाव किसी को भी हैरान करेगा ही. दिल्ली में रह रही निकिता एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी की नौकरी छोड़कर सेना में शामिल हो अधिकारी के तौर पर शामिल होने जा रही हैं. वैसी ही वर्दी धारण करेंगी जैसी पति ने पहनी थी.

मूल रूप से कश्मीर की रहने वाली निकिता कौल और उत्तराखंड के विभूति ढोंडियाल ने साथ साथ एमबीए किया था और इसी दौरान उनकी दोस्ती हुई थी जो विवाह तक पहुंची. निकिता ने लघु सेवा आयोग (एसएससी) की परीक्षा और इंटरव्यू पार कर लिया है. सब कुछ ठीक ठाक रहा था तो जल्द ही निकिता चेन्नई स्थित अधिकारियों की अकेडमी में ट्रेनिंग के लिए चली जायेंगी. बेशक शहीद जवानों की पत्नियों को सेना में भर्ती होने के लिए उम्र में छूट मिलती है लेकिन उन्हें परीक्षा में या प्रक्रिया में कोई छूट नहीं मिलती. पति की मृत्यु के साल भर के भीतर कड़ी तैयारी के साथ परीक्षा पास करने वाली निकिता के लिए ये आसान नहीं था. अब ट्रेनिंग भी आसान नहीं होने वाली लेकिन निकिता के जज्बे के आगे शायद ये सब कष्ट बौने हैं.

शादी के बाद : मेजर विभूति शंकर ढोंडियाल और निकिता (फाइल फोटो).

उल्लेखनीय है कि 14 फरवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने बस में जा रहे सीआरपीएफ के 40 जवानों को बम हमले में मार डाला था. इसके तीन दिन बाद, 55 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात मेजर विभूति और उनके साथी जवानों की आतंकवादियों के साथ 20 घंटे मुठभेड़ चली थी. इसमें तीन और सैनिक सिपाही हरी सिंह, हवलदार श्योराम, सिपाही अजय कुमार शहीद हुए थे. जख़्मी हुए हेड कांस्टेबल अब्दुल रशीद कलस ने भी बाद में इलाज के दौरान प्राण त्याग दिए थे. आतंकवादियों से मुकाबले के लिए मेजर विभूति शंकर ढोंडियाल ने आमने सामने की लड़ाई बेहद बहादुरी से लड़ी थी और उनके गर्दन व पेट में गोलियां लगीं थीं. इस मुठभेड़ के बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद के मुखिया को मार डाला था.

जब तिरंगे से लिपटे ताबूत में मेजर विभूति शंकर ढोंडियाल का पार्थिव शरीर देहरादून लाया गया तो अंतिम विदाई देने के लिए बड़ी तादाद में लोग आखिरी यात्रा में शामिल हुए थे. तब भला कौन जानता था कि पति के आखरी दर्शन करने और सेल्यूट करने वाली पति से ही प्रेरित होकर एक दिन उसी वर्दी को धारण करेगी.