लदाख में सेना के ट्रक के खाई में गिरने के हादसे में जान गंवाने वाले भारतीय सेना के 9 जवानों में से एक तरनदीप सिंह को पंजाब के उसके गांव कमाली में आखरी विदाई से पहले पुष्पांजलि अर्पित करने पहुंची फतेहगढ़ साहब की ज़िलाधिकारी परनीत कौर के लिए यह बेहद भावुक पल थे. बेशक ज़िले में शासन का प्रमुख का फर्ज़ निभाने के तौर पर परनीत यहां उपस्थित थीं लेकिन इसके पीछे जुडी एक और वजह भी थी. एक ऐसी वजह जो कुछ और भारतीय सैनिकों के बलिदान से तो जुडती ही है. खुद परनीत के निजी जीवन से भी उसका ताल्लुक है . दरअसल यह वजह परनीत कौर का ताल्लुक एक फौजी परिवार से अपना संबंध होने से भी बड़ी है.
यूं तो अपने या अपनों से जुड़े किसी भी शख्स की मृत्यु उनसे हमेशा के लिए बिछोह का दर्द दे जाती है . कालांतर में यह तकलीफ थोड़ी कम हो जाती है लेकिन कुछ पल या घटनाएं ऐसी होतीं है जो हमारे सामने उस अतीत को सामने ला फिर से खड़ा कर देती है. फतेहगढ़ साहब की डीसी परनीत को संभवत: कुछ ऐसे ही पलों से तब गुजरना पड़ रहा था जब वो गनर तरनदीप सिंह के पार्थिव शरीर को पुष्प चक्र अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि दे रही थीं. लेह से भारतीय वायु सेना के हवाई जहाज़ के जरिए तरनदीप का शव सोमवार को चंड़ीगढ़ लाया गया था. सैनिक सम्मान के साथ विदा करते हुए बिगुल वादक ‘लास्ट पोस्ट ‘ ( the last post ) की धुन बजा रहे थे.
यह धुन शायद जिलाधिकारी परनीत कौर ( dc parneet kaur shergill ) को उस समय में ले गई जब उनके पिता और भारतीय सेना के ब्रिगेडियर बी एस शेरगिल के पार्थिव शरीर को सेना और इस संसार ने हमेशा के लिए विदा किया था . यह अजीब इत्तेफाक है कि वो भी आज का दिन था. तारीख थी 21 अगस्त लेकिन 23 साल पहले की. यूं परनीत कौर को आज के पटियाला में होना था जहां उनके पिता ब्रिगेडियर शेरगिल की स्मृति में उनकी 23 पुण्यतिथि पर हर साल होने वाला कार्यक्रम होना था. यह कार्यक्रम उन दिव्यांगजनों के कल्याणार्थ कराया जाता है जो सुनने में और देखने में अक्षम होते हैं . इसके लिए परनीत शेरगिल ने पटियाला जाने के लिए अवकाश भी लिया था. लेकिन वहां जाने की बजाय परनीत को अपने ज़िले के ही गांव के वासी उस परिवार के साथ पल बिताना ज्यादा सही लगा जिन्होंने देश सेवा के लिए सेना में भेजे अपने जवान बेटे को खोया.
अब 21 अगस्त 2023 है और वह 21 अगस्त 2000 थी. परनीत कौर शेरगिल के पिता ब्रिगेडियर बी एस शेरगिल ने जम्मू कश्मीर में में सेक्टर 7 की कमांड लिए कुछ ही दिन हुए थे. वह अपने साथी कर्नल राजेंद्र चौहान और सिग्नलमैन नाइक जोस के साथ उस इलाके का जायजा लेने के लिए निकले थे जो तीन दिन पहले ही उनको सौंपा गया था . यह तब की बात है जब भारत – पाकिस्तान के बीच हुआ करगिल युद्ध खत्म हुए साल भर ही हुआ था. जम्मू कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को कुपवाड़ा में उनके उस स्थान से गुजरने की भनक लग गई. आतंकवादियों ने राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन मुख्यालय से 4 किलोमीटर के फासले पर वारोपा गांव के निकट रिमोट कंट्रोल से संचालित आई ई डी ब में धमाका ( ied blast ) करके उस वाहन को हमले का शिकार बनाया जिसमें सैनिक अफसर सफर कर रहे थे. बुरी तरह घायल तीनों फैजियों ने दम तोड़ दिया .
कौन थे ब्रिगेडियर बलविंदर सिंह शेरगिल :
पंजाब के संगरूर ज़िले के गंगढ़ गांव में 4 मार्च 1951 को पैदा हुए ब्रिगेडियर बलविंदर सिंह शेरगिल राष्ट्रीय रक्षा अकादमी ( national defence academy ) में दाखिले से पहले अपनी स्कूली शिक्षा गांव के ही स्कूल में पूरी की . वह एनडीए के 39 वें कोर्स में थे और बाद में शेष ट्रेनिंग के लिए इंडियन मिलिटरी अकेडमी ( आई एम ए) में गए. वहां से 20 साल की उम्र में पास आउट होने पर 14 नवंबर 1971 को उन्होंने भारतीय सेना की इन्फेंटरी रेजीमेंट पंजाब रेजीमेंट की बटालियन 3 पंजाब ( 3 punjab ) में कमीशन हासिल किया . पंजाब रेजीमेंट का शौर्य और साहस दिखाते हुए युद्धों के कई सम्मान हासिल करने का शानदार इतिहास है . खुद ब्रिगेडियर ने भी 1971 के उस भारत -पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया था जो सेना में उनके कमीशन हासिल करते ही शुरू हुआ था.
ब्रिगेडियर बी एस शेरगिल की तैनाती :
ब्रिगेडियर बी एस शेरगिल ( brigadier b s shergill ) उन सैनिक अधिकारियों में से एक थे जिनको अपनी बटालियन की कमान संभालने के दो मौके मिले . एक तब जब उनका अपना राज्य पंजाब आतंकवाद की आग में सुलग रहा था और दूसरा पूर्वोतर में वहां चला रही गड़बड़ी के दौरान. इसके अलावा ब्रिगेडियर शेरगिल 6 माउंटेन डिवीज़न ( 6 mountain division ) के कर्नल जनरल स्टाफ भी रहे. वह श्रीलंका में शांति सेना के तौर पर भेजी गई भारतीय सेना में भी शामिल थे. सेना में 29 साल की सेवा और तजुर्बे के बाद साल 2000 आते आते आते ब्रिगेडियर बी एस शेरगिल की पहचान एक ऐसे सैनिक अफसर की बन गई थी जिसमें नेतृत्व क्षमता और आगे बढ़कर मोर्चा सम्भालने का दम था .
वो 21 अगस्त 2000 :
ब्रिगेडियर बी एस शेरगिल ने जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स के सेक्टर 7 की कमान 18 अगस्त 2000 को सम्भाली थी . अभी उन्होंने अपने अधिकारियों और इलाके से रूबरू होने का सिलसिला शुरू ही किया था. इलाका आतंकवादियों से भरा पड़ा था इसलिए सेना के किसी भी तरह के नियमित ऑपरेशन पर भी सेक्टर मुख्यालय को अपनी नज़र बना कर रखनी होती थी . उस दिन यानि 21 अगस्त 2000 को इलाके को देखने के लिए उनका 21 आरआर बटालियन मुख्यालय का दौरा करने का प्लान बना. ऑपरेशन की विस्तृत जानकारी लेने के बाद ब्रिगेडियर शेरगिल अपने जूनियर साथी और 21 राष्ट्रीय राइफल्स के कमान अधिकारी कर्नल आर एस चौहान (col r s chauhan ) के साथ निकले . दोनों एक ही गाडी में थे जिसे कर्नल चौहान चला रहे थे . शायद आतंकवादियों तक , सेना के बड़े अफसरों के दौरे की खबर पहले ही पहुँच गई थी . इसन अफसरों की गाडी अभी आर आर बटालियन के नज़दीक ही पहुंची थी कि आतंकवादियों ने वहां रास्ते में लगाई आई ई डी में रिमोट कंट्रोल से धमाका करके वाहन क उड़ा दिया . उन्हें जवाबी कार्रवाई करने का मौका भी नहीं मिला. वाहन सवार तीनों सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए.
कौन हैं आई ए एस परनीत कौर शेरगिल :
भारतीय सेना के ब्रिगेडियर रहे बी एस शेरगिल की दो बेटियों में से एक परनीत शेरगिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2013 बैच के पंजाब कैडर की अधिकारी हैं . फतेहगढ़ में 14 अप्रैल 2023 को जिला अधिकारी का का ओहदा संभालने से पहले वह पंजाब रोडवेज़ ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन ( पीआरटीसी ) में प्रबंध निदेशक ( managing director , punjab roadways transport corporation ) थीं. उससे पहले परनीत शेरगिल फतेहगढ़ साहिब की ही बस्सी पठाना तहसील में एसडीएम और फतेहगढ़ ज़िले में ही एडीसी रह चुकी हैं .