शहीदों की विधवाओं को नहीं काटने होंगे दफ्तरों के चक्कर …सलाम भी दिलाएगा वीरांगना कार्ड

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वीरांगना कार्ड
अम्बाला की ज़िला उपायुक्त शरणदीप कौर. Photo/YouTube

शहीद सैनिकों की विधवाओं को अब अलग अलग तरह के काम के लिए सरकारी दफ्तरों और अधिकारियों के बार बार चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे और न ही उन्हें सरकारी दफ्तरों में लाइन में लगना होगा. ऐसा उस वीरांगना कार्ड के जरिये सम्भव होगा जो 30 मई को हरियाणा के अम्बाला जिले में जारी किया जायेगा. इस कार्ड पर कार्ड धारक महिला का फोटो, पता वगैरह वैसे ही दर्ज होगा जैसा किसी आई कार्ड में होता है. सभी सरकारी महकमों को निर्देश दिए जा रहे हैं कि उनके यहाँ पहुंचने वाली ‘वीरांगना कार्ड धारक’ शहीद सैनिकों की विधवाओं के काम को प्राथमिकता के आधार पर किया जाये. इस कार्ड की वैधता तीन साल होगी.

वीरांगना कार्ड का ये आइडिया दरअसल अम्बाला की ज़िला उपायुक्त शरणदीप कौर का है. छावनी और एयरबेस होने की वजह से अम्बाला में बड़ी तादाद में सैनिक परिवार भी रहते हैं. इस वजह से शहीदों के परिवारों की संख्या भी अच्छी खासी है.

वीरांगना कार्ड का विचार कैसे आया? रक्षक न्यूज़ डाट इन के इस सवाल का जवाब देते हुए शरणजीत थोड़ा भावुक हो जाती हैं, ‘हम इन महिलाओं को और क्या दे सकते हैं भला, जिनके पति देश के लिए जान कुर्बान हो गये. हम इन महिलाओं के रोजमर्रा के कामों में आने वाली परेशानी तो कम कर ही सकते हैं ‘. कार्ड योजना की वजह के बारे में चर्चा के दौरान बताती हैं कि उन्हें कभी कभार इस तरह की शिकायतें या सूचनाएं मिलती रहती हैं जिसमें शहीद की पत्नी को कोई सर्टिफिकेट लेने में, बच्चों से सम्बन्धित सरकारी दस्तावेज़ हासिल करने आदि में देरी हुई या फिर उन्हें इसके लिए बार बार किसी दफ्तर में आना पड़ा. कुछ मामलों में देखा गया है कि बच्चे छोटे होते हैं जिन्हें वो महिलाएं साथ लाती हैं या उन्हें घर छोड़कर आती हैं. ऐसे में बार बार दफ्तर आना जाना या काम में देरी उनके लिए न सिर्फ व्यवहारिक दिक्कतें बढ़ाता है बल्कि सरकारी तन्त्र के प्रति हताशा का भाव पैदा करता है. इस कार्ड के जरिये उन्हें सरकारी दफ्तरों में अलग प्राथमिकता व पहचान भी मिलेगी.

भारत में पहली बार :

वीरांगना कार्ड बनाने और इन्हें जारी करने की ये पहली ये पहली स्कीम है और ये अम्बाला में ही फिलहाल शुरू हो रही है. बुधवार को एक कार्यक्रम के दौरान ये कार्ड वितरित किये जायेंगे जो प्लास्टिक कार्ड की शक्ल में होंगे. वैसे हो सकता है कि इस कार्ड के लाभ दिखाई देने के बाद सरकारें या और जिलों के प्रशासक इसे लागू करने की सोचें.

कौन है ये डीसी श्रीमती शरण :

शरणदीप भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के 2009 बैच की अधिकारी हैं और बेहद संवेदनशील और अनुशासनप्रिय. इस नौकरी में आने से पहले ही छात्र जीवन में टापर रहने की वजह से वे सुर्ख़ियों में रहीं और जब UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में सेकंड टापर रहीं तब भी खबरों में जगह बनाई. विज्ञान की छात्रा, पीएचडी और पंजाब यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में मास्टर्स की डिग्री – बेहद उपलब्धियों भरा रहा है उनका छात्र जीवन. वैसे उनके पति अश्विन शेनवी भारतीय पुलिस सेवा (IPS ) के 2006 बैच के अधिकारी हैं.

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