दुनिया भर में सेनाएं और पुलिस संगठन आज उन वीरों को नमन कर रहे हैं जिन्होंने उपद्रवों और हिंसा की रोकथाम के लिए चलाए गए शांति अभियानों में प्राण गंवाए. अलग अलग देशों के वर्दीधारी संगठनों से जुड़े होने के बावजूद इनका मोर्चा एक ही होता है – शान्ति की स्थापना. संयुक्त राष्ट्र के परचम तले इकट्ठा हुए ये वो शान्ति सैनिक हैं जो अपनी आसमानी नीली टोपियों और पगड़ियों के कारण दूर से ही पहचान लिए जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र शान्ति सेना के 75 वें अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर भारत की तरफ से नई दिल्ली में सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडेय ने शांति सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की.
सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडेय ने राष्ट्रीय समर स्मारक पर पुष्प चक्र अर्पित करके उन शान्ति सैनिकों को याद किया जिन्होंने दूसरों के अमन चैन को बरक़रार रखने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया . भारतीय सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचिन्द्र कुमार , संयुक्त राष्ट्र के भारत में संयोजक शोम्बी शार्प के अलावा नौसेना , वायु सेना और विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने भी शहीद शांति सैनिकों को श्रद्धांजलि दी. कई अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस अवसर पर उपस्थित थे.
वर्ष 1948 से अब तक 75 साल के दौरान संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिकों ने विभिन्न देशों को युद्ध जैसे कठिन हालात से बाहर निकलने का रास्ता दिखाने में सहायता की है . जानलेवा झडपों में फंसने वाले नागरिकों की सुरक्षा करने के मामले में तो शान्ति सैनिक बेहद अहम साबित हुए हैं . ऐसे लोगों के लिए शान्ति सैनिक जिंदगी की बड़ी उम्मीद बनते हैं. इसके लिए कई दफा शांति सैनिकों को ऐसे खतरों का भी सामना करना पड़ता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. भारतीय सैनिकों के सन्दर्भ में इसकी ताज़ा मिसाल सीमा सुरक्षा बल के हैड कांस्टेबल सांवलाराम विश्नोई और शिशुपाल सिंह हैं. दोनों राजस्थान के मूल निवासी थे और 26 जुलाई को दक्षिण अफ़्रीकी देश कांगों में प्रदर्शनकारियों के हमले में इन्होनें प्राण गंवाए थे. महीना भर पहले ही वे दोनों भारतीय शांति सैनिक के तौर पर संयुक्त राष्ट्र की सेना में भेजे गए थे. 25 मई को अमेरिका के न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय डेग हैमरस्कॉल्ड मेडल (dag hammarskjöld medal) से सम्मानित किया गया था. यह मेडल भारत की ओर से फील्ड सपोर्ट महासचिव ने लिया.
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संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की याद में दिसंबर 2000 में संयुक्त राष्ट्र के संचालन नियंत्रण और अधिकार के तहत शांति स्थापना मिशन के साथ सेवा के दौरान अपनी जान गवाने वाले शांति मिशन के सदस्यों को मरणोपरांत पुरस्कार दिया जाता है. हर साल शांति मिशन दिवस पर यह सैनिको को एक पदक दिया जाता है.