सेना में टुअर ऑफ़ ड्यूटी पर अमल जल्द होने के आसार , कुछ नियम पता चले

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टुअर ऑफ़ ड्यूटी
फोटो प्रतीक के रूप में इस्तेमाल की गई है.

सेना में युवाओं को तीन चार साल के लिए भर्ती करने की ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी’ योजना को सरकार जल्द अमली जामा पहनाने की तैयारी कर रही है. तकरीबन दो साल से ज्यादा अरसे से भारतीय सेना में भर्ती रैलियां निलंबित रहने के बीच ये सैनिक बनने के इच्छुक जवानों के लिए अच्छी खबर है लेकिन इस योजना पर विवाद अभी तक जारी है. जब तक सरकार आधिकारिक तौर पर साफ़ साफ़ ऐलान नहीं कर देती तब तक तो इससे जुड़े विवादों और आशंकाओं पर विराम नहीं लग सकता.

टुअर ऑफ़ ड्यूटी (tour of duty ) पर चर्चा तो कई साल से चल रही थी लेकिन पिछले साल जब तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने पहली बार इसके बारे में जानकारी सार्वजनिक की तो ये नए सिरे से चर्चा का विषय बनी. कुछ पहलुओं और स्पष्टता में कमी के कारण इसके पक्ष विपक्ष में वाद – विवाद का तब जो सिलसिला चालू हुआ वो हालांकि थमा नहीं लेकिन वही सैन्य गलियारों में ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी’ को अमल में लाने के लिए लगातार मंथन भी चलता रहा.

भारतीय सेना की टुअर ऑफ़ ड्यूटी योजना :

वैसे तो सरकार या सेना की तरफ से अभी इस बारे में आधिकारिक तौर पर ऐलान नहीं हुआ है लेकिन अलग अलग ज़रियों से अब तक जो जानकारियां सामने आई हैं उससे स्पष्ट है कि ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ के तहत सेना में फिलहाल अफसर नहीं बल्कि जवानों की भर्ती की जाएगी. इस योजना में 18 साल या इससे ऊपर के ये वो 10 वीं और 12 वीं पास वो जवान भर्ती होंगे जिन्हें तकरीबन 3 से 5 साल तक सेना में अस्थाई सेवा दी जाएगी. इन युवाओं को छह से नौ महीने की सेना की बेसिक ट्रेनिंग दी जाएगी. वेतन तकरीबन 30 -40 हज़ार रूपये प्रति माह होगा. तीन – चार साल बाद ये सेवामुक्त होंगे तो इनको 10 -12 लाख रुपये की एकमुश्त राशि दी जाएगी. तब सेना छोड़ते वक्त इनकी उम्र 21 – 22 साल होगी लिहाज़ा सेना छोड़ने के बाद उनके पास नया करियर शुरू करने का मौका भी होगा. ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ योजना के तहत भर्ती नौजवान को सेवा मुक्त होने के बाद पेंशन , स्वास्थ्य उपचार और ऐसी तमाम सुविधाएं नहीं मिलेंगी जो स्थाई सैनिकों को रिटायर होने पर मिलती हैं. सेवा के दौरान मृत्यु होने पर परिवार को एक मुश्त धनराशि या अंग भंग होने पर मुआवजा या इलाज के खर्च आदि की ज़िम्मेदारी सेना की होगी. ये स्पष्ट नहीं है कि इस योजना के तहत शुरू में कितने जवानों को भर्ती किया जाएगा.

कुछ नियम ऐसे भी हैं कि निश्चित समय का सेवा काल पूरा करने के बाद कुछ सैनिकों को स्थाई सेवा में या प्रोन्नति देकर भी रखा जा सकेगा लेकिन उसके लिए उनको परीक्षा या ट्रेनिंग आदि पास करने जैसी शर्तों को पूरा करना पड़ेगा. ‘ माना जा रहा है कि टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ का एक लाभ ये भी होगा कि भारत की सेना न सिर्फ हमेशा ज्यादा युवा रहेगी बल्कि समाज में स्वस्थ व अनुशासित नौजवानों की तादाद भी बढ़ेगी.वर्तमान में भारतीय सेना में सैनिकों की औसत आयु 35 साल के आसपास है. एक अंदाजा है कि 4 -5 साल के ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ योजना के अमल में आने के कुछ अरसा बाद ये औसत घटकर 25 साल के आसपास हो जाएगी.

योजना के फायदे :

टुअर ऑफ़ ड्यूटी योजना के पक्ष में कई फायदे गिनाये जा रहे हैं. सबसे पहला तो यही कि जब सेना में प्रशिक्षित होकर 4-5 साल बाद जवान सेवामुक्त होकर लौटेगा तो वो एक तजुर्बेकार, तंदुरुस्त, अनुशासित और कर्तव्यशील व्यक्ति के तौर पर सामान्य नागरिक जीवन में आएगा. ऐसा नौजवान पुलिस, अर्धसैनिक बल या कॉर्पोरेट सुरक्षा क्षेत्र की आवश्यकता को पूरा करने के लिए भी हर तरह से मुफीद होगा. वहीं जवान को उसके प्रोफाइल में सेना में काम करने ठप्पा और तजुर्बा उनको नया करियर चुनने में मदद करेगा. टुअर ऑफ़ ड्यूटी योजना के तहत भर्ती जवान को सेवा के दौरान आगे शिक्षा जारी रखने और किसी ख़ास विधा को सीखने का भी मौका मिलेगा. इस पर होने वाला खर्चा भी सेना वहन करेगी.

धन बचाने का तरीका :

यूं देखने सुनने में तो ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ योजना तौर पर एक कल्याणकारी विचार से लबरेज़ है लेकिन इसको लागू करने के पीछे एक बड़ा कारण भारत सरकार का आर्थिक संकट भी है. भारत के रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा सैनिकों की तनख्वाह , भत्तों और पेंशन में खर्च होता है. बड़ी धनराशि गतिविधियों के परिचालन में व्यय हो जाती है लिहाज़ा सेना को अपग्रेड करने , नए अस्त्र शस्त्र और नई तकनीक से लैस करने के लिए उतना पैसा नहीं बचता जितना इसके लिए ज़रूरत है. साल 2021 में भारत का रक्षा बजट 4 लाख 78 हज़ार करोड़ रूपये था जो अब 2022 – 23 में बढ़ाकर 5 लाख 25 हज़ार करोड़ रूपये किया गया यानि 10 फ़ीसदी भी नहीं बढ़ा.

देश भर में , दो साल से सेना की भर्ती रैलियों का रुका रहना भी सरकार की सेना पर खर्च कटौती की तरफ साफ़ इशारा करता है. यूं इसके पीछे कोविड -19 संक्रमण को बहाना बनाया जाता है. वर्ष 2020 -21 में सेना की 97 भर्ती रैली होनी थीं जबकि 47 भर्ती रैली ही हुई. इनमें से भी सिर्फ चार रैली में पास हुए युवकों की लिखित परीक्षा हो पाई, बाकियों के बारे में कुछ नहीं बताया गया .

हर साल भारतीय सेना से तकरीबन 60 हज़ार जवान ( विभिन्न रैंक ) सेवामुक्त हो रहे हैं. नई भर्तियाँ रुके होने का असर अब सेना में कहीं कहीं दिखाई पड़ने लगा है. दिसम्बर 2021 तक भारतीय थल सेना (army ) में तकरीबन 97 हज़ार , नौसेना (navy ) में तकरीबन 11 हज़ार और वायुसेना ( indian air force ) में तकरीबन 5 हज़ार रिक्तियां थीं. यदि सेवानिवृत्ति और स्वेच्छिक सेवा निवृत्ति( वीआरएस ) को जारी रखना है तो सेना को नए जवानों की ज़रुरत है. लिहाज़ा सरकार ‘टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ को ही कम खर्च वाला बेहतर विकल्प के तौर पर देखते हुए जल्द ही लागू करने की सोच रही है. रक्षा क्षेत्र से जुड़े कुछ लोग इसे सेना सुधार कार्यक्रम के तौर पर भी देखते हैं.

क्या हैं टुअर ऑफ़ ड्यूटी योजना की खामियां :

कुछ जानकार भारतीय सेना में ‘ टुअर ऑफ़ ड्यूटी ‘ योजना के तहत एकदम बड़ी संख्या में अस्थाई भर्ती के खराब नतीजों को लेकर आशंकित हैं. दरअसल , सैनिक के तकरीबन 4 साल के कार्यकाल का तकरीबन 20 फीसदी वक्त तो बेसिक ट्रेनिंग में ही गुजर जाएगा. बेहतर सैनिक बनने के लिए सिर्फ उतना प्रशिक्षण ही काफी नहीं होता. अलग अलग जगह तैनाती , तरह तरह के अस्त्र शस्त्र समझने, हालात को जानने -समझने और उनके मुताबिक़ खुद को ढालने आदि में लिए तो उसे वक्त चाहिए ही , सेना के कल्चर ( military culture) में ढलने में भी किसी नौजवान को खासा समय लगता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि नेवी में अच्छा नाविक बनने में 6 -7 साल तो लग ही जाते हैं. यानि योजना के तहत तय कार्यकाल इतना कम है कि जब तक नौजवान अच्छा सैनिक बनकर तैयार होगा और बेहतर नतीजे देने के लायक बनेगा तब तक उसकी रुखसती का वक्त आ जाएगा. मतलब ये कि जवान को तैयार करने में लगने वाली ऊर्जा , धन और समय का भरपूर उपयोग न हो सकेगा.