यह हैं भारत में लड़ाकू विमान उड़ाने वाले सबसे बुजुर्ग सैनिक जो अब 103 साल के हैं

175
वायुसेना के विमान के साथ दलीप सिंह मजीठिया
लड़ाकू विमान उड़ाने वाले भारत के सबसे उम्र दराज़ वायु सैनिक दलीप सिंह मजीठिया ने हाल ही में  103 साल का बर्थ डे केक काटा . द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने साहस का जलवा दिखा चुके फाइटर पायलट सेवा निवृत्त स्कवाड्रन लीडर  दलीप सिंह मजीठिया को भारतीय वायु सेना ने इस अवसर पर फौजी परम्परा के अनुरूप शुभकामनाएं दीं. सिर्फ उम्र की शतकीय पारी का खेल आसानी से खेल लेना ही  इस शानदार फौजी के  जीवन के बहुत से पहलू दिलचस्प हैं .
विमान के साथ दलीप सिंह मजीठिया

1920 में अमृतसर पैदा हुए दलीप सिंह मजीठिया का ताल्लुक  पंजाब के उस मशहूर मजीठिया  कुनबे से है जो आज भी पंजाब की सियासत में सक्रिय है . सिर्फ 20 साल की उम्र में  यानि 1940 में  दलीप सिंह मजीठिया रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स  ( royal indian air force ) में भर्ती हुए .  वह जनरल ड्यूटी पायलट ( GDP) के कोर्स 4 में थे.  ब्रिटिश हुकूमत के दौरान  गठित भारत की वायु सेना का तब यही नाम था . द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दलीप सिंह मजीठिया ने बर्मा ( वर्तमान में म्यांमार ) हॉकर हरिकेन ( hawker hurricane ) उड़ाया था.

द्वितीय विश्व युद्ध के समापन के करीब दलीप सिंह मजीठिया ( dalip singh majithia ) ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्यूपेशन फोर्सेज  (BCOF) का हिस्सा बन कर आस्ट्रेलिया के शहर मेलबर्न पहुंच गए . यहीं पर उनकी मुलाकात जौन सांडर्स ( joan sanders ) से हुई जो खुद उस वक्त सैनिक के तौर पर आस्ट्रेलिया की नौसेना रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी ( royal australian navy ) में थीं. दोस्ती मोहब्बत में तब्दील हुई और 18 फरवरी 1947 को दलीप सिंह मजीठिया व जौन सांडर्स ने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में विवाह कर लिया . जौन के पिता ब्रिटिश इंडियन आर्मी में अधिकारी थे.

पत्नी जौन सांडर्स के साथ दलीप सिंह मजीठिया जब नई शादी हुई
यह 1 अगस्त 1940 की बात है जब  दलीप सिंह मजीठिया रॉयल इंडियन एयर फ़ोर्स में लाहौर में भर्ती हुए.  5 अगस्त से उनका प्रशिक्षण शुरू हुआ. दो ब्रिटिश इंस्ट्रक्टर ने लाहौर की वाल्टन एयरफील्ड ( walton airfield) में  उनको टाइगर मोथ ( tiger moth ) जहाज़ पर ट्रेनिंग दी. सीखने में बेहद तेज़ दलीप सिंह ने 17 दिन बाद ही अकेले जहाज़ पर उड़ान भरी शुरू कर दी . वह प्रशिक्षु पायलट थे . उन्होंने  इसके बाद उनकी ट्रेनिंग अंबाला में हुईं . शुरू शुरू में उनकी तैनाती 1 जून 1941 को मद्रास स्थित फ्लाइट -1  ( तटीय रक्षा ) में हुई . वर्तमान चेन्नई को तब मद्रास ही कहा जाता था . 1947 में जब भारत ने अंग्रेज़ हुकूमत सीजादी हासिल की तब   दलीप सिंह मजीठिया को उनके परिवार ने वायु सेना की सेवा छोड़ने के लिए तैयार कर लिया. इससे पहले सात साल के अपने करियर में वायु सेना की विभिन्न इकाइयों में तैनाती के दौरान सेवा की जिसमें गनरी स्कूल नंबर 1  ( 1  gunnery school ) , स्क्वाड्रन – 3  , स्क्वाड्रन – 4  और स्क्वाड्रन नम्बर 6 शामिल हैं .
.

चाचा सुरजीत सिंह मजीठिया के साथ दलीप सिंह

दलीप सिंह मजीठिया ने बर्मा अभियान के दौरान , जापानी सेनाओं से मुकाबला करने के लिए , उन्हीं बाबा मेहर सिंह की कमान में उड़ान भरी थीं जिनको बाद में भारत – पाकिस्तान युद्ध ( 1947 – 48 ) में निभाई भूमिका के लिए महावीर चक्र से नवाज़ा गया था . इस अभियान में मजीठिया ने   हरिकेन उड़ाया था जो उस वक्त का ज़बरदस्त तगड़ा लड़ाकू जहाज़ था. इस युद्ध के दौरान उन जापानी सैनिकों को खोजने का  का टास्क था जो जंगलों में छिपते छिपाते भारत की तरफ बढ़ रहे थे . एक जहाज़ से  उनकी फोटो खिंची जाती थी तो दूसरा जहाज़ उसकी दुश्मन के हमले से रक्षा करता था.

दलीप सिंह मजीठिया में ‘ एक बार सैनिक जीवन पर्यन्त सैनिक ‘ वाला जज़्बा हमेशा रहा.उन्होंने  वायु सेना बेशक छोड़ दी लेकिन उनको आसमान में परवाज़  छोड़ना मंज़ूर नहीं था. लिहाज़ा मजीठिया ने प्राइवेट जहाज़ उडाना शुरू कर दिया . काठमांडू की घाटी में पहला हवाई जहाज़ उतारने ( plane landing ) वाले पहले पायलट  का सेहरा भी उनके सिर पर सजा . यह भी एक दिलचस्प घटनाक्रम है जो रोमांच से भरपूर है .

दरअसल दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति से कुछ अरसा  पहले  ही अमरीकियों ने भारत में अपने सभी विमान बेच दिए थे जिनमें से दो  एल – 5 लाइट एयर क्राफ्ट मजीठिया के चाचा ने खरीद लिए थे. मजे की बात है कि गैराज में काम करने वाले उस मकेनिक की  मदद से इनको ठीक करके उड़ने लायक बनाया गया जो कार मरम्मत करता था .   क्योंकि दलीप सिंह मजीठिया के पास लाइसेंस तो था ही इसलिए उनको उड़ाने में दिक्कत नहीं आई .यही नहीं परिवार ने बीचक्राफ्ट बोनान्जा ( beechcraft  bonanza ) जहाज़ भी खरीदे . इनमें से जो एक दलीप सिंह मजीठिया के पास था उसने विमानन इतिहास में एक शानदार जगह बना ली .
वो 23 अप्रैल 1949  की घटना है जब दलीप सिंह मजीठिया ने , नेपाल के प्रधानमन्त्री मोहन शंकर जंग बहादुर राणा के भेजे हुए अनुरोध पत्र पर , काठमांडू की घाटी की पहली हवाई पट्टी पर किसी हवाई जहाज़ की पहली लैंडिंग की थी . हालाँकि तब यह पट्टी पूरी तरह से तैयार भी नहीं हुई थी . एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में दलीप सिंह मजीठिया ने इस बारे में विस्तार से बताया था. उन्होंने पहले हवाई पट्टी का मुआयना किया. वहां लैंडिंग के वक्त मिलने वाली ज़रूरी सहायता के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था. पहला प्रयास घने बाद्लों के कारण विफल रहा लेकिन 23 अप्रैल को यहां लैंडिंग में कामयाबी मिल गई.

नेपाल की राजधानी काठमांडू में त्रिभुवन  अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे ( tribhuvan international airport at kathmandu)  आज भी वो पट्टी चिन्हित है जहां स्क्वाड्रन लीडर दलीप सिंह मजीठिया ने पहला विमान उतारा था.  मजीठिया परिवार ने  इसके बाद भी समय समय पर  जहाज़ खरीदे जो उनकी सराया एयर चार्टर सेवा का हिस्सा बने. उनमे से कई अब रिटायर भी हो गए हैं .

103 साल के हुए दलीप सिंह , वायु सेना दी बधाई

गर्मियों में नैनीताल जाना और गोल्फ खेलना दलीप सिंह मजीठिया का  शौक रहा. दलीप सिंह मजीठिया एक अच्छे गोल्फर भी हैं . बीस साल की उम्र में पहली बार जहाज़ की परवाज़ भरने वाले दलीप सिंह मजीठिया ने  अपने पायलट जीवन की आखरी उड़ान जनवरी 1979  में भरी यानि अपने 59 वें साल में .

नैनीताल का बोट क्लुब दलीप सिंह मजीठिया की  पसंदीदा जगहों में से एक है . उनकी बेटी किरन  संधू का परिवार वहीँ मल्लीताल में रहता है . मजीठिया जब कभी वहां होते हैं तो बोट क्लब पर काफी वक्त बिताते हैं .  वैसे दलीप सिंह मजीठिया का घर  दिल्ली के महरौली में जौनापुर में हैं जोकि  विशाल फ़ार्म हाउस से भरा इलाका है .

उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल ( रिटा.) गुरमीत सिंह के साथ दलीप सिंह

वैसे बीते साल जब दलीप सिंह मजीठिया 102 साल के हुए तो उनसे मिलने और शुभकामनाएं देने के लिए उत्तराखंड के राजपाल लेफ्टिनेंट जनरल ( सेवानिवृत्त ) गुरमीत सिंह भी पहुंचे थे.  दलीप सिंह मजीठिया के बैच के ज़्यादातर लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं .