भारत के पंजाब और हरियाणा राज्यों की संयुक्त राजधानी, संघशासित क्षेत्र चंडीगढ़ में सड़क किनारे कार पार्किंग में एक ऐसा खतरनाक वाहन पार्क किया गया है जिस पर नज़र पड़ते ही कोई भी शख्स वहां कुछ मिनट गुज़ारे बिना आगे नहीं जा सकता और ऐसा भी नहीं हो सकता कि आप उसकी तस्वीर लिए बिना खुद को रोक सकें. असल में ये वाहन जितना आकर्षक है उतना ही दिलचस्प है इसका इतिहास और इसके यहाँ तक पहुँचने की कहानी. हर भारतीय फ़ौजी को जहां ये सेना के शौर्य और शूरवीरता की असल कहानी के फ्लैश बैक में ले जाता है वहीं हरेक हिन्दुस्तानी भी इसे देखकर गौरवान्वित महसूस करता है. ये है भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध में भारतीय सेना की जीत का प्रतीक – पैटन टैंक M-46. अमेरिका में बना ये टैंक उन तकरीबन 100 टैंक में से एक है जिनके बूते पाकिस्तानी फ़ौज भारत की पंजाब सीमा में फतेह का ख्वाब लेकर घुसी थी लेकिन उसे भारतीय फौजियों ने इतना तगड़ा जवाब दिया कि टैंक तक छोड़कर उलटे पैर भागने को मजबूर कर दिया. ये टैंक ‘आसल उत्ताड़’ (Asal Uttar) की लड़ाई के दौरान कब्ज़े में लिये गये टैंक में से एक है.
आसल उत्ताड़ की जंग :
आसल उत्ताड़ युद्ध की स्वर्ण जयंती पर 31 अगस्त 2015 को चंडीगढ़ के सेक्टर 10 में संग्रहालय व कला दीर्घा के बाहर पार्किंग में स्थापित किये गये इस टैंक की खासियत की चर्चा से पहले आसल उत्ताड़ युद्ध के बारे में जानकारी होना बेहद अहम है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद टैंक के दमखम पर लड़े गये युद्धों में सबसे भीषण माने गये इस युद्ध की (8 से 10 सितम्बर 1965 के बीच) शुरुआत तब हुई जब पाकिस्तानी सेना अन्तराष्ट्रीय सीमा को पार करके पांच किलोमीटर तक भारत में खेमकरण इलाके में प्रवेश कर गई. इसमें सेना की 1 आर्मर्ड डिवीज़न और 11 वीं इन्फेंट्री डिवीज़न थी जिनमें तकरीबन 100 टैंक शामिल थे. इनमें ज़्यादातर पैटन टैंक थे. जो M 46 , M 47 सिरीज़ के भी थे, जो पाकिस्तान ने अमेरिका से लिए थे. दोनों तरफ से भीषण गोलाबारी शुरू हो गई.
रणनीति बदली :
हालात को देखते हुए भारतीय सेना की 4 माउन्टेन डिवीज़न के जीओसी मेजर जनरल गुरबक्श सिंह ने सेना को बीच में से पीछे हटने का आदेश दिया लेकिन दायें – बायें वाले हिस्से को बरकरार रखते हए घोड़े की नाल के आकार में तैनाती करके पाकिस्तानी सेना की घेराबंदी कर ली. इसके लिए रात के घने अँधेरे में सेना ने गन्ने के खेतों में छिपकर जाल बिछा लिया और उनमें पानी भर दिया. सुबह होते ही बीच वाली सैनिक लाइन ने पीछे हटते हुए पाकिस्तानी सेना को भारतीय सीमा में और अन्दर आने का लालच दिया. आगे आने की कोशिश में पाकिस्तानी टैंक खेतों के कीचड़ में फंस गये. इस तरह तीन तरफ से पाकिस्तानियों को घेरने की रणनीति ब्रिगेडियर थामस के. त्यागराज के दिमाग की ऐसी उपज साबित हुई कि इसने युद्ध को एक झटके में भारत के पक्ष में कर डाला. जबरदस्त गोलाबारी हुई और हमलावर पाकिस्तानी सेना अब बचाव की मुद्रा में आ चुकी थी. नाल की इसी पोजीशन में बीचों बीच आसल उत्ताड़ गाँव था.
पाकिस्तान के दर्जनों टैंक या तो तबाह हो गये या भारतीय सेना ने कब्ज़ा लिए. पाकिस्तानी सेना के कमांडर मेजर जनरल नासिर अहमद खान इस कारवाई में मारे गये. भारत के 10 टैंक इस युद्ध में ख़त्म हुए. दूसरे विश्व युद्ध में, कुर्स्क के युद्ध के बाद इस युद्ध को टैंक से लड़ा गया सबसे भयानक युद्ध माना जाता है.
खास बात ये भी है कि पाकिस्तान के हारे इस युद्ध में परवेज़ मुशर्रफ ने भी हिस्सा लिया था जो बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति भी बने तब वो 1 आर्मर्ड डिवीज़न आर्टिलरी की 16 (एसपी) फील्ड रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट थे. इसी युद्ध में सात पाकिस्तानी टैंक तबाह करने के दौरान भारतीय सेना के हवलदार अब्दुल हमीद की जान गई थी. भारत ने उन्हें इसके लिए सबसे बड़े सैनिक सम्मान परम वीर चक्र से नवाज़ा था.
टैंक का नाम पैटन क्यूँ :
अमेरिकी फ़ौजी अधिकारी जनरल जार्ज एस. पैटन के नाम अमेरिका ने इस टैंक का नाम रखा. जनरल पैटन युद्ध में टैंक के इस्तेमाल के बड़े हिमायती माने जाते थे. M 46 को असल में M 26 पर्शिंग और M 4 शर्मन के विकल्प के तौर पर विकसित किया गया था जो मध्य श्रेणी के टैंक थे. अमेरिका ने कोरिया के साथ हुए युद्ध में इसे इस्तेमाल करने के अलावा निर्यात ही किया.
टैंक की खासियत :
छोटे और हलके होने के साथ साथ ये पैटन टैंक M 46 की रफ़्तार 48 किलोमीटर प्रति घंटा है. इसकी रिवर्स (उल्टी चाल से) स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटा है. ये एक मिनट में 6 से 7 गोले दाग सकता है.
चंडीगढ़ में पैटन टैंक M 46 :
इसी युद्ध में कब्ज़ा किये पाकिस्तान के एक पैटन टैंक को ठीक ठाक किया गया. युद्ध की गोल्डन जुबली के मौके पर राजधानी में 31 अगस्त 2015 को संघशासित क्षेत्र चंडीगढ़ के प्रशासक के सलाहकार आईएएस अधिकारी विजय देव ने युद्ध स्मृति के तौर पर इसे सेक्टर 10 सी में म्यूज़ियम एंड आर्ट गैलरी की पार्किग में स्थापित किया.
यहाँ आने वाले लोगों के लिए ये आकर्षण का केंद्र बना रहता है. बच्चों और नौजवानों को इसके सामने अपनी तस्वीरें खिंचवाने में बहुत मज़ा आता है. लोगों को इसे देखकर भारतीय फौज की बहादुरी पर फख्र की भावना में इजाफा महसूस होता है. लेकिन यहाँ ना तो एस कोई बोर्ड है और न ही कोई जरिया जिससे टैंक के बारे में या आसल उत्ताड़ के युद्ध के बारे में लोगों को जानकारी मिल सके. बस एक छोटा सा पत्थर यहाँ पर स्थापना के वक्त लगाया गया था जिसमें मामूली सी जानकारी दी गई है.