निर्मलजीत सिंह सेखों! एक ऐसा नाम जिसके बिना भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) की शौर्यगाथा लिखी ही नहीं जा सकती और ऐसा भी कभी नहीं हो सकता कि भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 में हुए युद्ध पर फ़ौजी चर्चा, बगैर इस नाम के पूरी हो जाए. भारत तो क्या इस शख्सियत की चर्चा तो इससे मात खाने वाला दुश्मन पाकिस्तानी फ़ौजी भी इसके जांबाजी भरे कारनामे के साथ ही करते हैं. पीरों, फकीरों, किसानों और योद्धाओं से लबरेज़ पांच नदियों के सूबे पंजाब की धरती पर जन्मा सूरमा निर्मलजीत सेखों भारतीय वायुसेना का पहला और अब तक का इकलौता परमवीर चक्र विजेता. उनके जीवन और उनकी आखिरी उड़ान के बारे में जो कुछ उनके साथियों ने बताया, उसी आधार पर उनके जन्म दिवस के अवसर पर इस ये सब लिखा जा रहा है :
श्रीनगर एयर बेस… वो 14 दिसम्बर 1971 की सुबह थी. कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी और साथ में कोहरा. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध का 12 दिन शुरू हुआ था और जो अब ख़त्म होने के मुकाम पर था. युद्ध में दुश्मन से दो-दो हाथ न कर पाने का लगातार अफ़सोस करते रहने वाले भारतीय वायु सेना की 18 स्क्वाड्रन के 26 वर्षीय इस फ़्लाइंग आफिसर के पास उस सुबह हीरो बनने का पूरा मौका था. एयर बेस के ड्यूटी रोस्टर में उनके नाम के आगे अंग्रेजी में आदेशात्मक लहजे में लिखा था – SCRAMBLE CAP. यानि युद्ध की पूरी तैयारी के साथ आसमानी गश्त. मतलब ये भी था कि आदेश मिलने के 2 मिनट के भीतर एयरक्राफ्ट आसमान में होना चाहिए. यही ड्यूटी निर्मल के उस्ताद (फ़्लाइंग इंस्ट्रक्टर) और दोस्त भी बीएस घुम्मन (अब सेवानिवृत्त एयर कोमोडोर) की थी.
दुश्मन का पता चला :
उन दिनों कश्मीर के उस इलाके में आसमान की निगहबानी इतनी आसान नहीं थी. वजह थी उतनी बेहतर राडार के बन्दोस्त की कमी, लिहाज़ा अपने क्षेत्र में दुश्मन के जंगी जहाजों पर नज़र रखने के लिए वायुसेना रिज इलाके में बनाये गये मचान या पर्वतीय इलाकों में चोटियों पर सैनिकों को तैनात रखती थी. तभी खबर आई कि घने कोहरे की आड़ में पाकिस्तानी वायुसेना के लड़ाकू प्लेन भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर गये हैं. मानों निर्मलजीत के तो मन की मुराद ही पूरी हो गई. जावा मोटर साइकिल की सवारी के शौक़ीन निर्मलजीत की फाइटर प्लेन से भी उतनी ही मोहब्बत थी और उनके प्लेन की कलाबाज़ी के तो कई साथी कायल थे.
नई चुनौती :
बस झट से उन्होंने हैंगर से जीनेट फाइटर निकाला लेकिन मुश्किल ये थी कि टेक आफ करते ही आसमान में उन्हें गाइड करने की ड्यूटी पर तैनात फ्लाईंग आफिसर जीएम डेविड और वाई सिंह ( जिन्हें उनके स्क्वाड्रन में साथी ‘हूच’ और ‘योगी’ के नाम से बुलाते थे) का एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC ) से संपर्क नहीं हो पा रहा था. दुश्मन के फाइटर कुछ ही किलोमीटर के फासले पर थे और अब इंतज़ार करने के लिए मिनट तो क्या सेकन्ड्स तक की गुंजाइश नहीं थी. निगरानी चौकी से सूचना के बाद संघर्ष ऐलान साफ़ था.
कौन थे हमलावर :
असल में जिन पाकिस्तानी जहाजों की मूवमेंट निगरानी चौकी ने देखकर खबरदार किया था वो पाकिस्तान वायुसेना की 26 स्क्वाड्रन के 6 सबर फाइटर थे और पेशावर से उड़ान भरते वक्त उनका नेतृत्व 1965 की जंग के अनुभवी विंग कमांडर चंगाज़ी कर रहे थे.
उनका मकसद श्रीनगर एयरफील्ड को तबाह करना था. दुश्मन के लड़ाकू हमला करने के लिए बेहद करीब आ चुके थे और निगरानी चौकी से सूचना आने के बाद संघर्ष करने का ऐलान हो चुका था. और इंतज़ार करने का वक्त बचा ही नहीं था लिहाज़ा बिना एयर ट्रैफिक कंट्रोल के सपोर्ट के ही जवाबी कार्रवाई को अंजाम देना तय किया गया.
ऐसे दिया दुश्मन को जवाब :
पहले उस्ताद (बीएस घुम्मन) ने उड़ान भरी लेकिन जैसे ही सेखों का जीनेट रनवे से उड़ा वैसे ही एयरफील्ड के ऊपर पहुंचे दुश्मन जहाज़ ने हमला कर दिया. कुछ मीटर और चंद सेकंड्स का ही फासला था उन दो बमों और सेखों के फाइटर के बीच. उधर आसमान में पहुँचते ही सेखों ने अपना आसमानी रणकौशल दिखाना शुरू कर दिया. दुश्मन के चार जहाजों से घिरने के बावजूद कलाबाजी खाते खाते उन्होंने दो पाकिस्तानी जहाज़ों को तबाह करके जमीन चटा दी लेकिन इस बीच एक हमलावर ने उनको निशाना बना दिया. सेखों के जीनेट के पिछले हिस्से को नुकसान पहुंचा और साथ ही काकपिट से निकलने का सिस्टम भी प्रभावित हो गया और सेखों खुद को प्लेन से बाहर नहीं निकाल पाए. शहादत से पहले उनके आखिरी शब्द आसमान से कम्युनिकेशन सिस्टम से सुने गये थे वो यही थे कि दो का काम मैंने तमाम कर दिया है बाकी को आप देख लो.
दुश्मन भी कहते हैं – कमाल का था सेखों :
निर्मलजीत सिंह सेखों के उस युद्ध में मुकाबला के तौर तरीके का ब्योरा पाकिस्तानी युद्ध लेखक एयर कोमोडोर केसर तुफैल ने लिखा है. और तो और उस पाकिस्तानी फ्लाइट लेफ्टिनेंट सलीम बेग मिर्ज़ा ने भी निर्मल के कलाबाज़ी और रणकौशल की तारीफ़ करते हुए एक लेख लिखा था. सलीम बेग ने ये हमला 6 मशीन गन वाले सबर लड़ाकू प्लेन से किया था.
परिवार और पैदाइश :
17 जुलाई 1943 को पंजाब के लुधियाना जिले के इस्सेवाल गाँव में निर्मलजीत की पैदाइश हुयी. उनके पिता तरलोक सिंह सेखों भी भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे. निर्मल ने 4 जून 1967 को भारतीय वायुसेना में कमीशन हासिल किया था.
परमवीर चक्र :
भारत में अब तक 21 सैनिकों को, युद्ध के समय वीरता दिखाने का सबसे बड़ा ये सम्मान दिया गया है. इनमें से अकेले निर्मल सिंह सेखों ही वायु सेना के अधिकारी हैं जिन्हें परमवीर चक्र (मरणोपरांत ) प्रदान किया गया है. अन्य परमवीर चक्र थल सेना के वीर सैनिकों को मिले हैं.