एएफटी को रक्षा मंत्रालय के कंट्रोल से बाहर करने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा

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भारत का सर्वोच्च न्यायालय
क्या रक्षा मंत्रालय से  सशस्त्र बल अधिकरण ( armed forces tribunal ) पर प्रशासनिक नियंत्रण छीन लिया जाना चाहिए  ?  सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बल अधिकरण से जुडी एक याचिका के  इस  पहलू पर केंद्र सरकार से उसका रुख जानना चाहा है. इस पर सरकार को एक महीने में जवाब देने के लिए कहा गया है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने अधिकरण की चंडीगढ़ पीठ के वरिष्ठ सदस्य जस्टिस धरम चंद चौधरी के कोलकाता स्थानांतरण में किसी तरह का अपना दखल देने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने स्थानांतरण से जुड़े  हालात पर पूछे गए सवाल पर मिले उस जवाब के प्रति एकतरह से संतुष्टि ज़ाहिर की जिसमें स्थानांतरण के पीछे विभिन्न तक दिए गये  थे .

सशस्त्र बल अधिकरण की चंडीगढ़ पीठ के वरिष्ठ सदस्य जस्टिस धरम चंद चौधरी का 25 सितंबर को अधिकरण की कोलकाता पीठ में ट्रांसफर किये जाने के आदेश के विरोध सवरूप अगले दिन से ही आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल चंडीगढ़ बार एसोसिएशन ( ए एफ टी सी बी ए  – AFTCBA ) ने हडताल शुरू कर दी थी. बार एसोसिएशन ने सशस्त्र बल अधिकरण  की दिल्ली स्थित प्रधान पीठ के इस आदेश को चुनौती दी थी. बार एसोसिएशन का आरोप है कि रक्षा मंत्रालय क्योंकि खुद ही अधिकरण में कई केस लड़ रहा है इसलिए वह अधिकरण को हाइजैक करना चाहता है.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस वाई वी चंद्रचूड , जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल चंडीगढ़ बार एसोसिएशन की याचिका पर  9 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए जस्टिस चौधरी के स्थानान्तरण पर जवाब दाखिल करने को कहा था और अगली सुनवाई के लिए शुक्रवार का दिन तय किया था.  साथ ही अपने अगले आदेश तक जस्टिस चौधरी के कोलकाता किये गए ट्रांसफर पर रोक लगा दी थी .

शुक्रवार को जब इस मामले पर सुनवाई हुई तो बताया गया कि  सशस्त्र बल अधिकरण की क्षेत्रीय पीठों कोलकाता और गुवाहाटी में न्यायिक सदस्य की कमी को पूरा करने  के लिए चंडीगढ़ पीठ से ही किसी सदस्य को भेजना मुनासिब समझा गया था क्योंकि यहां पहले से ही तीन सदस्य हैं. किसी और पीठ में इतने सदस्य नहीं है. क्योंकि जस्टिस धरम चंद चौधरी वरिष्ठ हैं इसलिए कोलकाता पीठ में कम सदस्यों की कमी के बावजूद बेहतर तरीके से हो सकता है .

सशस्त्र बल अधिकरण के अध्यक्ष की तरफ से बीते महीने जस्टिस चौधरी के स्थानान्तरण संबंधी  आदेश तब हुआ था जब इससे पहले जस्टिस धरम चंद चौधरी ने , भारतीय सेना के नायब सूबेदारों की पेंशन के भुगतान के 2017 के आदेश का पालन न होने पर ,  रक्षा मंत्रालय ( ministry of defence ) के वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ,  अदालत की अवहेलना करने की , कार्रवाई शुरू की .

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने  सशस्त्र बल अधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस ( सेवानिवृत्त ) राजेन्द्र मेनन के भेजे नोट पर गौर करने के बाद जस्टिस चौधरी के स्थानांतरण के मामले में दखल देने से इनकार कर दिया . इस नोट में तबादले को रूटीन ट्रांसफर बताया गया था.

रक्षा मंत्रालय की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने याचिकाकर्ता के इस दावे को ‘फिजूल  ‘ बताते हुए कहा कि यह कानूनी प्रक्रिया का कपटपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करने की  कोशिश है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से एएफटी में अदालत की अवहेलना की याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है उससे  रक्षा मंत्रालय को लगता है कि विकलांगता पेंशन दावे दायर करना ‘ एक तरह का गोरखधंधा ‘ बन गया है. उन्होंने कहा कि यह देखकर तकलीफ होती है कि विकलांगता पेंशन के दावे एक रैकेट का हिस्सा बन गए हैं  यह एक बिजनेस बन गया है .

इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि सशस्त्र बल न्याय अधिकरण के अध्यक्ष ने जिन हालात का खुलासा  किया है उनको देखते हुए अध्यक्ष के फैसले पर किसी तरह का शक नहीं किया जा सकता . मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अध्यक्ष ने स्पष्ट किया है कि यह स्थानांतरण अस्थाई तौर किया गया है.

दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट  ( supreme court ) ने  याचिका में उल्लेखित उस बड़े मुद्दे को विचार करने के लायक माना जिसमें सशस्त्र बल अधिकरण पर रक्षा मंत्रालय  के प्रशासनिक नियन्त्रण को हटा कर इसकी लगाम विधि एवम न्याय मंत्रालय के सुपुर्द करने की मांग की गई थी . क्योंकि एएफटी में दायर होने वाले केस में रक्षा मंत्रालय के व्यापक हित जुड़े होते हैं इसलिए एएफटी को रक्षा मंत्रालय से मुक्त कराने और दूसरे मंत्रालय के अधीन लाने की मांग की गई थी ताकि एएफटी की स्वायत्ता बनी रहे . हालांकि 2009 में गठन के बाद से ही एएफटी रक्षा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है .